आज पांढुर्णा में खेला जाएगा 'खूनी खेल', जाम नदी के दोनों ओर से होती है पत्थरों की बारिश
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आज पांढुर्णा में खेला जाएगा 'खूनी खेल', जाम नदी के दोनों ओर से होती है पत्थरों की बारिश

Pandhurna Gotmar Mela: मध्य प्रदेश के पांढुर्णा में आज खूनी खेल के नाम से प्रसिद्ध गोटमार मेले का आयोजन किया जाएगा. इस मेले में जाम नदी के दोनों ओर से लोग एक दूसरे पत्थर फेंकते हैं. यह परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है. हर साल इस खेल में कई लोग घायल हो जाते हैं. यहां तक की कई लोगों की जान भी जा चुकी है. 

आज पांढुर्णा में खेला जाएगा 'खूनी खेल', जाम नदी के दोनों ओर से होती है पत्थरों की बारिश

Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के पांढुर्णा में आज मंगलवार को हजारों साल से चले आ रहे 'खूनी खेल' गोटमार मेले का आयोजन किया जाएगा. गोटमार मेले के लिए पांढुर्णा को देश-विदेश में एक अलग ही पहचान मिल चुकी है. आस्था से जुड़ी इस सालों पुराने परंपरा गोटमार मेले को खूनी खेल के नाम से भी जाना जाता है. इस खेल में पांढुर्णा की जाम नदी के दोनों ओर से लोग पत्थर बरसाते हैं. खूनी खेल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस पत्थरबाजी में हर साल कई लोग घायल हो जाते हैं. कई लोगों की मौत तक हो जाती है. 

इस बार यह मेला 3 सितंबर को है, लेकिन यह 2 सितंबर की शाम से ही शुरू हो गया. पोला त्यौहार खत्म होते ही लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर की बारिश करना शुरू कर दिया. कल यह खेल करीब 2 घंटे तक चला, अंधेरा होने से दोनों तरफ के लोग अपने अपने घर लौट गए. इसमें 10 से ज्यादा लोग घायल हो गए. सभी गोटमार खिलाड़कियों को सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया है. 

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नदी के बीच पेड़ लगातार करते हैं पत्थरों की बौछार
गोटमार मेला हर साल पोला त्यौहार के दूसरे दिन जाम नदी पर खेला जाता है. नदी के दोनों ओर से पांढुर्ना और सावरगांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं. गोटमार खिलाड़ी अपना खून बहाकर सालों से से चली आ रही गोटमार की इस परंपरा को कायम रखते हैं. सबसे पहले लोग चंडी माता के नाम से गोटमार मेले की शुरुआत करते हैं. गोटमार खिलाड़ी चंडी माता मंदिर पहुंचकर पूजा करते हैं और जाम नदी के बीचों बीच एक पेड़ लगाया जाता है. फिर एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार शुरू होती है. 

क्या है परंपरा?
मान्यता के मुताबिक, जाम नदी के किनारे पिंडारी समाज का प्राचीन किला था. सेनापति दलपत शाह था. महाराष्ट्र के भोसले राजा की सेना ने किले पर हमला बोल दिया था. पिंडारी समाज के पास अस्त्र-शस्त्र कम हुए तो उन्होंने सेना पर पत्थरों से हमला कर दिया. इस युद्ध में भोसले राजा की सेना हार गई. तब से ही पत्थर मारने की परंपरा चली आ रही है.

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क्या है दूसरी कहानी?
कहा जाता है कि हजारों साल पहले सावरगांव की लड़की और पांढुर्णा के लड़के के बीच प्रेम था. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन दोनों गांव के लोग इस प्रेम से नाराज थे. पोला त्यौहार के दूसरे दिन दोनों युवक-युवती शादी के लिए घर से भाग गए. इस दौरान जाम नदी की बाढ़ में फंस गए. जब इस बात का पता दोनों गांव के लोगों को चला तो लोग नदी किनारे जमा हो गए. लोगों ने प्रेमी युगल पर पत्थरों से बौछार कर दी. इससे दोनों की मौत हो गई. इसी प्रेमी युगल की याद में गोटमार का खेल खेला जाता है.

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