बीजेपी के सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले रमन सिंह इस बार न सिर्फ सत्ता गंवा रहे हैं. बल्कि उनकी पार्टी राज्य में बुरी तरह हार रही है. वह राज्य में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा थे.
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नई दिल्ली : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh elections 2018) के परिणामों से ये तय हो गया है कि इस बार रमन सिंह अपनी सत्ता गंवा चुके हैं. बीजेपी के सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले रमन सिंह इस बार न सिर्फ सत्ता गंवा रहे हैं. बल्कि उनकी पार्टी राज्य में बुरी तरह हार रही है. वह राज्य में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा थे. उन्होंने सरकार में लौटने की संभावना जताई थी. लेकिन वह इस मुकाबले में बुरी तरह पिछड़ गए. यहां तक कि एक बार तो वह अपनी ही सीट पर पिछड़ गए थे. लेकिन इसके बाद वह आगे हो गए.
बीजेपी के सबसे लंबे समय तक लगातार सीएम रह चुके रमन सिंह इस बार के चुनावों में कठिन मुकाबले में थे. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ-साथ इस बार अजित जोगी और बीएसपी गठबंधन भी मैदान में थे. बीजेपी पिछले 15 साल से सत्ता में थी. रमन सिंह की छवि एक साफ और सौम्य नेता की रही. लेकिन इस बार कई आरोपों के छींटे उनके दामन तक भी पहुंचे.
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स सत्ता को फिर से हासिल करने के लिए रमन सिंह सबसे मुश्किल लड़ाई लड़ रहे हैं, वह उन्हें संयोग से मिली. वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ और कांग्रेस ने अजित जोगी मुखिया बना दिया. 2003 आमने सामने की लड़ाई में बीजेपी ने दिलीप सिंह जूदेव की मूंछों को दांव पर लगाकर चुनाव में जीत हासिल कर ली. सभी को लग रहा था कि जूदेव ही सीएम बनेंगे, लेकिन उससे पहले ही मामला बिगड़ गया. घूस लेने के एक टेप में जूदेव पकड़े गए. बीजेपी आलाकमान ने रातोंरात रमन सिंह को छत्तीसगढ़ का भाग्य विधाता बना दिया. रमन सिंह तब विधायक भी नहीं थे. वह वाजपेयी मंत्रिमंडल में जूनियर मंत्री के तौर पर काम कर रहे थे.
आपको जानकर हैरानी होगी कि रमन सिंह ने पहले दो विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी, लेकिन तीसरे ही चुनाव में वह हार गए थे. लेकिन इसके बाद उनकी किस्मत ने ऐसा पलटा खाया कि वह छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े नेता बन गए . उनकी राजनीतिक यात्रा कुछ इस तरह की रही....
रमन सिंह कवर्धा (अब कबीरधाम जिला) के थाटापुर जिले में 15 अक्टूबर 1952 को एक किसान परिवार में पैदा हुए. अपने आरंभिक राजनीतिक जीवन से ही सिंह राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ गए. उन्होंने बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन) की उपाधि हासिल की. वह अपने स्कूल के दिनों के दौरान भारतीय जनसंघ में शामिल हुए. इन्होंने श्रीमती वीणा सिंह से विवाह किया और इनके दो बच्चे हैं, बेटा अभिषेक सिंह और बेटी अस्मिता सिंह.
1990 में वह मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित किए गए. 1993 में वह फिर से निर्वाचित हुए. लेकिन 1998 में हुए अविभाजित मप्र के चुनावों में वह हार गए. ये उनके लिए बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. छह महीने बाद ही लोकसभा चुनावों में उन्हें टिकट दे दिया गया. इस चुनाव में उन्होंने मोतीलाल वोरा जैसे दिग्गज कांग्रेसी को मात दे दी. इसके बाद वह केंद्र में पहुंचे और वाजपेयी सरकार में मंत्री बन गए. अगर रमन सिंह तीसरा चुनाव नहीं हारते तो तय है कि वह लोकसभा नहीं जा पाते और वाजपेयी की नजरों में नहीं चढ़ते. तब शायद उन्हें छत्तीसगढ़ सीएम की कुर्सी भी नहीं मिलती. इस चुनाव को वह खुद अपने लिए टर्निंग प्वाइंट मानते हैं.
1999 में पहली बार वह लोकसभा चुनावों के मैदान में उतरे. तभी उन्होंने अहसास करा दिया था कि वह राजनीति के गलियारों में बहुत तेजी से दौड़ेंगे. अपने पहले ही चुनाव में राजनांदगांव से उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को हरा दिया. इस तरह वह लोकसभा में पहुंचे. 1999 में जीतने के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा मंत्रिमंडल में शामिल हुए. इन्होंने राज्य के केंद्रीय मंत्री के रूप में वाणिज्य और उद्योग के लिए 1999 से 2003 तक कार्य किया.
छत्तीसगढ़ में 2003 में बीजेपी की वापसी हुई. लेकिन दिलीप सिंह जूदेव जैसे ही सीएम की रेस से बाहर हुए, अचानक से रमन सिंह का चेहरा सामने पेश किया गया. उसके बाद से इस 56 वर्षीय आयुर्वेद चिकित्सक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2004 में वह छत्तीसगढ़ विधानसभा के सदस्य चुने गए. उन्होंने 2008 में राजनांदगांव से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.