Kanwar Yatra: मुस्लिम की 'दुकान' पर घमासान, भड़के जावेद अख्तर बोले- 'नाजी शासन में दुकानों पर निशान लगते थे'
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Kanwar Yatra: मुस्लिम की 'दुकान' पर घमासान, भड़के जावेद अख्तर बोले- 'नाजी शासन में दुकानों पर निशान लगते थे'

Kanwar Yatra 2024:  22 जुलाई से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा को लेकर तैयारियां आखिरी दौर में हैं. यूपी के मंत्री की चेतावनी और मुजफ्फरनगर पुलिस के उस आदेश पर घमासान मचा है. जिसपर दुकानदारों को अपना नाम डिस्प्ले करने को कहा गया था. इस पर अखिलेश यादव और ओवैसी नाराजगी जता चुके हैं.

Kanwar Yatra: मुस्लिम की 'दुकान' पर घमासान, भड़के जावेद अख्तर बोले- 'नाजी शासन में दुकानों पर निशान लगते थे'

Kanwar Yatra news: कावड़ यात्रा 2024 शुरू होने से पहले यूपी में सरकार और पुलिसप्रशासन मुस्तैद है. इस बीच प्रशासन के एक फैसले पर बवाल मच गया. यूपी की पुलिस ने कांवड़ यात्रा में पहचान छिपाकर दुकान लगाने वालों को दुकान, ठेले भोजनालय में अपना ओरिजनल नाम लिखने को कहा है ताकि कांवड़ियों में भ्रम की स्थिति न हो और कोई विवाद न हो. जावेद अख्तर ने भी इस फैसले पर निशाना साधते हुए फरमान की तुलना नाजी शासन के दौर से की है. मुजफ्फरनगर के कई मुस्लिम दुकानदारों ने इसका पालन शुरु भी कर दिया है. 

यूपी के मुजफ्फरनगर में पुलिस के निर्देश पर जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म X पर सवाल उठाए हैं. जावेद अख्तर ने मुजफ्फरनगर पुलिस के फैसले की तुलना नाजी जर्मनी से की है. जावेद अख्तर ने लिखा है कि नाजी शासन में दुकानों पर निशान लगते थे. 

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, टीएमसी और AIMIM ने इस पर विरोध जताया. ओवैसी ने इस सरकारी आदेश की तुलना दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद से की. वहीं TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने इस आदेश को संविधान विरोधी बताया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि सावन के पवित्र महीने में धार्मिक कांवड़ यात्रा में नाम और पहचान छिपाकर दुकान लगाना जायज़ है या नाजायज? 

मुस्लिम की 'दुकान' पर घमासान की वजह 5000 करोड़ का बाजार?

मुजफ्फरनगर के दुकानदारों को निर्देश दिया गया कि वो अपनी पहचान के साथ दुकानदारी करें. एसएसपी मुजफ्फरनगर अभिषेक सिंह ने सरकारी आदेश की वजह बताते हुए कहा ' लाखों कांवरिया सड़क किनारे भोजनालयों से भोजन खरीदते हैं और किसी भी भ्रम से बचने के लिए यह आदेश जारी किया गया है, ताकि कोई आरोपप्रत्यारोप न लगे और कोई कानूनव्यवस्था की कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न न हो'.

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कांवड़ यात्रा का मार्ग 240 किलोमीटर लंबा है. कांवड़ यात्रा में हिंदू-मुसलमान क्यों हो रहा है? कुछ लोग तो इस विवाद के पीछे आर्थिक कारण भी गिना रहे हैं. दरअसल कांवड़ यात्रा के रूट से हर साल भगवान शिव के लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा के जरिए पवित्र जल लाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक अगर एक कांवड़ यात्री यहां से आते और जाते समय महज 500-500 रुपए भी खर्च करे तो इस तरह से वो इस रूट पर 1000 रुपए खर्च करेगा. ये रकम उसके रहने, चाय-नाश्ता और भोजन, कपड़ों, कांवड और उसकी सजावट में खर्च होगी. ऐसे में प्रशासन के फरमान को बाजारवाद से जोड़कर देखा जा रहा है.

सियासी बयानबाजी जारी

नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा- 'कांवड़ पर रास्ते बंद, तो नमाज़ से दिक्कत क्यों है. कांवड़ पर एक महीने तक रास्ते बंद होते हैं. सबके साथ समान व्यवहार करने की ज़रूरत है. कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा- 'बीजेपी नफ़रत की राजनीति करती है. कलावा दरगाह पर मुस्लिम भी पहनते हैं. बीजेपी का मकसद सिर्फ वोट की राजनीति करना है.' अखिलेश यादव का कहना है कि अगर कोई अपना नाम मुन्नू, गुड्डू और फत्ते लिख देगा तो भला ये कैसे पहचानेंगे?

इस बार कांवड़ में ख़ास

  • 21 जुलाई से 2 अगस्त तक यात्रा होगी.
  • CCTV कैमरों से यात्रा पर नज़र रहेगी.
  • हर राज्य आईडी कार्ड जारी करेगा.
  • 5 राज्यों की टीम करेगी मॉनिटरिंग.
  • अफसरों के मोबाइल पर LIVE होगी यात्रा.
  • हेलीकॉप्टर से इस बार भी कांवड़ियों पर पुष्पवर्षा होगी.
  • यात्रा में कानफोड़ू डीजे पर रहेगी रोक.
  • भालात्रिशूल लेकर चलने पर रोक.
  • DJ की हाइट भी तय करनी होगी.
  • कांवड़ मार्ग पर शराबमीट की दुकानें बंद.

तमाम बयानों पर बीजेपी नेता सफाई दे रहे हैं, फैसले का बचाव कर रहे हैं. उनका ये भी कहना है कि कांवड़ यात्रा को लेकर एहतियातन कई फैसले लिए गए, लेकिन हंगामा सिर्फ इसी पर क्यों बरपा है. ऐसी तमाम सियासी बयानबाजी के बीच ये सवाल भी अपनी जगह बना हुआ है कि जब कांवड़ यात्रा के रास्ते पर मौजूद मुस्लिम समुदाय के (Muslim Community) दुकानदार प्रशासन के फैसले पर किसी तरह का विरोध नहीं जता रहे तो फिर सियासी दल इस पर अपनी राजनीति क्यों चमका रहे हैं.

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