बेटियों ने हौसले से दिलाया गांव को नाम, अब बनने लगी है उनके 'ब्रांड' की पहचान
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बेटियों ने हौसले से दिलाया गांव को नाम, अब बनने लगी है उनके 'ब्रांड' की पहचान

दुगली गांव की लड़कियों ने 10 साल पहले 10 लाख रुपये का लोन लेकर अपना कारोबार शुरू किया था. शुरुआत में आई परेशानियों के पार पाते हुए उन्होंने अपने काम को जारी रखा और प्रदेश भर में एक अलग पहचान बनाई.

प्रोडक्ट बनाती जागृत्ति समूह की कर्मचारी

धमतरी/देवेंद्र मिश्राः धमतरी जिले के जंगलों में बसे दुगली गांव की लड़कियों ने 10 साल पहले एक समूह बना कर जो रोजगार का काम शुरू किया था. वह अब एक सफल उद्योग का रूप ले चुका है. इन लड़कियों ने अपनी सूझबूझ, हौसले और एकता के बल पर जंगल की लकड़ियों से प्रोडक्ट बनाकर दुगली गांव को ब्रांड के रूप में खड़ा कर दिया.

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10 लाख का कर्ज लेकर शुरू किया था कारोबार
दुगली का शहद, दुगली का आंवला, दुगली का एलोवेरा, दुगली के दोना पत्तल, इन प्रोडक्ट्स ने दुगली एक ब्रांड की पूरे प्रदेश में पहचान बना दी. इस दुगली गावं को ब्रांड बनाने में धमतरी की लड़कियों का हाथ है, जिन्होंने किसी भी उच्च शिक्षा संस्थान से डिग्री प्राप्त नहीं की. 2009-10 में 10 लड़कियों ने 'जागृति' नामक समूह शुरू कर वनविभाग की मदद से 10 लाख का कर्ज लिया और अपने कारोबार की शुरुआत की.

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आज कमा रहे 4 लाख तक का मुनाफा
समूह हर साल 4 लाख तक का मुनाफा कमाने लगा है. यहां का बना तिखूर, बैचांदी, आवला कैंडी जैसे दर्जन भर प्रोडक्ट न सिर्फ धमतरी में, बल्कि प्रदेश के कई जिलों में बिकते हैं. प्रोडक्ट की गुणवत्ता इस तरह से मैंटेन की गई है कि लोग दूर-दूर से दुगली गांव आकर यहां का सामान खरीदते हैं. इन लड़कियों ने यह सब अपने गांव के आस-पास जंगल में मिलने वाले सामान से तैयार किया. अपनी कमाई से ये लड़कियां न सिर्फ अपने घर में आर्थिक मदद दे पाती हैं. बल्कि अपने पसंदीदा टीवी, फ्रिज और गहनों जैसी चीजें भी खरीद पाती है.

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वन विभाग कर रहा सहायता
इन लड़कियों की सहायता वन विभाग के जरिये हो रही है. चाहे लोन दिलवाने की बात हो, कच्चा माल खरीदना हो या कोई प्रशिक्षण दिलवाना हो. वन विभाग हर तरह से उनकी मदद कर रहा है. इस साल तो दुगली के सहायता समूह ने 500 क्विंटल तिखूर का संग्रहण किया, यह प्रदेश का एकमात्र तिखूर प्रोसेसिंग केंद्र भी है. बाजार में तिखूर 1000 रुपये प्रति किलो में बिक रहा. जो छत्तीसगढ़ के सिहावा क्षेत्र में ही पाया जाता है.

लड़कियों के स्वसहायता समूह ने पूरे दुगली इलाके में रोजगार का एक चैनल खड़ा कर दिया. छोटे से गांव के इस कॉन्सेप्ट को पूरे प्रदेश में कई स्थानों पर अपनाया जा सकता है. इससे छत्तीसगढ़ के वनोपज का सही इस्तेमाल भी हो पाएगा और प्रदेश में रोजगार की समस्या से डटकर मुकाबला भी किया जा सकेगा.

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