होली कब और क्यों मनाई गई, जानिए इससे जुड़ीं 5 पौराणिक कथाएं
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होली कब और क्यों मनाई गई, जानिए इससे जुड़ीं 5 पौराणिक कथाएं

मुगल शासक शाहजहां के काल में होली को ईद-ए-गुलाबी के नाम से संबोधित किया जाता था.

कोलकाता में होली से पहले लोगों ने खेला गुलाल. (फोटे-IANS)

नई दिल्ली : होली का नाम सुनते ही मन में गुदगुदी होने लगती है और हमारी आंखों के सामने रंग-गुलेल की तस्वीर आ जाती है. 2 मार्च यानी कल पूरे देश में होली मनाई जाएगी. यह रंगों का त्योहार कब से शुरू हुआ इसका जिक्र भारत की विरासत यानी कि हमारे कई ग्रंथों में मिलता है. शुरू में इस त्योहार को होलाका के नाम से भी जाना जाता था. इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ किया करते थे. मुगल शासक शाहजहां के काल में होली को ईद-ए-गुलाबी के नाम से संबोधित किया जाता था. होली से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं. इन कथाओं की जानकारी हम सबको होनी चाहिए, अगर आप नहीं जानते हैं तो आप भी जानिए-

  1. शिव-पार्वती और राधा-कृष्ण से जुड़ी है होली की कहानी
  2. 16वीं सदी में भी देश में मनाया जाता था रंगों का त्योहार
  3. होलिका के आग में जलकर भस्म होने पर मनाई गई होली

शिव पार्वती से जुड़ी है होली की कहानी
होली को लेकर जिस पौराणिक कथा की सबसे ज्यादा मान्यता है वह है भगवान शिव और पार्वती की. पौराणिक कथा में हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो, लेकिन शिव अपनी तपस्या में लीन थे. कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आते हैं और प्रेम बाण चलाते हैं जिससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो जाती है.

शिवजी को उस दौरान बड़ा क्रोध आता है और वह अपनी तीसरी आंख खोल देते हैं. उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो जाता है. इन सबके बाद शिवजी पार्वती को देखते हैं. पार्वती की आराधना सफल हो जाती है और शिवजी उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम के विजय के उत्सव में मनाया जाता है.

होलिका आग में जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया
दूसरी पौराणिक कथा हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की है. प्राचीन काल में अत्याचारी हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान पा लिया था. उसने ब्रह्मा से वरदान में मांगा था कि उसे संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर मार न सके. वरदान पाते ही वह खुद को अमर समझने लगा. उस दौरान परमात्मा में अटूट विश्वास रखने वाला प्रह्लाद जैसा भक्त पैदा हुआ. प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसे भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि प्राप्त थी.

हिरण्यकश्यप ने सभी को आदेश दिया था कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे, लेकिन प्रह्लाद नहीं माना. प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का संकल्प लिया. प्रह्लाद को मारने के लिए उसने अनेक उपाय किए, लेकिन वह हमेशा बचता रहा. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था.

हिरण्यकश्यप ने उसे अपनी बहन होलिका की मदद से प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई. होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में जा बैठी. उसके बाद हुआ यूं कि होलिका ही आग में जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया. तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा. 

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राक्षसी पूतना को जब कृष्ण ने मारा, तो मनी थी होली 
इसके अलावा तीसरी पौराणिक कथा है भगवान श्रीकृष्ण की, जिसमें राक्षसी पूतना एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर बालक कृष्ण के पास आती है और उन्हें अपना जहरीला दूध पिला कर मारने की कोशिश करती है. जब पूतना ने दूध पिलाना शुरू किया, तो बालक कृष्ण ने उसके प्राण ले लिए. कहा जाता है कि मृत्यु के पश्चात पूतना का शरीर लुप्त हो गया, इसलिए ग्वालों ने उसका पुतला बना कर जला डाला, जिसके बाद से मथुरा होली का प्रमुख केन्द्र बन गया.  

राधा-कृष्ण की प्रेम से जुड़ा है होली का त्योहार 
होली का त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है. वसंत के इस मोहक मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है. होली के दिन वृन्दावन राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबा हुआ होता है.

16वीं सदी के मंदिरों से भी मिले हैं होली के प्रमाण 
होली को प्राचीन हिंदू त्योहारों में से एक माना जाता है और इसके ऐसे प्रमाण मिले हैं कि ईसा मसीह के जन्म से कई सदियों पहले से होली का त्योहार मनाया जा रहा है. होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमीमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है. प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां मिली हैं. विजयनगर की राजधानी हंपी में 16वीं सदी का एक मंदिर है. इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे को रंग लगा रहे हैं. 

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