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Gyanvapi Mosque row: वाराणसी की ज्ञानवापी के तालाब में हिंदू पक्ष ने जिसे शिवलिंग बताया, अब मुस्लिम पक्ष के लोग उसे वुज़ूखाने का फ़व्वारा बता रहे हैं. दोनों पक्षों को अपना दावा कोर्ट में साबित करना है, जहां अब तक सर्वे की रिपोर्ट भी पेश नहीं हुई है उससे पहले ही हिंदू पक्ष के लोगों ने इतिहास की किताबों और पुराणों के पन्नों को सबूत के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया है. काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े लोगों ने तो नंदी की मूर्ति को ही सबसे बड़ा गवाह भी बना दिया है.
ज्ञानवापी परिसर में वुज़ू के लिए इस्तेमाल होने वाले तालाब से शिवलिंग प्रकट होने का दावा होते ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैलाया जाने लगा. दावा किया गया कि ये ज्ञानवापी परिसर में मिला ज्योतिर्लिंग है, जिसे मुस्लिम पक्ष के लोग वुज़ूख़ाने का फ़व्वारा बता रहे हैं, जबकि हिंदू पक्ष की नजर में ये ज्योतिर्लिंग ही है.
हिंदू पक्ष के पैरोकार सोहनलाल आर्य ने कहा कि वुज़ूखाना पानी से भरा था, जैसे ही पानी निकला, बाबा मिले, वहां काई थी, सफाई की गई, एक विशेषज्ञ को बुलाया गया, एक ही काले पत्थर से बना हुआ है. लेकिन ज्ञानवापी इंतजामिया कमेटी के लोगों ने कहा कि यह तो मस्जिद का फव्वारा है और 50 साल से बंद है. ज्ञानवापी का सर्वे करने वाले कोर्ट कमिश्नर ने भी माना कि ये वीडियो ज्ञानवापी के तालाब का ही है, लेकिन सर्वे के समय का नहीं है.
हिंदू पक्ष के लोगों का ज्ञानवापी पर दावा दो बातों पर टिका है. उनकी पहली दलील यही है कि ज्ञानवापी भला किसी मस्जिद का नाम कैसे हो सकता है? ज्ञानवापी को मंदिर बताने के लिए कई साल से काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित नंदी की मूर्ति को गवाह के तौर पर पेश किया जा रहा था. नंदी यानी भगवान शिव के वाहन, जिनकी मूर्ति आपको हर शिवालय में दिख जाएगी. काशी के लोगों को दावा है कि दुनिया के हर शिव मंदिर में नंदी का मुंह गर्भगृह की ओर ही होता है, लेकिन काशी विश्वनाथ के नंदी का मुंह ज्ञानवापी की तरफ है. ठीक उसी दिशा में, जहां ज्ञानवापी का तालाब है. इसीलिए सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी के तालाब मे शिवलिंग देखने का दावा करते समय यही हुंकार भरी कि नंदी की प्रतीक्षा पूरी हो गई.
अब ज्ञानवापी परिसर में काले पत्थर की जिस शिला को मुस्लिम पक्ष वुज़ूखाने का फ़व्वारा बता रहा है, उसके लिए हिंदू पक्ष पुराणों के पन्ने और नंदी की गवाही को आधार बना रहा है. उनका दावा है कि ज्ञानवापी में मिली शिला ही आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग है. काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के वकील ज्ञानेंद्र पांडेय ने बताया कि ज्ञानवापी परिसर जिसको कहा जा रहा है, वही मंदिर है, मंदिर का भाग है, जिस भाग को स्कंद पुराण और अन्य पुराणों में ज्योतिर्लिंग कहा गया है, आदि विश्वेश्वर का स्थान जो बताया गया है, वो ढांचा भी मंदिर का ही है, उसके मध्य में गर्भगृह में मूर्ति का पाया जाना निश्चित है.
ज्ञानवापी में ज्योतिर्लिंग होने का दावा जिस पौराणिक आधार पर किया जा रहा है, उसका जिक्र स्कंद पुराण के काशी खंड में है. इसमें लिखा है कि ईशान कोण के अधिपति ईशान नाम के रुद्र एक बार काशी आए, जहां उन्होंने भगवान शिव के विशाल ज्योतिर्मय लिंग का दर्शन किया. उसी को देखकर ईशान के मन में इच्छा हुई कि वो वे शीतल जल से इस ज्योतिर्मय लिंग को स्नान कराएं. इसके लिए ईशान ने विश्वेश्वर लिंग से दक्षिण दिशा में अपने त्रिशूल से एक कुंड खोदा और उसी के जल से ज्योतिर्मय लिंग को स्नान कराया. इससे विश्वनाथ जी ने प्रसन्न होकर ईशान को वरदान दिया कि तीनों लोकों में जितने भी तीर्थ हैं, उनमें ये शिवतीर्थ परम श्रेष्ठ होगा. शिव, ज्ञान को कहते हैं और वही ज्ञान शिव की महिमा के उदय से इस कुंड में जल के रूप में प्रकट हुआ है, इसलिए ये तीर्थ तीनों लोगों में ज्ञानोद अर्थात ज्ञानवापी के नाम से प्रसिद्ध होगा.
हिंदू पक्ष का दावा है कि आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग का भव्य मंदिर 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने बनवाया था और उसी मंदिर के दक्षिण में ज्ञानवापी नाम का कुंड भी था. इसका विध्वंस पहले मुहम्मद गौरी और सिकंदर लोदी के शासन में हुआ और फिर औरंगज़ेब ने विश्वेश्वर मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनवा दी, जिसका नाम आज भी ज्ञानवापी ही है.
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हालांकि काशी विश्वनाथ का मंदिर उसी ज्ञानवापी मस्जिद के पास है. लेकिन हिंदू पक्ष इस दावे पर अड़ा रहा कि असली ज्योतिर्लिंग यानी आदि विश्वेश्वर का मंदिर ज्ञानवापी परिसर में ही है. काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित नंदी की मूर्ति को लोगों ने इस बात का सबूत मान लिया जिनका मुंह काशी विश्वनाथ के गर्भगृह की बजाय ज्ञानवापी की ओर है.
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