छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपत्ति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले गांव का हाल बेहाल, पेड़ के नीचे चल रही आंगनवाड़ी
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छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपत्ति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले गांव का हाल बेहाल, पेड़ के नीचे चल रही आंगनवाड़ी

बलरामपुर जिले में राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र गांव कोरवा बस्ती आज भी मूलभुत सुविधाओं से वंचित है. यहां आंगनबाड़ी भवन न होने के कारण मिनी आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन पेड़ के नीचे करना पड़ रहा है.

 

छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपत्ति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले गांव का हाल बेहाल, पेड़ के नीचे चल रही आंगनवाड़ी

शैलेंद्र सिंह/बलरामपुरः जिले में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति के पहाड़ी कोरबा आज के इस आधुनिक युग में भी मूलभूत जैसी सुविधाओं के लिए मशक्कत कर रहे हैं, मोहल्ले में आंगनबाड़ी भवन नहीं होने से केंद्र का संचालन पेड़ के नीचे करना पड़ रहा है. वहीं पूरे मामले में जनपद पंचायत के सीईओ ने गांव में जल्द ही सुविधाएं मुहैया कराने की बात कह रहे हैं.

बता दें कि बलरामपुर जिले के राजपुर विकासखंड के बरियो गांव के मूढ़े पारा जहां पर राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति के पहाड़ी कोरवा बस्ती में जहां पर करीब 12 घरों की आबादी निवासरत है. लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी शासन प्रशासन ग्रामीणों के लिए मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पाई है, जिसका खामियाजा यहां के ग्रामीणो को भुगतना पड़ रहा है

इमली पेड़ के नीचे लग रहा है मिनी आंगनबाड़ी के केन्द्र
मूढ़े पारा पहाड़ी कोरवा बस्ती में नौनिहालों का भविष्य संवारने के लिए सरकार द्वारा मिनी आंगनबाड़ी केंद्र तो शुरू किया गया है. लेकिन आज तक भवन का निर्माण नहीं हो सका है, जिसके कारण बच्चों को पेड़ के नीचे या फिर बरसात में किसी झोपड़ी में बैठाकर आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन किया जा रहा है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने घर से ही बच्चों के लिए पोषण आहार बनाकर लाती हैं, क्योंकि मोहल्ले में केंद्र का मध्यान भोजन बनाने और अन्य सामग्री रखने के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं है.

जल जीवन मिशन का अब तक नहीं मिला लाभ 
वहीं ग्रामीणो ने बताया कि बस्ती में पीने के पानी के लिए प्रशासन ने एक हैंडपंप तो लगवाया है. लेकिन उसमें पर्याप्त पानी नहीं निकल रहा है और इसके अलावा मोहल्ले में जल जीवन मिशन के तहत घरों में नल का कनेक्शन तो लगाया गया है, जो महज अब शो पीस बनकर रह गए हैं, जिसके कारण ग्रामीणों को पानी के लिए ढोढ़ी का सहारा लेना पड़ रहा है.

आजादी के सात दशक बाद भी नहीं पहुंची सड़क
पहाड़ी कोरबा बस्ती तक पहुंचने के लिए सड़क की व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण गांव में यदि कोई बीमार पड़ता है तो मोहल्ले में एम्बुलेंस भी नहीं पहुंच पाती और मरीज को खाट पर रखकर सड़क तक पहुंचाया जाता है. बरसात के मौसम में कोरवा बस्ती टापू में तब्दील हो जाता जाता है और यहां तक पहुंचने के लिए खेत से होकर कीचड़ भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है. ग्रामीण पीडीएस का राशन भी इसी रास्ते से चलकर बरिओ गांव से लेकर आते हैं.

कागजो में जिला हुआ था ODF घोषित
इसके अलावा पहाड़ी कोरवा बस्ती में स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनने वाले शौचालय की नींव तक नहीं रखी गई है और जिला करीब चार वर्ष पहले ही ODF घोषित हो चुका है. वहीं ग्रामीणों को शौच के लिए खुले में जाना पड़ता है. शौचालय निर्माण में भ्रष्टाचार किया गया था, जिसका खामियाजा यहां के ग्रामीणो को भुगतना पड़ रहा है.

सीईओ ने दिया आश्वासन

आपको बता दें कि जिला प्रशासन द्वारा समय समय पर विशेष पिछड़ी जनजाति वाले क्षेत्रों में शिविर लगाकर ग्रामीणों की समस्या का निराकरण किया जाता है. लेकिन प्रशासन का अमला जमीन पर कैसे काम करता है. आप इस गांव के विकास से अंदाजा लगा सकते हैं. फिलहाल अब पूरे मामले में जनपद पंचायत के सीईओ विनोद जायसवाल ने गांव में जल्द ही मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराने का आश्वासन दिया है.

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