छत्तीसगढ़ः नक्सल प्रभावित जगरगुंडा में 13 सालों बाद खुला स्कूल, मंत्री कवासी लखमा ने बच्चों को बांटी किताबें
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छत्तीसगढ़ः नक्सल प्रभावित जगरगुंडा में 13 सालों बाद खुला स्कूल, मंत्री कवासी लखमा ने बच्चों को बांटी किताबें

जिला मुख्यालय से 98 किलोमीटर दूर बीहड़ों में बसे जगरगुंडा गांव की तस्वीर तब बिगड़ गई जब यहां नक्सल आतंक बढ़ा. नक्सलियों ने पाठशालाएं तोड़ दीं और यह इलाका वर्षों तक माओवादियों की जनविरोधी विचारधारा की राजधानी रहा.

मंत्री कवासी लखमा ने बच्चों को बांटी कॉपी और किताबें

अविनाश प्रसाद/बस्तरः नक्सल आतंक के लिए कुख्यात छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा जिले का अति नक्सल प्रभावित गांव जगरगुंडा 13 वर्षों के बाद एक बार फिर बच्चों के "इमला, पहाड़ा और निबन्ध" की आवाज के गूंजेगा. दुनिया से 13 वर्षों से कटा हुआ यह गांव किसी खुले जेल की तरह रहा है जहां लोग सुरक्षाबलों की निगरानी में कटीले तारों के बीच जिंदगी जीने को मजबूर रहे हैं. इस गांव में 13 वर्षों से नक्सल प्रभाव के चलते पाठशालाएं नही खुला करती थी, लेकिन अब नए शिक्षण सत्र के पहले ही दिन जगरगुंडा में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक पाठशालाएं खोल दी गई हैं. स्कूल का पहला दिन यहां ग्रामीणों के लिए किसी त्योहार सा रहा. छत्तीसगढ़ राज्य में जगरगुंडा सुकमा जिले का सर्वाधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता है. 

जिला मुख्यालय से 98 किलोमीटर दूर बीहड़ों में बसे जगरगुंडा गांव की तस्वीर तब बिगड़ गई जब यहां नक्सल आतंक बढ़ा. नक्सलियों ने पाठशालाएं तोड़ दीं और यह इलाका वर्षों तक माओवादियों की जनविरोधी विचारधारा की राजधानी रहा. अब 13 वर्षों बाद यहां दोबारा पाठशालाएं प्रारम्भ की गई हैं. छत्तीसगढ़ में शिक्षण सत्र की शुरुआत के साथ जगरगुंडा में भी माध्यमिक से उच्च माध्यमिक तक कि कक्षाएं शुरू हो गईं. स्कूल का पहला दिन बच्चों और ग्रामवासियों के लिए किसी त्योहार की तरह रहा. कक्षा आठवीं के छात्र हिड़मा ने बताया कि वह शिक्षक बनना चाहता है. पाठशाला भवन का उद्घाटन करने पहुंचे मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि यहां बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी और उच्च शिक्षा में भी उन्हें हर तरह का सहयोग दिया जाएगा. 

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सलवा-जुडूम की वजह से बढ़ा था नक्सल आतंक 
वर्ष 2005 में बस्तर के विभिन्न इलाकों में ग्रामीणों ने नक्सलियों के खिलाफ स्व स्फूर्त सलवा जुडूम "शांति अभियान" की शुरुआत की थी. इससे बौखलाए नकसलियों ने गांव की पाठशालाएं और अन्य सरकारी भवन क्षतिग्रस्त कर दिए. ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए उन्हें राहत शिविरों में लाया गया. नक्सलियों ने सड़कें भी काट दी.  जगरगुंडा बाकी दुनिया से कट गया. 13 वर्षों से यहां के बच्चे या तो अन्य किसी इलाके के पोर्टाकेबिन में रहकर पढ़ने को मजबूर थे या पाठशाला से ही दूर थे. भवनों को क्षतिग्रस्त करने का मुख्य कारण इन भवनों में सुरक्षा बलों की तैनाती थी. 

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अब भी ग्रामीण रहते हैं राहत शिविर में
प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि जगरगुंडा ऐसा क्षेत्र है जहां अब भी राहत शिविर का संचालन किया जा रहा है. लगभग 1200 परिवार यहां निवास करते हैं. शासन द्वारा इस क्षेत्र में विकास को गति देने के लिए सड़कों से जोड़ा जा रहा है. इस क्षेत्र को जिला दंतेवाड़ा की ओर से और सुकमा के दोरनापाल से जोड़ा जा रहा है. 

वहीं पाठशालाओं के खुल जाने से इस इलाके में अब नई पीढ़ी शिक्षा से जुड़ेगी. देश के संविधान, कानून और अच्छे बुरे का ज्ञान नई पीढ़ी को होगा और वे नक्सलियों की सच्चाई जान सकेंगे . अशिक्षा की वजह से अब तक ग्रामीण नक्सलियों के बहकावे में आते रहे हैं . इस इलाके में शिक्षा का उजियारा पहुंचे तो नक्सलियों के लाल आतंक के अंधेरे को इससे मिटाया जा सकेगा. 

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