मध्य प्रदेश में दशहरे का पर्व धूमधाम से मनाया गया, प्रदेशभर में बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण के पुतले का दहन किया गया, लेकिन प्रदेश में रावण को लेकर कई मान्यताएं भी हैं, जिनमें एक मान्यता रावण के पुतले की जली हुई लकड़ियों को घर ले जाने की भी है. इस बार भी यह परंपरा निभाई गई, जानिए इस अनोखी मान्यता की वजह.
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इरशाद हिंदुस्तानी/बैतूल। दशहरा का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया गया, बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण के पुतले को दशहरे पर पूरे देश मे जलाने की परंपरा है. लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में रावण को लेकर कई मान्यताएं भी हैं, मध्य प्रदेश में भी ऐसी ही एक मान्यता है, जहां लोग रावण के जले पुतले की लकड़ियों को घर ले जाते हैं, जिससे यह परंपरा पूरे देश में चर्चा का विषय भी मानी जाती है. आप भी सोच रहे होंगे की आखिर ये लोग रावण के पुतले की लकड़ियों को घर क्यों ले जाते हैं तो इसके पीछे की वजह हम आपको बताते हैं.
लकड़ियों को शुभ मानते हैं बैतूल के लोग
दरअसल, लोग रावण के जले पुतले की लकड़ियों को शुभ मानकर घर ले जाते है, यह अनोखी रस्म धन धान्य की प्राप्ति के लिए निभाई जाती है, जो मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में होती है. बैतूल में हर साल रावण कुंभकर्ण के पुतलों को जलाने की परंपरा बीते 65 सालों से जारी है, शहर के लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति पुतला दहन का कार्यक्रम आयोजित करती रही है, रावण दहन कार्यक्रम देखने के लिए स्टेडियम में हजारो दर्शकों की भीड़ जुटती है. लेकिन इनमें सैकड़ो ऐसे लोग भी होते हैं, जो इस मौके पर रावण के पुतले के दहन का बेसब्री से इंतजार करते हैं, लोगों को इंतजार होता है कि रावण के पुतले का दहन जल्द हो तो वे उसकी अस्थियां यानी पुतले की जली लकड़ियां बटोर ले.
पूजन कक्ष में रखी जाती हैं लकड़ियां
रावण के पुतले के दहन के बाद लोग पुतले की जली लकड़ियां जिंसमें बांस की की मचिया व लकड़ियां होती है को लोग जमीन पर रगड़कर बुझाते है और फिर इन लकड़ियों को ठंडा कर उन्हें घर ले जाकर कुछ लोग पूजन कक्ष में रख देते है, तो कई लोग इसे घर के मुख्य हिस्से में सुरक्षित रख देते है. यही वजह है कि पुतला जलते ही दर्जनों लोग इसकी जली लकड़ी बटोरने में जुट जाते हैं. कोशिश रहती है कि पुतला राख बनने से पहले उसकी लकड़ी कब्जे में कर ली जाए.
मान्यता है कि पुतला दहन के बाद लकड़ियां घर ले जाने से परिवार धन धान्य से परिपूर्ण रहता है, यहां लकड़ियां बटोरती गृहणी गीता की माने तो रावण ज्ञानी पंडित था. शनिदेव उनके पैर में रहते थे, देवी देवता ग्रह नक्षत्र उनके वश में थे पर घमंड की वजह से उनकी मृत्यु हुई. ज्ञानी पंडित होने की वजह से और धन-धान्य से परिपूर्ण होने के कारण उनकी राख और लकड़ी को घर ले जाते हैं, ताकि घर में सुख संपत्ति बनी रहे और धन की नहो. वहीं एक अन्य गृहणी वर्षा के मुताबिक उन्होंने बुजुर्गों से सुना है कि रावण दहन के बाद पुतले की जली लकड़ी घर पर रखने से सब कुछ अच्छा होता है.
इस बार भी बैतूल में कई लोग रावण के जले हुए पुतले की लकड़ियों को इस बार घर ले गए. लेकिन बैतूल जिले में निभाई जाने वाली इस अनोखी परंपरा की चर्चा प्रदेशभर में होती है. बता दें कि रावण को लेकर मध्य प्रदेश कई मान्यताएं है, जिनमें से एक भी खूब प्रचलित है.