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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बुधवार की सुबह 5 दिन के दौरे पर अमेरिका (America) रवाना हो गए. वे अमेरिकन समयानुसार 22 सितंबर की शाम 6 बजे वाशिंगटन डीसी पहुचेंगे. कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी के इस दूसरे विदेशी दौरे का भारत-अमेरिका सहयोग और वैश्विक सामरिक रणनीति को एक नया आयाम दे सकता है.
जहां तक भारत और अमेरिका की बात है, पीएम मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) के बीच 24 सितंबर को होने वाली बातचीत काफी अहम मानी जा रही है. सूत्रों के अनुसार भारत और मोदी सरकार की नीति साफ है. दोनों देशों के बीच संबंध एक सतत है न कि व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर. 2014 से देखा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी का बराक ओबामा (Barack Obama) से काफी अच्छे संबंध रहे. 2015 में ओबामा, गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर भारत आए थे और प्रधानमंत्री ने उन्हें अपना दोस्त और ओबामा कहकर बुलाया भी था. डेमोक्रैट होकर भी ओबामा ने दक्षिण एशिया और वैश्विक स्तर पर भी काफी तरजीह दी थी.
वहीं, जब 2016 में रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो दोनों देशों के बीच के संबंधों में और तेजी आई. हालांकि आर्थिक मोर्चे पर ट्रंप प्रशासन और भारत के बीच कुछ तनाव की स्थिति बनी थी, लेकिन उसे भी आपस मे सुलझा लिया गया था. यहां तक की राष्ट्रपति ट्रंप भारत आए और पीएम मोदी अमेरिका भी गए. होऊदी मोदी (Howdy Modi) कार्यक्रम में ट्रंप की उपस्थिति ऐतिहासिक रहा है. लेकिन 2020 में ट्रंप की हार और जो बाइडन की जीत के बाद हिंदुस्तान में ही कई लोगों ने दोनों देशों के संबंधों पर एक तरह से शोक सन्देश (obituary) लिख दिए थे. लेकिन वे भूल गए कि ओबामा के राष्ट्रपति रहते जो बाइडन अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे और 2014 में जो बाइडन ने पीएम मोदी को लेकर जो कहा था, आज भी वो बातें सबके सामने हैं. इसलिए मोदी सरकार का कहना रहा है कि दोनों देशों के रिश्ते एक सतत प्रक्रिया है. ये समान नीति पर लगातार आगे बढ़ने वाली नीति के तहत हैं.
माना जा रहा है कि राष्ट्रपति बाइडन और पीएम मोदी के बीच अफगानिस्तान और आतंकवाद पर बातचीत होगी. पाकिस्तान की अफगानिस्तान में बढ़ती भूमिका पर चर्चा हो सकती है. इसके अलावा दोनों देशों के बीच सामरिक रिश्ते पर भी बातचीत हो सकती है. जानकारों का मानना है कि अमेरिका चाहता है कि दक्षिण एशिया में उसके जंगी जहाजों के लिए एक नया ठिकाना मिले. उसके बदले भारत को भी ऐसी सहूलियतें हिन्द या प्रशांत महासागर में दिया जा सकता है. अफगानिस्तान के बदले हालात के बाद चीन और इस पूरे इलाके पर नजर बनाए रखने के लिए, अमेरिका एक भरोसेमंद दोस्त के साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहता है. हालांकि इसके बारे में अभी तक किसी ने भी कुछ खुलासा नहीं किया है.
दोनों नेताओं के बीच आर्थिक क्षेत्र में कई तकनीकी दिक्कतों को दूर करने पर चर्चा हो सकती है. पीएम मोदी के इस दौरे का एक अहम पड़ाव QUAD की इन-पर्सन मीटिंग रहने वाला है. भले ही क्वाड का गठन 2007 में हुआ था लेकिन इसको नया रूप दिया गया 2017 में. माना जा रहा है कि इस गठबंधन को क्रियाशील बनाने में पीएम मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. उनके उस मुहिम में राष्ट्रपति ट्रंप ने कदम से कदम मिलाया था. जापान (Japan) तो शुरू से इसको भूमिका बढ़ाने के पक्ष में रहा और ऑस्ट्रेलिया (Australia) के नए राजनीतिक नेतृत्व ने इस गठबंधन के साथ चलने पर पूरी सहमति जताई.
सूत्रों के अनुसार, मोदी सरकार इस गठबंधन को सिर्फ चीन को साउथ चाइना सी में जवाब देने तक सीमित नहीं रखना चाहती. बल्कि वैश्विक स्तर पर इसको अन्य गठबंधनों से बेहतर बनाने के पक्ष में है. सरकारी सूत्रों के अनुसार, G-7 और G-20 और यहां तक BRICS जैसे गठबंधनों का मुख्य उद्देश्य आर्थिक फ्रंट पर चर्चा करने तक ही बहुत हद तक सीमित रहा है. उनमें आतंकवाद पर बातचीत होते रही है. लेकिन कोई खास नतीजा देखने को नहीं मिला.
NATO भी ट्रंप शासन के दौरान कई उतार चढ़ाव से गुजरा. पुतिन द्वारा क्रीमिया को रूस में मिला लेने पर भी नाटो कुछ नहीं कर पाया. नाटो को लेकर EU और अमेरिका के बीच तनाव भी हमेशा देखने को मिल रहा है. ऐसे में क्वाड एक ऐसा गठबंधन है जिसकी नीति बिल्कुल स्पष्ट है. चाहे साउथ चाइना सी हो या इंडो पसिफिक रीजन, समुद्री लुटेरों पर लगाम लगाना हो या आतंकवाद से लड़ने की स्पष्टता, क्वाड एक अलग तरह की भूमिका निभाएगा. यही वजह है कि आज की तारीख में विस्तारवादी चीन को अगर किसी गठबंधन से सबसे ज्यादा परेशानी है तो वो क्वाड है. चीन सरकार के इसके खिलाफ बयान लगातार आते रहते है. चीन इस क्वाड को अपने लिए एक दिखने वाला खतरा मानता है. इसलिए जब 24 सितंबर को वाशिंगटन में क्वाड के चारों देशों के राष्ट्राध्यक्ष इन पर्सन बातचीत करेंगे तो माना जा रहा है आने वाले दिनों में विस्तारवाद और आतंकवाद पर रोक लगाने में क्वाड की भूमिका और निखर कर आएगी.
अमेरिकी दौरे के अंतिम पड़ाव में पीएम मोदी 25 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करेंगे. सूत्रों के अनुसार पीएम का संबोधन एक वैश्विक नेता की तरह होगा. उनके संबोधन में कोरोना और वैक्सीन का जिक्र होगा. जिस तरह से भारत ने कोरोना दवा और वैक्सीन मित्र के जरिए सैकड़ों देशों को राहत पहुंचाई है, उसका जिक्र होगा पीएम मोदी के संबोधन में मिलेगा. जलवायु परिवर्तन पर विश्व के देशों को एक सामूहिक नीति पर चलने की अपील हो सकती है. इसके अलावा प्रधानमंत्री अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान की तरफ इशारा करते हुए आतंकवाद की लड़ाई में सबको साथ आने को कह सकते हैं. पीएम मोदी अफगानिस्तान के बदले हालात और विस्तारवाद को एक नए खतरे से आगाह भी कर सकते हैं.
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