DNA: आवारा कुत्तों का अधिकार बड़ा है या लोगों का मानवाधिकार?
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DNA: आवारा कुत्तों का अधिकार बड़ा है या लोगों का मानवाधिकार?

Stray Dogs Terror: गाजियाबाद में 13 साल के एक बच्चे को कुत्ते ने काटा, लेकिन उसने अपने परिवार को नहीं बताया, इसके बाद बच्चे को rabies हो गया और उसने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया. आपने ये खबर सुनी होगी और शायद भूल भी गए होंगे.

DNA: आवारा कुत्तों का अधिकार बड़ा है या लोगों का मानवाधिकार?

Stray Dogs Terror: गाजियाबाद में 13 साल के एक बच्चे को कुत्ते ने काटा, लेकिन उसने अपने परिवार को नहीं बताया, इसके बाद बच्चे को rabies हो गया और उसने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया. आपने ये खबर सुनी होगी और शायद भूल भी गए होंगे. आपने सोचा होगा कि ये तो रोज की बात है, इसमें नया क्या है. तो याद रखिये अगर कुत्तों के काटने की घटनाओं के बारे में जानकर भी आपको नींद आ जाती है तो अगला नंबर शायद आपका हो सकता है. क्योंकि आवारा कुत्ते, हमला करने या काटने से पहले ना तो अपने शिकार की उम्र देखते हैं और ना Status... आवारा कुत्तों का आतंक इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि सुप्रीम कोर्ट के Chief Justice को भी अब चिंता होने लगी है.

दरअसल, एक मामले की सुनवाई के दौरान Advocate कुनाल चौधरी घायल अवस्था में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, उनके हाथ में जख्म था. मामले की सुनवाई कर रहे Chief Justice, DY चंद्रचूड़ ने देखा तो पूछा कि उन्हें ये जख्म कैसे लगा? Advocate कुनाल चौधरी ने बताया कि 5 कुत्तों ने एक साथ मिलकर उनपर हमला बोल दिया, जिससे वो घायल हो गए. 

इस पर CJI चंद्रचूड़ ने उनसे पूछा कि अगर कोई मेडिकल मदद चाहिए तो वो रजिस्ट्रार को इसके लिए कह सकते हैं. इसी दौरान वहां बैठे जस्टिस PS नरसिम्हा ने कुत्तों के हमले को लेकर कहा कि ये एक गंभीर खतरा बन कर उभर रहा है. तब Solicitor General तुषार मेहता ने गाजियाबाद में इसी महीने हुई एक घटना का जिक्र किया, जिसमें एक बच्चे की मौत, रेबीज से हो गई थी. डेढ़ महीने पहले एक कुत्ते ने बच्चे को काट लिया था.

बातों-बातों में CJI चंद्रचूड़ ने बताया कि उनका Law Clerk जब गाड़ी पार्क कर रहा था, उस दौरान भी उस पर कुत्तों का हमला हुआ. फिर Solicitor General ने बताया कि एक और छोटे बच्चे पर हमला हुआ था, जिसमें उसकी जान चली गई थी. अब आप खुद सोच लीजिये कि जब सुप्रीम कोर्ट में कुत्तों के आतंक को लेकर इतनी चर्चा हो रही है, तो मामला कितना गंभीर है. ये स्थिति तो तब है जब सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही एक मामले की सुनवाई चल रही है, जो लोगों पर कुत्तों के हमले से जुड़ी है. 

ये विश्लेषण आप सिर्फ भावनात्मक होकर ना पढ़ें. बल्कि, उन लोगों की नजर से भी इस विश्लेषण को समझने की कोशिश करें जिन्होंने कुत्तों के हमलों को झेला है या जिन्होंने कुत्तों के Attack में किसी अपने को खोया है. हमें जानवरों से प्यार करना चाहिए. जानवरों में भी भावनाएं होती हैं. Dogs are Men's Best Friend. माफ कीजियेगा.. लेकिन ये बड़ी-बड़ी बातें कहने-सुनने में तबतक ही अच्छी लगती हैं. जबतक कि कोई आवारा जानवर या कुत्ता. आप पर या आपके किसी अपने पर जानलेवा हमला ना कर दे.

गली मोहल्लों और Socities में घूमते आवारा कुत्ते कब हमला कर दें कोई नहीं जान पाता. ये कुत्ते हर आने-जाने वाले पर भौंकते हैं, उनका पीछा करते हैं. खासकर बच्चों को ये कुत्ते अपना Soft Target मानते हैं. लेकिन फिर भी इन कुत्तों का कोई समाधान नहीं निकलता. क्योंकि इन आवारा कुत्तों को चाहने वाले भी उन्हीं गली-मोहल्लों और Societies में रहते हैं.

तो आखिर ऐसे कुत्तों की जिम्मेदारी कौन लेगा जो इतने खतरनाक हो गए हैं. इस सवाल का जवाब ना कोई Dog Lover देता है, और ना आवारा कुत्तों को Control करने का जिम्मेदार प्रशासन. जिसकी वजह से आवारा कुत्ते, शेर बनकर घूमते हैं. सवाल ये है कि आवारा कुत्तों का अधिकार बड़ा है या लोगों का मानवाधिकार?

खूंखार कुत्तों के हमलों के ऐसे वीडियो आए-दिन आते रहते हैं. जब किसी मासूम को आवारा कुत्तों ने मार डाला हो..या घायल कर दिया हो. और ये इसलिए होता है क्योंकि हमारे देश में कुत्ते, आराम से घूमते हैं और कुत्तों के डर से बच्चे अपने घरों में दुबककर रहने के लिए मजबूर होते हैं.

हमारे देश का संविधान कहता है कि देश में रहने वाले हर इंसान और जानवर को जीवन जीने का अधिकार है. लेकिन सवाल ये है कि आवारा कुत्तों का अधिकार बड़ा है या लोगों का मानवाधिकार? लोग आवारा कुत्तों के हमलों में अपनी जान गंवाते हैं. लेकिन आवारा कुत्तों का कुछ नहीं बिगड़ता. क्योंकि इन बेजुबान लेकिन खूंखार आवारा कुत्तों की आवाज उठाकर जमीन-आसमान एक कर देने में हमारे समाज का एक वर्ग हमेशा तत्पर रहता है.

किसी की जान लेने का अधिकार ना तो किसी इंसान को है और ना किसी कुत्ते को. कोई इंसान हो या कोई कुत्ता, अगर वो समाज के लिए खतरा बन चुका है. तो उसे समाज में रहने का कोई हक नहीं है. भारत में हर साल 20 हज़ार लोग रेबीज के कारण मरते हैं. और हर रोज हजारों लोग, आवारा कुत्तों का शिकार बनते हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि पशु क्रूरता के खिलाफ आवाज उठाने वाले डॉग लवर्स की जुबान को आवारा कुत्तों की इस क्रूरता पर लकवा मार जाता है. हमारे देश की सरकारें और सिस्टम, इन आवारा कुत्तों पर मेहरबानियां करता नजर आता है.

माना कि पशुओं के प्रति क्रूरता को किसी भी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि इन आवारा कुत्तों को सड़कों और गलियों में घूमने को छोड़ा जा सकता है. ताकि वो बच्चों और बुजुर्गों को शिकार बना सकें और उनकी जान ले सकें. बड़ी सीधी सी बात है कि अगर हम अपने समाज में किसी अपराधी और हिंसक प्रवृत्ति के इंसान को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो हिंसक और आवारा कुत्तों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं. 

संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक भारत में 1 करोड़ 53 लाख आवारा कुत्ते हैं. सरकारी आंकड़ा है कि भारत में वर्ष 2021 में आवारा कुत्तों ने 17 लाख से ज्यादा लोगों को काटा. विश्व स्वास्थ्य संगठन का डेटा है कि भारत में हर साल 20 हजार मौतें रेबीज से होती हैं. जिनमें से 99 प्रतिशत कुत्तों के काटने से होता है. दुनियाभर में रेबीज से होने वाली 36 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में होती हैं.  

ये आंकड़े गवाही देते हैं कि आवारा कुत्तों का आतंक कितना ज्यादा है. भारत में कोई ऐसा शहर..कस्बा..गांव..मोहल्ला या गली मिलनी मुश्किल है जहां आवारा कुत्ते खुलेआम ना घूमते हों. अब हम आपको  Local Circles के सर्वे के बारे में बताते हैं जो भारत के 303 जिलों में किया गया है. सर्वे में सवाल ये पूछा गया कि कुत्तों के काटने की घटना कितनी आम है? इस सर्वे में शामिल 30 प्रतिशत ने कहा कि आवारा कुत्तों का काटना एक सामान्य घटना है. 5 प्रतिशत ने कहा कि पालतू कुत्तों के हमले आए-दिन होते हैं. 26 प्रतिशत ने कहा कि पालतू और आवारा दोनों ही तरह के कुत्तों के काटने की घटना आम बात है. यानी कुल मिलाकर 61 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके इलाके में कुत्तों के हमले एक सामान्य घटना है.

ये सर्वे बताता है कि आवारा कुत्ते समाज के लिए खतरा बन चुके हैं. हर दिन आवारा कुत्तों और अन्य जानवरों के काटने की करीब 20 हजार घटनाएं रिपोर्ट होती हैं. और हर साल 20 हजार लोगों की जान रेबीज के संक्रमण के कारण चली जाती है. लेकिन फिर भी हमारे देश की सरकार और सिस्टम...आवारा कुत्तों के प्रति ज्यादा उदार दिखाई देता है.

Anti Birth Control कानून 2001 के तहत कुत्तों की आबादी पर लगाम के लिए नगर निगम या कोई NGO अगर किसी आवारा कुत्ते को गली-मोहल्ले से पकड़ती है तो नसबंदी के बाद उसे वहीं छोड़ना होगा, ऐसा न करना कानून अपराध है. IPC की धारा 506 के तहत किसी को आवारा कुत्ते को खाना खिलाने से रोकना भी अपराध है. ये हमारे देश का कानून है. जिसमें अगर आवारा कुत्तों पर कोई अत्याचार करे तो उसे जेल हो सकती है. लेकिन इन आवारा कुत्तों के आतंक का शिकार बनने वाले लोगों के लिए हमारे देश का कानून कुछ नहीं कहता. अगर किसी को लग रहा है कि हम आवारा कुत्तों को मारने की वकालत कर रहे हैं तो ऐसा बिलकुल नहीं हैं.

बस हम तो लोगों को अहिंसा के पुजारी, महात्मा गांधी के विचार बताना चाहते हैं. जिन्होंने वर्ष 1926 में यंग इंडिया में लिखा था. आवारा कुत्ते, समाज की सभ्यता या दया के चिह्न नहीं हैं बल्कि समाज के अज्ञान और आलस्य के चिन्ह हैं. कुत्तों के प्रेम में पड़कर इंसानों की मौत पर चुप्पी की चादर ओढ़ लेने वाले Dog Lovers को ये बात शायद समझ में नहीं आती. और पूरे देश का सिस्टम, कानून की आड़ लेकर आवारा कुत्तों की समस्या पर गहरी नींद में सोया रहता है.

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