National Doctors' Day: कोरोना से जंग लड़ रहे डॉक्टर्स को ZEE NEWS का सलाम
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National Doctors' Day: कोरोना से जंग लड़ रहे डॉक्टर्स को ZEE NEWS का सलाम

भारत में कोरोना वायरस के फैलने के बाद से डॉक्टर्स से लेकर मेडिकल स्टाफ दिन-रात लोगों की मदद कर रहे हैं, और कोरोना से जंग में देश का साथ दे रहे हैं. 

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: देश में कोरोना (Corona-Virus) के मामले तेजी से फैल रहे हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा उम्मीदें हमें डॉक्टर्स से हैं क्योंकि वो दिन-रात मेहनत कर रहे हैं और लोगों की जान बचा रहे हैं. कल यानी एक जुलाई का दिन डॉक्टर्स के लिए बहुत खास होता है. दरअसल 1 जुलाई को हर वर्ष देश में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. 

  1.  1 जुलाई को हर वर्ष देश में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है
  2. डॉक्टर्स से लेकर मेडिकल स्टाफ दिन-रात लोगों की सेवा में लगा
  3. कोरोना के मोर्चे पर डटे हुए हैं डॉक्टर्स
  4.  

भारत में कोरोना वायरस के फैलने के बाद से डॉक्टर्स से लेकर मेडिकल स्टाफ दिन-रात लोगों की मदद कर रहे हैं, और कोरोना से जंग में देश का साथ दे रहे हैं. 

यही वजह है आज डॉक्टर्स डे के दिन हम आपको उन फाइटर्स की कहानी बता रहे हैं जो सुपर हीरोज की तरह देश की रक्षा कर रहे हैं. इन फाइटर्स को ZEE NEWS का सलाम.

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महीनों अपने परिवार से दूर रहना, घंटों पसीने में नहाए रहना, दमघोंटू पीपीई में ड्यूटी करना, मरीज का इलाज करना, खुद को इंफेक्शन से बचाना और कोरोना के खतरे से जीतने के इरादे से लड़ना, ये देश के कोरोना वॉर्ड में लड़ रहे हर डॉक्टर की कहानी है. 

कई डॉक्टर 90 दिन से घर नहीं गए. मार्च के महीने से वो लगातार कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी कर रहे हैं. ये कोरोना योद्धा 6 से 8 घंटे पीपीई में रहते हैं. इस दौरान वह न तो पानी पी सकते हैं और न बाथरुम जा सकते हैं. 

संक्रमण की वजह से लगातार अस्पताल के स्टाफ के लोग बीमार पड़ते जा रहे हैं. दिल्ली सरकार अदालत में बता चुकी है कि कोरोना के मोर्चे पर योद्धा घटते जा रहे हैं. लेकिन जो ड्यूटी पर हैं, वो लगातार डटे हैं.  

कोविड वॉरियर डॉ. ऋतु सक्सेना दिल्ली में कोरोना के सबसे बड़े अस्पताल एलएनजेपी में इमरजेंसी की हेड हैं. 17 मार्च को एलएनजेपी अस्पताल में कोविड मरीजों का इलाज शुरू हुआ था और अब यह दिल्ली का सबसे बड़ा कोविड का डेडिकेटेड सेंटर बन गया है. तब से डॉ. ऋतु के पास मरीजों के एडमिशन से लेकर उनके इलाज व देखभाल की जिम्मेदारी है. 

डॉ ऋतु बताती हैं कि कोरोना सबके लिए नया था! 36 घंटे की ड्यूटी करना हमारे लिए भी नई बात थी. मुझे याद नहीं कि आखिरी बार कब मैं पूरी रात सोई थी. 

इमरजेंसी का चैलेंज, खाने की व्यवस्था, मरीजों की डायलिसिस, छोटी सी छोटी समस्याओं का ख्याल रखना इन्हीं की जिम्मेदारी है. 

हर दूसरे दिन दिन 36 घंटों तक ड्यूटी करनी पड़ती है. दिनभर में वार्ड के अंदर मरीजों की देखभाल से लेकर बाहर उनके परिजनों तक को संभालना पड़ता है. 

कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण वो परिवार से अलग रहने को भी मजबूर हैं. साथ मे रहने वाली अपनी मां से भी महीनों से नहीं मिल पाई हैं. पर उन्हें यह खुशी है कि वो लोगों के काम आ रही हैं और देश को इस संक्रमण से लड़ने में अपना योगदान दे रही हैं.

कई डॉक्टरों, नर्सों और स्टाफ को मिलाकर देशभर में 1000 से ज्यादा हेल्थ केयर वर्कर कोरोना संक्रमण के शिकार हो चुके हैं. 2 डॉक्टर समेत दिल्ली में 4 हेल्थ केयर वर्कर कोरोना मरीजों के इलाज में जान गंवा चुके हैं. लेकिन देश में फैले कोरोना संक्रमण से लड़ने में आज भी सबसे आगे यही डॉक्टर खड़े हैं. इन्हें भगवान ऐसे ही नहीं कहा जाता.

कई डर कर भाग गए, तो बहुतों ने आगे बढ़कर कहा कि हमें कोरोना मरीजों के इलाज में लगाएं. गर्वनमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ कासना में डॉक्टर आकाश उन्हीं में से एक हैं.

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डॉक्टरों समेत दिल्ली में 4 हेल्थ केयर वर्कर की जान कोरोना इंफेक्शन ने ले ली. ये वो वॉरियर्स हैं जिन्हें कोई परमवीर चक्र या शौर्य चक्र नहीं मिलेगा. इन्हें इसकी उम्मीद भी नहीं है. इस मुश्किल वक्त में मरीज का ठीक होकर मुस्कुराते हुए घर लौटना ही इनका वीरता पुरस्कार है. (इनपुट:वरुण भसिन)

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