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नई दिल्ली: 18 जुलाई से संसद के मानसून सत्र की शुरुआत होने वाली है. लोकसभा सचिवालय ने अमर्यादित शब्दों की लिस्ट जारी की है.. जिनमें शकुनी, बहरी सरकार, खालिस्तानी जैसे शब्द शामिल हैं.. इस बार सदन में सांसद इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे
क्या है असंसदीय शब्द ?
अगर असंसदीय शब्दों और नियम को समझना है, तो पहले आर्टिकल 105 को समझना होगा. अनुच्छेद 105 के तहत सदन के दोनों सदन में सांसद को अनुशासन बना कर रखना बेहद जरूरी है. सांसद अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. प्रोसीजर कंडक्ट ऑफ बिजनेस नियम 380 के अनुसार अगर लोकसभा अध्यक्ष को ऐसा लगता है, कि किसी सांसद ने अमर्यादित शब्द का इस्तेमाल किया है, तो अध्यक्ष उन्हें सदन की कार्यवाही से हटाने का आदेश जारी कर सकता है. बता दें कि शब्द लिस्ट की बुकलेट को सबसे पहले 1999 में 'असंसदीय अभिव्यक्ति' के नाम से तैयार किया गया था.
कैसे हटाए जाते हैं रिकॉर्ड से नाम ?
नियम 380 के मुताबिक अगर अध्यक्ष को लगता है, कि सदन में चर्चा के दौरान असंवेदनशील, अपमानजनक या असंसदीय भाषा का इस्तेमाल सांसद द्वारा किया गया है, तो अध्यक्ष लोकसभा की कार्यवाही से उन्हें हटाने का आदेश दे सकता है. वहीं अगर नियम 381 की बात करें तो इसके तहत अमर्यादित सदन की कार्यवाही के हिस्से को हटाने के लिए, उस हिस्से को मार्क किया जाता है, चिन्हित करने के बाद 'अध्यक्ष के आदेश के अनुसार इसे हटाया गया' इस नोट के साथ उसे हटा दिया जाता है.
विपक्ष ने क्या कहा?
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने बुकलेट को नए भारत की नई व्याकरण की रचना बताया. चौधरी ने कहा कि हम सदन में इन शब्दों का प्रयोग करेंगे. सरकार आज कह रही है की ये शब्द मत बोलो कल कहेगी की भगवा पहन कर सदन में आओ.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे नई इंडिया की नई डिक्शनरी बताया. उन्होंने कहा कि सिर्फ उन शब्दों को बैन किया गया है, जिन से सरकार के सही काम को बताया जाता है.
आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने भी नए आदेश का विरोध किया है. राघन ने कहा नई लिस्ट देखकर लगता है की सरकार जानती है की उनके काम को कौन से शब्द बखूबी परिभाषित करते हैं इसलिए सिर्फ उन्ही शब्दों को लिस्ट से हटा दिया गया है.
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने नई लिस्ट का विरोध करते हुए कहा कि इस लिस्ट में 'संघी' शब्द आखिर क्यों नहीं शामिल है. उन्होंने कहा कि सरकार विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले लगभग सभी शब्दों पर प्रतिबंध लगा रही है. क्या 'सत्य' असंसदीय शब्द है.
बता दें कि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा है कि अमर्यादित शब्दों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. सिर्फ इन शब्दों को अमर्यादित घोषित किया गया है. ओम बिरला ने कहा कि अमर्यादित शब्दों को हटाने की प्रक्रिया 1954 से चली आ रही है. हर बार असंसदीय शब्दों पर किताब का विमोचन किया जाता था. हमने सिर्फ कागजों को बचाने के लिये इसे इंटरनेट पर डाला है. सरकार ने इन शब्दों को बैन नहीं किया है.
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बता दें कि संसद के दोनों सदन राज्यसभा और लोकसभा में शब्दों के इस्तेमाल को लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई है. जुमलाबाजी, कोरोना स्प्रेडर, जयचंद, भ्रष्ट, बाल-बुद्धि, शर्म, विश्वासघात, ड्रामा, पाखंड, लॉलीपॉप, चांडाल-चौकड़ी, अक्षम, गुल-खिलाए, पिट्ठू, गद्दार, घड़ियाली आंसू, ख़रीद-फरोख़्त, काला दिन, विनाश पुरुष, तानाशाह, गिरगिट, सेक्सुअल हैरेसमेंट जैसे शब्दों को अमर्यादित माना गया है.. सचिवालय द्वारा जारी बुकलेट के अनुसार ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं माना जाएगा.
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