19वीं सदी में जब बिजली के बल्ब का अविष्कार हुआ था, तब इसे क्रांतिकारी अविष्कार माना गया था लेकिन तब लोगों ने यह सोचा भी नहीं होगा कि यह कृत्रिम रोशनी हमारे लिए मुश्किलें भी खड़ी कर सकती है.
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भोपालः अंधेरे में रहे आपको कितना वक्त हो गया है? कब आपने अंधेरी रात में आकाश में टिमटिमाते तारों को निहारा और कीट पतंगों की आवाजों को सुना है? अधिकतर लोगों का जवाब होगा कि लंबा समय या फिर याद नहीं! इसकी वजह है कि आज हम अंधेरे में रहना भूल गए हैं और कृत्रिम प्रकाश ने अब रात और दिन का अंतर कम कर दिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अंधेरे से दूरी हमारे जीवन के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है!
'प्रकाश प्रदूषण' बढ़ा रहा मुश्किल
19वीं सदी में जब बिजली के बल्ब का अविष्कार हुआ था, तब इसे क्रांतिकारी अविष्कार माना गया था लेकिन तब लोगों ने यह सोचा भी नहीं होगा कि यह कृत्रिम रोशनी हमारे लिए मुश्किलें भी खड़ी कर सकती है. डीडब्लू हिंदी की एक रिपोर्ट के अनुसार, आज दुनिया की 80 फीसदी आबादी की घने अंधेरे में रहने की आदत लगभग छूट गई है.
अब वैज्ञानिकों ने इसके खतरों के प्रति आगाह किया है. वैज्ञानिक इसे 'प्रकाश प्रदूषण' का नाम दे रहे हैं. दरअसल कृत्रिम रोशनी से हमारी रातें भी उजाले से भर रही हैं. इसके अलावा हम अधिकतर समय मोबाइल और लैपटॉप का इस्तेमाल करते रहते हैं. जिसका असर खतरनाक तरीके से हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. अत्यधिक रोशनी में रहने के चलते हमारी आंखों पर इसका गलत असर पड़ रहा है. साथ ही नींद ना आना, मोटापा और डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी होने लगती है. महिलाओं में तो अत्यधिक कृत्रिम रोशनी में रहने से स्तन कैंसर का भी खतरा बढ़ जाता है.
प्रकृति के लिए भी विनाशकारी
ना सिर्फ इंसानों के लिए बल्कि पक्षियों जीव-जंतुओं और प्रकृति के लिए भी कृत्रिम रोशनी की अधिकता विनाशकारी है. दरअसल कई पक्षियों का जीवन अधिक रोशनी से प्रभावित हो रहा है. अंधेरा ना होने के चलते रात में रहने वाले कीट पतंगे खत्म हो रहे हैं, जो कि खाद्य उत्पादों और प्रकृति के लिए बेहद अहम प्रक्रिया परागण के लिए जिम्मेदार होते हैं. अब कीट पतंगों की कमी से परागण की प्रकिया पर भी असर पड़ रहा है.
कुछ देशों में इस दिशा में काम भी हो रहा है लेकिन अंधेरे की अहमियत को समझने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास करने की जरूरत है. एक व्यक्ति भी अपने स्तर पर इस समस्या से निपटने में प्रयास कर सकता है. बस आपको कृत्रिम रोशनी में जरूरत पड़ने पर ही रहना चाहिए और धीमी रोशनी वाली लाइटों का इस्तेमाल करना चाहिए. साथ ही सबसे जरूरी अंधेरे में रहने की थोड़ी आदत डालिए और प्रकृति के नियमों को भी सम्मान दीजिए.