सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, भोपाल गैस त्रासदी मामले में 7844 करोड़ मुआवजे की मांग खारिज
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, भोपाल गैस त्रासदी मामले में 7844 करोड़ मुआवजे की मांग खारिज

Supreme court on Bhopal Gas Tragedy: सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी मामले में आज यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों को बड़ी राहत देते हुए केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दी है.

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, भोपाल गैस त्रासदी मामले में  7844 करोड़ मुआवजे की मांग खारिज

Supreme Court on Bhopal Gas Tragedy: सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी में पीड़ितों के मुआवजे (compensation) को लेकर बड़ा फैसला (decision) सुनाई है. बता दें कि केंद्र ने दोषी पाई गई कंपनी यूनियन कार्बाइड के साथ समझौते को फिर से खोलने और पीड़ितों को  7844 करोड़ रुपये अतिरिक्त मुआवजा देने की बात कही थी. जिस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर दी है. साथ ही कोर्ट ने पूर्व में अदालत में दिए गए बयानों के अनुसार पीड़ितों को बीमा पॉलिसी तैयार नहीं करने को लेकर खिंचाई की है. सुप्रीम कोर्ट की मानें तो इस मामले में दम नहीं है. 

2010 में दायर की थी याचिका
गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा यह याचिका 2010 में दायर किया गया था, क्योंकि जहरीली गैस रिसाब के वजह से होने वाली बीमारियों के लिए लंबे समय से पर्याप्त मुआवजे और सही इलाज की मांग कर रहे हैं. केंद्र द्वारा यूनियन कार्बाइड से  7844 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मुआवजे की मांग की थी. जिस पर आज मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया है. मामले में शीर्ष अदालत का कहना है कि यह याचिका कानून के तहत चलने योग्य नहीं है और इस तथ्यों में भी कोई दम नहीं है.

16 हजार से अधिक लोगों की हुई थी मौत
बताते चलें के 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी देश का सबसे भीषण ओद्योगिक दुर्घटना माना जाता है. केमिकल फैक्ट्री में हुई जहरीली गैस के रिसाव के चलते रात को सो रहे हजारों लोग मौत के मुंह में चले गए. यह त्रासदी इतना भयंकर थी की आने वाली पीढ़यों को पर भी इसका असर देखने को मिलता है. घटना के समय लोगों के मरने से इलाके में दहशत फैल गई थी और हजारों लोग भोपाल से भागने का प्रयास करने लगे. दावा किया जाता रहा है कि इस दुर्घटना में करीब 16 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी. हालांकि कुछ आंकड़े करीब 8000 मौत बताती है और तत्कालीन सरकार 3700 के करीब मौत का दावा करती है. 

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