मणिपुर हिंसाः पुलिस की लचर जांच से सुप्रीम कोर्ट नाराज, डीजीपी को किया तलब
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मणिपुर हिंसाः पुलिस की लचर जांच से सुप्रीम कोर्ट नाराज, डीजीपी को किया तलब

Manipur Violence: मणिपुर हिंसा से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने राज्य में मई से जुलाई तक दर्ज की गई करीब  6500 एफआईआर को लेकर दायर स्टेटस रिपोर्ट पर कहा कि इसमे दी गई जानकारी से साफ है कि पुलिस की जांच बेहद धीमी और लचर रही है.

मणिपुर हिंसाः पुलिस की लचर जांच से सुप्रीम कोर्ट नाराज, डीजीपी को किया तलब

Manipur Violence: मणिपुर हिंसा से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने राज्य में मई से जुलाई तक दर्ज की गई करीब  6500 एफआईआर को लेकर दायर स्टेटस रिपोर्ट पर कहा कि इसमे दी गई जानकारी से साफ है कि पुलिस की जांच बेहद धीमी और लचर रही है. अपराध की वारदात होने से लेकर एफआईआर दर्ज करने और बयान दर्ज करने में बहुत देरी हुई. एक दो मामलों को छोड़कर ज़्यादातर मामलों में गिरफ्तारी नहीं हुई.

राज्य में कानून व्यवस्था, सरकारी मशीनरी ठप

कोर्ट ने यहां तक कह कहा कि  ऐसा लगता है कि राज्य में क़ानून व्यवस्था नाम की चीज़ नहीं बची है . पुलिस जांच में सक्षम नहीं है. मई से जुलाई तक राज्य में सवैंधानिक व्यवस्था पूरी तरह से ठप थी. हालात इस कदर खराब थे कि पुलिस जघन्य मामलों में भी एफआईआर तक दर्ज नहीं कर पा रही थी. कोर्ट ने मणिपुर के डीजीपी को सवालों के जवाब देने के लिए  शुक्रवार 7 अगस्त को होने वाली सुनवाई के पेश होने को कहा.

'सभी FIR की जांच CBI को नहीं दी जा सकती'

कोर्ट ने कहा कि ये व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है कि 6500 से ज़्यादा एफआईआर में सभी को जांच के लिए सीबीआई को दे दिया जाए. इसके साथ ही राज्य पुलिस को भी जांच की ज़िम्मेदारी नहीं दी जा सकती है. ऐसे में एक निष्पक्ष जांच की ज़रुरत है. इन केस में  जांच को कैसे आगे बढ़ाया जाए, इस पर कोर्ट ने सरकार से अपना सुझाव देने को कहा.

सरकार से सभी FIR का वर्गीकरण करने को कहा

कोर्ट ने सरकार से  कहा है कि वो अपराध की संगीनता के आधार पर  राज्य में दर्ज की गई कुल एफआईआर का वर्गीकरण करे. सरकार को बताना है कि कुल एफआईआर में कितनी FIR मर्डर, रेप की है. कितनी आगजनी या लूट की है. कितनी एफआईआर महिलाओं की गरिमा के साथ ठेस पहुंचाने  या धार्मिक स्थलो को नुकसान पहुंचाने की है.

इसके अलावा कोर्ट ने सरकार से इन केस में जांच की टाइम लाइन पेश करने को कहा है. सरकार को बताना है कि अपराध की घटना कब हुई, कब ज़ीरो एफआईआर दर्ज हुई, कब रेगुलर एफआईआर दर्ज हुईं, कब बयान दर्ज हुए और अगर गिरफ्तारी हुई तो वो कब हुई.

कमेटी के गठन का दिया संकेत

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने संकेत दिए है कि वो हाई पावर कमेटी का गठन कर सकता है जिसमे हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज शामिल हो. इस कमेटी को जिम्मा दिया जा सकता है कि वो राज्य के हालात का समग्र आकलन करें. पुर्नवास  और राहत कार्यों को देखे और ये सुनिश्चित करें कि  सही तरीके से बयान दर्ज हो सके.

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