चावल पर पंजाब-मध्य प्रदेश में हो रही चिकचिक, जानिए क्या है GI टैग का मसला? कैसे मिलता है?
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चावल पर पंजाब-मध्य प्रदेश में हो रही चिकचिक, जानिए क्या है GI टैग का मसला? कैसे मिलता है?

जिस GI टैग के लिए आमने-सामने हैं पंजाब-MP, 2004 में दार्जिलिंग को चाय के लिए मिला था, जानिए इससे जुड़े इंटरेस्टिंग फैक्ट

फाइल फोटो

भोपाल: GI टैग को लेकर मध्य प्रदेश और पंजाब के बीच सियासी गहमागहमी मची है. मध्य प्रदेश को बासमती चावल के लिए GI टैग देने की प्रक्रिया पर पंजाब के मुख्य मंत्री ने एतराज जताया है. यहां तक की कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. हालांकि कम ही लोग जानते होंगे की आखिर ये GI टैग होता क्या है. आज हम आपको GI टैग के बारे में बताएंगे.

क्या होता है GI टैग?
GI टैग को जियोग्राफिकल इंडिकेशंस (Geographical Indication) टैग कहा जाता है. 1999 में देश की संसद ने रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था. जिसके आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है.

किन-किन चीजों में मिलता है यह टैग?
GI टैग किसी भी उत्पाद के लिए एक प्रतीक चिन्ह की तरह होता है. भारत में GI टैग किसी विशेष फसल, प्राकृतिक और निर्मित उत्पादों के लिए दिए जाते हैं. कई बार एक ही फसल के लिए एक से अधिक राज्यों को भी GI टैग दिया जाता है. जैसे-बासमती चावल, जीआई टैग के तहत बासमती चावल पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड इत्यादि राज्य का अधिकार है.

किसे मिलता है GI टैग?
किसी भी वस्तु को GI टैग देने से पहले उसकी गुणवत्ता और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है. इसके बाद तय किया जाता है कि उस खास वस्तु की सबसे अधिक और मूल पैदावार निर्धारित राज्य की है या नहीं? इसके साथ ही भौगोलिक स्थिति का उस वस्तु की पैदावार में कितना योगदान है ये भी देखा जाता है.

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किन-किन राज्यों को प्राप्त है GI टैग?
भारत में सबसे पहले 2004 में दार्जिलिंग की चाय को GI टैग मिला था. महाबलेश्वर को स्ट्रॉबेरी के लिए, जयपुर को ब्लू पोटरी के लिए, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, मध्य प्रदेश के झाबुआ को कड़कनाथ मुर्गे के लए, कांगड़ा को पेंटिंग के लिए, नागपुर को संतरे के लिए, कश्मीर को पाश्मीना के लिए, हिमाचल को काले जीरे के लिए, छत्तीसगढ़ को जीराफूल, बंगाल को रसगुल्ले के लिए और ओडिशा को कंधमाल हल्दी के लिए GI टैग दिया जा चुका है.

GI टैग का अधिनियम-
1-औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिए GI टैग को पेरिस कन्वेंशन के अंतर्गत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के रूप में शामिल किया गया था.
2-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर GI टैग का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के द्वारा किया जाता है.
3-भारत में GI टैग का विनियमन वस्तुओं के भौगोलिक सूचक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम 1999 के अंतर्गत किया जाता है.
4-वस्तुओं के भौगोलिक सूचक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 15 सितंबर, 2003 से लागू हुआ था.
5-जीआई टैग का अधिकार हासिल करने के लिए चेन्नई स्थित GI टैग डेटाबेस में आवेदन करना पड़ता है.
6-एक बार GI टैग का अधिकार मिल जाने के बाद 10 वर्षों तक GI टैग मान्य होते हैं. इसके उपरांत उन्हें फिर रिन्यू कराना पड़ता है.

GI टैग के क्या फायदें हैं?
1- GI टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले उत्पादन को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है.
2- GI टैग से उत्पादों के अनधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है.
3- यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाली वस्तुओं का महत्व बढ़ा देता है.
4- GI टैग से सदियों से चली आ रही परंपरागत ज्ञान को संरक्षित एवं संवर्धन किया जा सकता है.
5- GI टैग  से स्थानीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में मदद मिलती है.
6- GI टैग से टूरिज्म और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलती है.

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