मध्य प्रदेश के सीधी जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर जनपद पंचायत सिहावल के ग्राम पंचायत बरबंधा में हरि सिंह ने 3 साल में पहाड़ का सीना चीर कर 60 फिट गहरा कुआं खोद कर पानी निकाल दिया है. लोग इन्हें सीधी के माउंटेन मैन कह रहे हैं.
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सीधीः आपने अब तक प्यार की कई ऐसी कहानियां सुनी होगी, जिसमें लोग प्यार के चक्कर में किसी भी हद तक गुजरने को तैयार हो जाते हैं. प्यार के चक्कर में कुछ लोग तो इस कदर दीवाने हो जाते हैं कि वो असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाते हैं. अपनी पत्नी की प्यार में शाहजहां ने मुमताज की याद में संगमरमर का ताजमहल बनवा दिया तो बिहार के दशरथ मांझी ने पत्नी की याद में पहाड़ खोदकर रास्ता निकाल दिया. ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के सीधी जिले से आया है, जहां हरि सिंह की पत्नी 2 किलोमीटर दूर पानी लाने जाती थी. पत्नी की परेशानी को देख हरि सिंह ने पहाड़ों का सीना चीर कर पानी निकाल दिया. लोग हरि सिंह की तुलना बिहार के दशरथ मांझी से कर रहे हैं.
पत्नी को लाना पड़ता था 2 किलोमीटर दूर से पानी
ग्राम पंचायत बरबंधा निवासी 40 वर्षीय हरि सिंह ने बताया है कि पत्नी सियावती की पानी की परेशानी को लेकर वे काफी चिंतित थे, उनकी पत्नी को 2 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था और उनसे पत्नी की यह परेशानी देखी नहीं जाती है. जिसकी वजह से उन्होनें चट्टानों से घिरे पहाड़ को खोदकर 20 फीट चौड़ा 60 फीट गहरा कुआं खोद डाला. हरि सिंह ने बताया है कि थोड़ा बहुत पानी मिल गया है, लेकिन जब तक समुचित उपयोग के लिए पानी नहीं मिल जाता तब तक यह कुआं खोदने का कार्य लगातार जारी रहेगा. इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े. बता दें कि तीन हजार की आबादी वाले इस गांव में लोग अभी भी पानी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित हैं.
3 वर्ष से कर रहे हैं कुंआ खोदने का काम
बातचीत के दौरान हरि सिंह ने बताया है कि कुंआ खोदने का कार्य विगत 3 वर्ष से जारी है. अब जाकर थोड़ा बहुत पानी मिल पाया है. अभी भी कुआं खुदाई का कार्य जारी है. कुआं खुदाई में हरि सिंह के साथ 3 वर्ष से उनकी पत्नी सियावती व दो बच्चे तथा एक बच्ची उनकी मदद में लगे हुए हैं. थोड़ा-थोड़ा करके उन्होंने अपनी पत्नी की परेशानी को दूर कर दिया है.
कठिन कार्य को किया आसान
हरि सिंह ने बताया कि शुरू में यह कार्य बहुत कठिन लग रहा था, क्योंकि पूरा का पूरा पत्थर खोदना था. मिट्टी की परत एक भी नहीं थी. ऐसे में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा किंतु मन मार कर बैठने की बजाए मन में हठधर्मिता को जागृत किया तथा संकल्प लिया कि इस दुनिया में कोई भी कार्य असंभव नहीं है. मैं यहां कुंआ खोदकर ही सांस लूंगा.
शासन प्रशासन जनप्रतिनिधियों का नहीं मिला सहयोग
पंचायत प्रतिनिधि प्रतिनिधि तथा सरकार चाहे लाख दावे कर ले लेकिन गरीबों तक उनकी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण हरि सिंह हैं. उन्होंने बताया है कि मेरे पास 50 डिसमिल जमीन का पट्टा है. इसके बावजूद भी पंचायत कर्मी गुमराह करने का प्रयास करते हैं. मैं कई बार उनसे सहायता मांगने गया लेकिन किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली और अंततः मैं यह कुआं खोदने के असंभव कार्य को संभव कर दिया.
दशरथ मांझी से हो रही तुलना
बिहार के दशरथ मांझी के द्वारा ग्राम गहलौर जिला गया बिहार में रास्ता नहीं होने से पत्नी को समय पर अस्पताल में नहीं पहुंचा पाए और उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई, जिसके पश्चात उन्होंने अपने मन में क्या था ना कि गांव के लोगों को अब इस समस्या का सामना न करना पड़े तो उन्होंने पूरे पहाड़ को तोड़ कर रास्ता बना दिया. जिसके बाद दशरथ मांझी के नाम पर "दशरथ मांझी द माउंटेन मैन" के नाम से फिल्म भी बनाई गई. वहीं 40 वर्षीय हरि सिंह एक कहानी भी दशरथ मांझी से कम नहीं है, इसिलिए लोग उन्हें सीधी के दशरथ मांझी के नाम से भी पुकारने लगे हैं.
आपको बता दें कि ग्राम पंचायत बरबंधा के सरपंच प्रतिनिधि का कहना है कि इनके कुंआ खनन कार्य के लिए हमने प्रयास किया, लेकिन उनके पास जो पट्टा का दस्तावेज था, वह उनके चाचा के नाम है और वह गुम गया है, जिसकी वजह से इनका कुंआ नहीं खुद पाया.
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