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नई दिल्ली: दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर जहां एक तरफ दिल्ली सरकार दूसरे राज्यों को चुनौती दे रही है और इसके दूसरे राज्यों से बेहतर होने का दावा कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर भारत सरकार (Indian Government) के राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मंगलवार को दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर दावा किया है कि दिल्ली के 80% से ज्यादा सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपल या हेडमास्टर हैं ही नहीं.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो (Priyank Kanoongo) ने दिल्ली के मुख्य सचिव विजय कुमार देव को मंगलवार को पत्र लिखकर कहा कि NCPCR की टीम ने जब दिल्ली के सरकारी स्कूलों का दौरा किया तो पाया कि दिल्ली के कई सरकारी स्कूलों में हेडमास्टर या प्रिंसिपल (Principal) थे ही नहीं और जगह खाली थी.
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एनसीपीसीआर के मुताबिक दिल्ली के कुल 1,027 सरकारी स्कूलों में से सिर्फ 203 स्कूलों में ही प्रिंसिपल या हेडमास्टर (Head Master) थे, जिसमें से 3 में एक्टिंग हेडमास्टर, 9 में हेडमास्टर और 191 में प्रिंसिपल मौजूद थे. दिल्ली सरकार (Delhi Government) को लिखे अपने पत्र में एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो ने स्कूलों में प्रिंसिपल और हेडमास्टर की अहम भूमिका बताते हुए लिखा कि प्रधानाचार्य स्कूल में पढ़ाई का सकारात्मक माहौल सुनिश्चित करते हैं. वहीं प्रधानाचार्य या हेडमास्टर के नहीं होने से बच्चों की सुरक्षा पर विपरीत असर पड़ता है.
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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने दिल्ली सरकार को लिखी अपनी चिट्ठी में मुख्य सचिव को 1 हफ्ते का समय देकर सीपीसीआर (CPCR) एक्ट के तहत 19 अप्रैल तक जवाब देने की बात कही. एनसीपीसीआर ने कहा कि दिल्ली सरकार यह साफ करे कि स्कूलों में हेडमास्टर या प्रिंसिपल के खाली पदों पर अपनी असल स्थिति और पदों को भरने के लिए क्या कदम लिए गए हैं.
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