लेटरल एंट्री यानी UPSC की परीक्षा पास किए बगैर भी प्रशासनिक अधिकारी बनाया जाता है. लेटरल एंट्री के जरिए निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को सीधे जॉइंट सेकेट्री या डायरेक्टर के पद पर नियुक्त मिलती है.
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नई दिल्ली: UPSC यानी संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा को दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है. तीन चरणों में होने वाली इस परीक्षा के जरिए देश के लिए प्रशासनिक अधिकारी चुने जाते हैं. इन दिनों लेटरल एंट्री की वजहों से यह परीक्षा चर्चा में है.
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लेटरल एंट्री यानी UPSC की परीक्षा पास किए बगैर भी प्रशासनिक अधिकारी बनाया जाता है. लेटरल एंट्री के जरिए निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को सीधे जॉइंट सेकेट्री या डायरेक्टर के पद पर नियुक्त मिलती है. तो चलिए जानते हैं कि लेटरल एंट्री का पूरा मामला क्या है और इस पर इतना बवाल क्यों मचा हुआ है...
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हाल ही में यूपीएससी ने लेटरल एंट्री से पदों की भर्ती के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था. इस नोटिफिकेशन को लेकर विपक्षी पार्टियां केन्द्र सरकार के खिलाफ हमलावर हो गई हैं और लेटरल एंट्री के जरिए पदों को भरने का लगातार विरोध कर रही हैं. विपक्ष का आरोप है कि केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार अपने लोगों को पीछे के दरवाजे से ब्यूरोक्रेसी में घुसा रही है.
समझिए क्या है लेटरल एंट्री
वैसे तो 5 अगस्त 2005 में यूपीए सरकार ने प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था जिसमें लेटरल एंट्री का जिक्र हुआ था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने साल 2016 में इसकी संभावना को तलाशने के लिए एक कमेटी बनाई. कमेटी के मूल प्रस्ताव में आंशिक बदलाव कर लेटरल एंट्री सिस्टम को लागू कर दिया गया.
लेटरल एंट्री को लेकर विपक्ष केंद्र पर हमलावर
लेटरल एंट्री को आसान भाषा में समझें तो संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास किए बिना भी ब्यूरोक्रेसी में उच्च पद पर नियुक्ति मिल सकती है. यानी प्राइवेट कंपनी में काम करने वाला 40 तक की उम्र का कोई भी लीडर सरकारी विभागों में नेतृत्व करने वाले पद पर नियुक्त हो सकता है. विपक्ष इसे भले ही ब्यूरोक्रेसी में पिछले दरवाजे से अपने लोगों को दाखिल कराने की चाल कहे.
लेटरल एंट्री को लेकर सरकार का क्या कहना?
लेकिन सरकार का तर्क है कि यदि कोई योग्य व्यक्ति प्राइवेट सेक्टर में बेहतर नेतृत्व दे चुका है. उसमें सरकार की पॉलिसी अच्छे से लागू करने की योग्यता है. उसे किसी क्षेत्र विशेष में काम करने का अनुभव और दक्षता हासिल है, तो ऐसे लोगों को सरकार अपने उपयोग में क्यों नहीं ले सकती. केंद्र सरकार का तर्क है कि कई बार प्रशासनिक अधिकारी कई ऐसे कामों को करने की दक्षता नहीं रखते. ऐसे में उस कार्य क्षेत्र का कोई विशेषज्ञ है तो उसे लेटरल एंट्री के जरिए नेतृत्व का मौका दिए जाने में कोई दिक्कत नहीं है.
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लेटरल एंट्री के लिए क्या है निर्धारित योग्यता
केन्द्र सरकार ने लेटरल एंट्री के लिए भी योग्यता तय की है. नियमों के अनुसार इन पदों के लिए आवेदन करने के इच्छुक उम्मीदवारों के पास उस क्षेत्र विशेष में कार्य करने का कम से कम 15 साल का अनुभव होना चाहिए, जिसके लिए वह अप्लाई कर रहा है. साथ ही उसकी अचीवमेंट क्या रही हैं, जिस क्षेत्र में उसने कार्य किया उसमें परफॉर्मेंस कैसा रहा, इन चीजों को भी परखा जाता है. आवेदन करने वाले उम्मीदवार को कैबिनेट सेक्रेटरी की कमेटी के सामने साक्षात्कार से गुजरना होगा. इस साक्षात्कार को पास करने वाले को ही सीधे जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर नियुक्ति मिलेगी.
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