बस्तर में रथ यात्रा के दौरान तुपकी चलाकर भगवान जगन्नाथ को प्रणाम करने की अनूठी प्रथा है. साथ ही ये तुपकी ग्रामीणों के लिए आय का स्रोत भी हैं.
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अविनाश प्रसाद/बस्तर: देश भर में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा उत्सव बस्तर में अनोखे तरीके से निकाली जाती है. यहां लोग रथ यात्रा के दौरान तुपकी चलाकर भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद लेते हैं. दरअसल बस्तर में आदिवासी समुदाय के लोग जंगलों से बांस लाते हैं और इस बांस से बंदूक जैसी संरचना बनाते हैं. इसे तुपकी कहते हैं. तुपकी शब्द तोप शब्द से मिलता जुलता है. तुपकी एक तरह से तोप या बंदूक का कार्य ही करती है, लेकिन यह बहुत छोटी और खिलौने जैसी संरचना होती है.
बस्तर के लोग श्रद्धा के साथ निभाते हैं परंपरा
तुपकी के भीतर जंगली फल पेंग भरा जाता है और बांस की ही बनी एक डंडी से दबाव डालने पर पेंग फल गोली की तरह बाहर निकलता है. लोग इसी तुपकी को चलाकर भगवान जगन्नाथ को प्रणाम करते हैं. इसकी शुरुआत यहां कब से हुई इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन बस्तर का जनमानस बड़ी श्रद्धा के साथ इस परंपरा को निभाता है.
तुपकी ग्रामीणों की रोजी-रोटी का जरिया
ग्रामीण हफ्तों पहले ही जंगल से बांस की लकड़ियां काट कर ले आते हैं और तुपकी के निर्माण का कार्य प्रारंभ कर देते हैं. गुंचा यानी रथ यात्रा के दिन भी इसे लेकर जगदलपुर पहुंचते हैं और यहां लोग भगवान जगन्नाथ के सम्मान में ग्रामीणों से इसे खरीदते हैं. एक तरह से यह ग्रामीणों की रोजी-रोटी का जरिया भी है, लोग आपस में भी एक दूसरे को मारकर ऐसे आनंद लेते हैं. भगवान जगन्नाथ को प्रणाम करने की यह प्रथा पूरे देश में केवल बस्तर में पाई जाती है.