इस केस में स्पेशल कोर्ट ने बीजेपी विधायक माया कोडनानी और बाबू बजरंगी समेत 32 लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
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अहमदाबाद : 2002 के नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में शुक्रवार (20 अप्रैल) को गुजरात हाई कोर्ट ने माया कोडनानी को बरी कर दिया है. शुक्रवार (20 अप्रैल) को मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने एसआईटी की विशेष अदालत के फैसले को पलटते हुए 32 दोषियों में से 17 को बरी कर दिया, जिसमें माया कोडनानी का नाम भी शामिल हैं.
वहीं, कोर्ट ने 12 दोषियों की सजा को बरकरार रखा है. अभी इस मामले में 2 अन्य दोषियों पर फैसले का इंतजार है, जबकि एक दोषी की मौत हो चुकी है. कोर्ट ने दोषी बाबू बजरंगी की सजा को बरकरार रखा है. बता दें कि SIT की विशेष अदालत ने माया कोडनानी को 28 सालों की सजा सुनाई थी.
2002 Gujarat riots case (Naroda Patiya): Out of the 32 convicts in the case, Gujarat High court acquitted 17 people including Maya Kodnani; conviction of 12 was upheld, verdict on 2 others awaited, 1 accused is dead.
— ANI (@ANI) April 20, 2018
विशेष लोक अभियोजक प्रशांत देसाई ने बताया कि 12 दोषियों को बिना कोई छूट दिए 21 साल की सजा दी गई है. 11 गवाहों ने माया कोडनानी के मौके पर होने को लेकर अलग-अलग बयान दिए, लेकिन उनमें विरोधाभास था.
All 12 convicts have been awarded 21 years of imprisonment without remission. 11 witnesses gave different statements on Maya Kodnani's presence at the location but there were contradictions: Prashant Desai, Special Public Prosecutor on 2002 #NarodaPatiyaCase pic.twitter.com/3U5cBcRYtG
— ANI (@ANI) April 20, 2018
कोडनानी को बरी करना एक बड़ा सवाल-हार्दिक
कोडनानी को बरी किए जाने के बाद प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज हो गई हैं. पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने जी न्यूज से खास बातचीत में कहा कि कोडनानी को बरी करना एक बड़ा सवाल है. उन्होंने कहा कि जब बाबू बजरंगी की सजा को कोर्ट ने बरकरार रखा तो कैसे कोडनानी को बरी किया जा सकता है.
जस्टिस हर्षा देवानी और न्यायमूर्ति ए एस सुपेहिया की पीठ ने मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद पिछले साल अगस्त में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. इस केस में स्पेशल कोर्ट ने बीजेपी विधायक माया कोडनानी और बाबू बजरंगी समेत 32 लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
शोक सभा के बाद कोडनानी ने किया था इलाके का दौरा
इस मामले की पिछली सुनवाई में एसआईटी ने कोर्ट में कहा था कि घटना के अगले दिन विधानसभा में शोक सभा का आयोजन किया गया था. शोक सभा में शामिल होने के बाद माया कोडनानी इलाके में गई थीं. इलाके के दौरा करने के बाद उन्होंने अल्पसंख्यकों पर हमले के लिए उकसाय़ा था. एसआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक माया कोडनानी जब वहां से चली गईं तो इसके बाद लोग दंगे पर उतारू हो गए. वहीं, स्पेशल कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कोडनानी ने कहा है कि एसआईटी के पास उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं है.
कोर्ट ने किसे, कितनी सजा दी
कोडनानी को 28 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी. एक अन्य बहुचर्चित आरोपी बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को मृत्यु पर्यंत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. सात अन्य को 21 साल के आजीवन कारावास और अन्य को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था. जहां दोषियों ने निचली अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, वहीं विशेष जांच दल ने 29 लोगों को बरी किये जाने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.
क्या है नरोदा पाटिया नरसंहार मामला
उल्लेखनीय है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियां जलाने की घटना के बाद 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में नरसंहार हुआ था. इस दौरान 97 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी, जबकि 33 लोग जख्मी हुए थे. जिसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. इस डिब्बे में 59 लोग थे, जिसमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कार सेवक थे.
2005 में यूसी बनर्जी कमेटी का गठन
मार्च 2002 में ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ़्तार किए गए लोगों पर प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट यानी पोटा लगाया गया. इसके बाद गुजरात की तत्कालीन सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की. जिसके बाद पुलिस ने सभी आरोपियों के ख़िलाफ IPC की धारा 120-B यानी आपराधिक षडयंत्र का मामला दर्ज किया. सितंबर 2004 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटार्यड जज यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था.जनवरी 2005 में यूसी बनर्जी कमेटी ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट में बताया कि साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर S-6 में लगी आग एक दुर्घटना थी. रिपोर्ट में इस बात की आशंका को खारिज किया गया कि ट्रेन में आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी. मई 2005 में पोटा रिव्यू कमेटी ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप ना लगाए जाएं.