शरिया कोर्ट पर भड़के भाजपा नेता, कहा कि ये इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ इंडिया नहीं है
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शरिया कोर्ट पर भड़के भाजपा नेता, कहा कि ये इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ इंडिया नहीं है

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा हर जिले में शरिया कोर्ट खोलने की बात का बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने कड़ा विरोध किया है. उन्होंने कहा कि भारत कोई इस्लामी गणराज्य नहीं है और अदालतें कानून के अनुसार काम करेंगी.

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा हर जिले में शरिया कोर्ट खोलने की बात का बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने कड़ा विरोध किया है. उन्होंने कहा कि भारत कोई इस्लामी गणराज्य नहीं है और अदालतें कानून के अनुसार काम करेंगी. 

  1. एआईएमपीएलबी वकीलों, न्यायाधीशों और आम लोगों को शरिया कानून से परिचित कराने पर जोर दे रहा है. 
  2. इस वक्त उत्तर प्रदेश में करीब 40 दारुल-क़ज़ा हैं, जहां से शरिया अदालतें चलती हैं. 
  3. एक शरिया अदालत पर हर महीने कम से कम 50 हजार रुपये खर्च होते हैं. 

भाजपा सांसद ने कहा, 'आप धार्मिक मामलों की चर्चा कर सकते हैं, लेकिन अदालतें कानून के अनुसार चलेंगी. ये इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ इंडिया नहीं है.' उन्होंने कहा कि शरीयत कोर्ट के लिए किसी भी जिले, गांव या शहर स्तर पर कोई जगह नहीं है. 

शरिया अदालतों के बारे में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि ये अलगाववाद को बढ़ाने और देश को बांटने की कोशिश है. देश में केवल एक कोर्ट है और एक कानून है. देश संविधान से चलता है और इसके बाहर कुछ भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा, 'ऐसे किसी कदम के खिलाफ सरकार को सख्ती से निपटना चाहिए और इन लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार करना चाहिए.'

इससे पहले ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने कहा था कि वो वकीलों, न्यायाधीशों और आम लोगों को शरिया कानून से परिचित कराने के लिए कार्यक्रमों को और तेज करने पर विचार करेगा. बोर्ड की कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य जफरयाब जीलानी ने बताया था कि अब बदलते वक्त में यह जरूरत महसूस की जा रही है कि तफहीम-ए-शरीयत कमेटी को और सक्रिय करते हुए इसका दायरा बढ़ाया जाए. उन्होंने कहा कि बोर्ड अब यह कोशिश कर रहा है कि हर जिले में शरिया अदालतें हों, ताकि मुस्लिम लोग अपने शरिया मसलों को अन्य अदालतों में ले जाने के बजाय दारुल-क़ज़ा में सुलझायें. 

उन्होंने कहा कि इस वक्त उत्तर प्रदेश में करीब 40 दारुल-क़ज़ा हैं. कोशिश है कि हर जिले में कम से कम एक ऐसी अदालत जरूर हो. एक अदालत पर हर महीने कम से कम 50 हजार रुपये खर्च होते हैं. अब हर जिले में दारुल-क़ज़ा खोलने के लिये संसाधन जुटाने पर विचार-विमर्श होगा. 

इस खबर पर केंद्रीय मंत्री पीपी चौधरी ने कहा कि कानून के दायरे में रहकर ही कोई अदालत खोली जा सकी है. ये पूरी तरह कानून के तहत होना चाहिए. जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने भी ऐसी अदालतों की स्थापना की जरूरत को अस्वीकार किया है. वहीं ऐसी अदालत का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा कि किसी धर्म के विशेष प्रावधानों का हमेशा न्यायालय द्वारा ख्याल रखा जाता है और इसलिए किसी अन्य अदालत की आवश्यकता नहीं है.

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