मां चंद्रघंटा की उत्पत्ति बुरी शक्तियों के नाश, धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए हुई है मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की उपासना साधक को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करती है.
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नई दिल्ली: नवरात्रि (Navratri) के तीसरे दिन मां दुर्गा (Durga) के चंद्रघंटा (Chandraghanta) स्वरूप की पूजा की जाती है. माता के सिर पर घंटे के आकार के अर्धचंद्र की वजह से इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. देवी चंद्रघंटा का वाहन सिंह है. मां का यह स्वरूप राक्षसों का वध करने के लिए जाना जाता है. उनके हाथों में तलवार, त्रिशूल, गदा और धनुष होता है. माता की दस भुजाएं और तीन आंखें हैं. आठ हाथों में दिव्य अस्त्र-शस्त्र हैं और दो हाथों से वे भक्तों को आशीष देती हैं.
मिटता है अंधकार
मां चंद्रघंटा की उत्पत्ति बुरी शक्तियों के नाश, धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए हुई है मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की उपासना साधक को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करती है. कहा जाता है कि माता चंद्रघंटा की साधना कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले उपासक को संसार में यश, कीर्ति, सम्मान और मोक्ष मिलता है.
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कैसे करें पूजा
मां चंद्रघंटा को लाल फूल, लाल सेब और गुड़ चढाएं. भोग चढ़ाने के दौरान और मंत्र पढ़ते वक्त मंदिर की घंटी जरूर बजाएं, क्योंकि मां चंद्रघंटा की पूजा में घंटे का बहुत महत्व है. मान्यता है कि घंटे की ध्वनि से मां चंद्रघंटा अपने भक्तों पर हमेशा अपनी कृपा बरसाती हैं और शत्रुओं की हार होती है. इस दिन गाय के दूध का प्रसाद चढ़ाने का विशेष विधान है. कहा जाता है कि इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है. साथ ही मखाने की खीर का भोग लगाना श्रेयस्कर माना गया है.
मां की उपासना का मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।