New Parliament Building: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को लोकतंत्र का नया मंदिर मिल रहा है. लेकिन विपक्ष के चेहरे पर जरा भी खुशी नजर नहीं आ रही है जिसे ये मंजूर नहीं है कि राष्ट्रपति के बजाय प्रधानमंत्री मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करें.
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New Parliament Building Inauguration: नए संसद भवन के उद्घाटन पर जितने सवाल विपक्ष उठा रहा है उतने सवाल तो संसद के अंदर भी नहीं उठाए जाते होंगे. उद्घाटन पीएम मोदी के करकमलों से हो इस पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु को रत्तीभर भी ऐतराज नहीं है, लेकिन कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दलों ने आसमान सिर पर उठा रखा है. आज हम समझेंगे कि विपक्षी पार्टियों को पीएम मोदी के हाथों संसद के उद्घाटन पर ऐतराज क्यों है?
जब मोदी सरकार ने सेंट्रल विस्ट्रा प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी तो कहा गया कि नए संसद भवन की जरूरत ही क्या है. फिर पीएम मोदी ने नए संसद भवन का भूमिपूजन किया तो कहा गया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को क्यों नहीं बुलाया गया? फिर नई संसद के उद्घाटन के लिए 28 मई का दिन चुना गया तो पूछा जाने लगा कि इसके लिए सावरकर जयंती का दिन ही क्यों चुना गया? और जब ये पता चला कि नई संसद का उद्घाटन भी पीएम मोदी करेंगे तो पूछा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नए संसद भवन का उद्घाटन कैसे कर सकते हैं.
इन सवालों के साथ कांग्रेस और 19 विपक्षी पार्टियां एक सुर में एक ही आवाज बुलंद कर रही हैं - बहिष्कार..बहिष्कार और बहिष्कार. विपक्ष का तर्क है कि राष्ट्रपति द्रोपद्री मुर्मु से ही नई संसद का उद्घाटन करवाया जाए क्योंकि वो संविधान का गार्जियन यानी संरक्षक हैं. इस पर सरकार का कहना है कि इंदिरा गांधी ने संसद की एनेक्सी और राजीव गांधी ने लाइब्रेरी का उद्घाटन किया था.
तो सबसे पहले इसी तर्क का रियलिटी चेक कर लेते हैं. बीजेपी ने संसद में जिन दो इमारतों का जिक्र किया है उनके बारे में लोकसभा सचिवालय के एक डॉक्युमेंट में बताया गया है. इसके मुताबिक...
- संसद भवन एनेक्सी की आधारशिला 3 अगस्त 1970 को तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने रखी थी, जबकि एनेक्सी का उद्घाटन इंदिरा गांधी ने 24 अक्टूबर 1975 को किया था.
और जहां तक संसद लाइब्रेरी की बात है तो इसकी नींव 15 अगस्त 1987 को तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने रखी थी. जबकि लाइब्रेरी की इमारत का उद्घाटन 7 मई 2002 को तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर.नारायणन ने किया था. अब यहां दो बातें गौर करने वाली हैं.
पहली तो ये कि जब संसद भवन एनेक्सी का उद्घाटन इंदिरा गांधी ने किया था तब देश में इमरजेंसी लागू थी. दूसरी ये कि संसद लाइब्रेरी की नींव राजीव गांधी ने रखी थी, उद्घाटन राष्ट्रपति ने ही किया था.
लोकसभा सचिवालय के डॉक्युमेंट में क्या लिखा?
लोकसभा सचिवालय के डॉक्युमेंट में ये भी लिखा है कि संसद भवन एनेक्सी और संसद की लाइब्रेरी संसद भवन का एक हिस्सा मात्र हैं, इससे तो यही जाहिर होता है कि संसद के एक हिस्से का उद्घाटन करने और नए संसद भवन का उद्घाटन करने में फर्क होता है. लेकिन दिक्कत ये है कि हमारे देश के दूरदर्शी संविधान निर्माताओं को ये ख्याल ही नहीं आया कि अंग्रेजों का बनवाया संसद भवन कभी पुराना भी पड़ेगा और उसकी जगह नया संसद भवन भी बनवाना पड़ेगा इसलिए हमारे संविधान में कहीं भी ये जिक्र नहीं है कि नए संसद भवन का उद्घाटन सिर्फ राष्ट्रपति ही कर सकते हैं प्रधानमंत्री नहीं कर सकते. और जब संविधान में कोई जिक्र ही नहीं है तो नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी करें या कोई और इसमें संविधान का अपमान होने वाली तो कोई बात नहीं है लेकिन विपक्षी दल पूरी ताकत से मोदी सरकार को झुकाने की कोशिशों मे जुटे हैं और तीन तर्क दे रहे हैं..
पहला तर्क है कि संसद की परिभाषा में कहीं भी प्रधानमंत्री का जिक्र नहीं है. दूसरा तर्क है कि प्रधानमंत्री सिर्फ लोकसभा के नेता हैं. तीसरा तर्क है कि संसद का संरक्षक होने के नाते नए संसद भवन के उद्घाटन का नैतिक हक राष्ट्रपति का है. यानी कांग्रेस को भी पता है कि संवैधानिक तौर पर ये कोई बाध्यता नहीं है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति ही करें. इसलिए वो नैतिकता की बात कर रही है संवैधानिकता की नहीं. ऑस्ट्रेलिया से लौटकर पीएम मोदी ने बातों-बातों में विपक्ष के सवालों का जवाब दे दिया है.
लेकिन बात सिर्फ राजनीति और संविधान की नहीं है. आम जनता को तो यही पता है ना कि राष्ट्रपति ही संसद का संरक्षक होता है. देश का प्रमुख होता है फिर लोकतंत्र की पहचान. नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति से क्यों नहीं करवाया जा रहा? ये सवाल विपक्षी दल पूछ रहे हैं और सरकार इस सवाल का सीधा जवाब देने से बच रही है. इस सवाल पर सिर्फ राजनीति ही हो रही है.
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को लोकतंत्र का नया मंदिर मिल रहा है. लेकिन विपक्ष के चेहरे पर जरा भी खुशी नजर नहीं आ रही है जिसे ये मंजूर नहीं है कि राष्ट्रपति के बजाय प्रधानमंत्री मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करें. विपक्ष अड़ गया है कि प्रधानमंत्री मोदी को नए संसद भवन का उद्घाटन नहीं करना चाहिए. ये संविधान और राष्ट्रपति पद का अपमान होगा. लेकिन सरकार भी अड़ गई है कि नए संसद भवन का उद्घाटन तो प्रधानमंत्री मोदी ही करेंगे जिसका विरोध करना और उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करना संसद का अपमान होगा.
बीजेपी और सरकार में कोई भी ये नहीं कह रहा कि राष्ट्रपति को नए संसद भवन का उद्घाटन नहीं करना चाहिए लेकिन सब ये कह रहे हैं कि पीएम मोदी को नए संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए. वैसे भी नए संसद भवन को मंजूरी भी मोदी सरकार ने दी थी. नए संसद भवन का शिलान्यास भी पीएम मोदी ने ही किया था. नया संसद भवन बनकर तैयार भी मोदी सरकार में ही हुआ है. तो फिर पीएम मोदी ही अगर नये संसद भवन का उद्घाटन कर देंगे तो क्या हो जाएगा?
जो कांग्रेस पीएम मोदी के हाथों नए संसद भवन का उद्घाटन करने का विरोध कर रही है उसी कांग्रेस ने मोदी सरकार को नए संसद भवन का उद्घाटन पीएम मोदी से करवाने का आइडिया दिया है. इसके सबूत भी आपको दिखाते हैं. 13 मार्च 2010 को तमिलनाडु विधानसभा सचिवालय का उद्घाटन हुआ था अब अगर कांग्रेस और विपक्षी दलों के तर्क को अप्लाई करें तो उसका उद्घाटन राज्यपाल को करना चाहिए था लेकिन किसने किया? तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने. जो उस समय यूपीए की चेयरपर्सन थीं.
दिसंबर 2011 में मणिपुर की नई विधानसभा बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ था जिसका उद्घाटन भी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था और बतौर यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी तब भी उद्घाटन में मौजूद थीं. अगस्त 2020 में छत्तीसगढ़ की नई विधानसभा का भूमिपूजन सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने किया था. यानी राज्यपाल को तो छोड़िये मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी इग्नोर कर दिया गया. अब कोई जरा कांग्रेस से पूछे कि राहुल गांधी ने किस हैसियत से नई विधानसभा का भूमिपूजन किया ?
तो अब कांग्रेस किस मुंह से कह रही है कि नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं कर सकते. अगर मनमोहन सिंह तब बतौर प्रधानमंत्री मणिपुर की नई विधानसभा बिल्डिंग और तमिलनाडु विधानसभा सचिवालय का उद्घाटन कर सकते थे. बतौर चेयरपर्सन सोनिया गांधी कर सकती हैं. गांधी परिवार का सदस्य होने के नाते राहुल गांधी छत्तीसगढ़ की नई विधानसभा का उद्घाटन कर सकते हैं तो पीएम मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन क्यों नहीं कर सकते.
जाहिर सी बात है ये परंपरा बीजेपी और मोदी सरकार ने शुरू नहीं की है. ये परंपरा तो कांग्रेस की देन है जिसका पालन अब मोदी सरकार कर रही है. वैसे भी हमारे देश में ये रिवाज रहा है कि -ॉ जिसकी सरकार, उद्घाटन पर उसका अधिकार. और मोदी सरकार में भी इसी रिवाज का पालन हो रहा है.
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