बच्चे खुद का नाम नहीं लिख पाते थे, आज वे अंगुलियों पर करते हैं कैलकुलेशन, देखिए अनोखी पाठशाला
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बच्चे खुद का नाम नहीं लिख पाते थे, आज वे अंगुलियों पर करते हैं कैलकुलेशन, देखिए अनोखी पाठशाला

लॉक डाउन खुलने के बाद से खुले आसमान में लगने वाली इस पाठशाला की शुरुआत 5 बच्चों से हुई. अब देखते-देखते ही 500 से ज्यादा गरीब बच्चों के ये नौजवान गुरु बन गए.

बच्चे खुद का नाम नहीं लिख पाते थे, आज वे अंगुलियों पर करते हैं कैलकुलेशन, देखिए अनोखी पाठशाला

ग्वालियर: कोरोनो संक्रमण के चलते जहां लाखों लोग नौकरी जाने से बेरोजगार हो गए, तो कई लोगों ने डिप्रेशन में आकर खुदकुशी तक कर ली. ऐसे में ग्वालियर में बेरोजगार युवाओं की एक टोली वो काम कर रही है, जिसे देखकर हर कोई उन्हें सैल्युट करने लगता है. यहां पर कुछ युवा गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देकर उन्हें पढ़ने लिखने के काबिल बना रहे है.

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दरअसल ग्वालियर के रहने कुछ नौजवान युवक जो अलग-अलग संस्थाओं में शिक्षक की नौकरी कर अच्छा खासा वेतन लेते थे, लेकिन कोरोना महामारी और लंबे लॉकडाउन के कारण उनकी नौकरी चली गयी. जिससे वह निराश नहीं हुए और उन्होंने अपने पेशे को जारी रखने के लिए ऐसे गरीब बच्चों को पढ़ाने का फैसला लिया जो बेहद गरीब घरों से है. 

लॉक डाउन बाद शुरू हुई पाठशाला
लॉक डाउन खुलने के बाद से खुले आसमान में लगने वाली इस पाठशाला की शुरुआत 5 बच्चों से हुई. अब देखते-देखते ही 500 से ज्यादा गरीब बच्चों के ये नौजवान गुरु बन गए. इनमे कई बच्चे तो ऐसे हैं जो रेलवे ट्रैक के किनारे रहते हैं और कुछ दिन पहले तक अपना नाम लिखना भी नहीं जानते थे, लेकिन अब यह बच्चें 2 से लेकर 12 तक के पहाड़े बिना रूके बोल रहे है.

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शिक्षा पर सबका अधिकार
वहीं यहां पढ़ाने वाले युवा शिक्षक का कहना है कि क्यों न समाज में ऐसा काम किया जाए, जिससे जिन बच्चों के मां पिता स्कूल में फीस नहीं भर पा रहें है, जिनका काम छीन गया है, ऐसे बच्चों को पढ़ाया जाए. क्योंकि शिक्षा पर सबका अधिकार है. हम यहां 4-5 महिनों से पढ़ा रहे है, जिससे बच्चों में काफी फर्क पढ़ गया है. जो बच्चे नाम नहीं लिखना जानते थे, वह अब खुद लिख पा रहे है.

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हम भी इस पृष्ठभूमि से आये है
यहां बच्चों को निशुल्क पढ़ा रही एक युवा शिक्षिका का कहना है कि पहले भोपाल में एनजीओ में बच्चों को पढ़ाई करवाती थी, लेकिन ग्वालियर आने के बाद से मैं कोशिश कर रही थी, बच्चों को पढ़ाया जाए, तो हम यहां आ गए. बच्चों को निशुल्क पढ़ाने में हमें कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि हम भी इसी पृष्ठभूमि से आये है.

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