ये संसद बहुत याद आएगी..
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ये संसद बहुत याद आएगी..

DNA Analysis: हमारी संसद ईंट पत्थरों से बनी खूबसूरत इमारत भर नहीं है. ये भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती और जीवंतता की पहचान भी है. वर्ष 1927 में बनकर तैयार हुई इस इमारत ने करीब 10 दशकों का लंबा सफर तय किया है और इस दौरान ये इमारत न जाने कितनी अहम तारीखों का गवाह बनी है, न जाने कितनी ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी बनी है.

ये संसद बहुत याद आएगी..

DNA Analysis: हमारी संसद ईंट पत्थरों से बनी खूबसूरत इमारत भर नहीं है. ये भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती और जीवंतता की पहचान भी है. वर्ष 1927 में बनकर तैयार हुई इस इमारत ने करीब 10 दशकों का लंबा सफर तय किया है और इस दौरान ये इमारत न जाने कितनी अहम तारीखों का गवाह बनी है, न जाने कितनी ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी बनी है. इस संसद ने आजाद भारत की पहली सुबह की शुरुआत भी देखी, दुनिया भर में भारत के बढ़ते प्रभाव को भी देखा. लेकिन करीब 100 वर्ष पुरानी ये इमारत आज अपने आप को विदा कहने वाली कार्यवाही की गवाह भी बनी.

लोकतंत्र के पुरानी संसद..

लोकतंत्र के पुरानी संसद से नई संसद में shift करने की इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सरकार की तरफ से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था. पांच दिवसीय इस सत्र के पहले दिन संसद की 76 वर्ष की यात्रा पर चर्चा हुई. इस सत्र को लेकर सरकार ने जो जानकारी दी है, उसके अनुसार सरकार के agenda में 4 विधेयक भी हैं, जिन्हे वो पास करवाना चाहती है. हालांकि विपक्ष सरकार के एजेंडे पर सवाल उठा रहा है. उसे आशंका है कि सरकार इस सत्र में कुछ surprise element भी पेश कर सकती है. यानी कुछ ऐसा, जिसका जिक्र सरकार के agenda में फिलहाल नहीं है.

क्या होता है विशेष सत्र?

इसीलिए विपक्ष सवाल भी उठा रहा है कि आखिर इन बिलों को पास कराने की ऐसी भी क्या जल्दी थी कि सरकार को विशेष सत्र बुलाने की ज़रूरत पड़ गई. क्योंकि इन विधेयकों को कुछ महीने बाद शीत कालीन सत्र में भी तो पेश किया जा सकता था. इसीलिए आज आपके लिए ये जानना ज़रूरी है कि आख़िर संसद का विशेष सत्र क्या होता है. ये सामान्य सत्र से किस तरह और कितना अलग होता है और इसे क्यों बुलाया जाता है?

जवाब हमारे संविधान में दर्ज

इसका जवाब हमारे संविधान में दर्ज है. संविधान के Article 85 में संसद के सत्र बुलाए जाने की पूरी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसके अनुसार संसद का सत्र बुलाने की शक्ति राष्ट्रपति के पास है, और वो कभी भी संसद के सत्र को बुला सकते हैं. हालांकि राष्ट्रपति अपनी मर्जी से सत्र नहीं बुला सकते हैं, सत्र बुलाने का निर्णय संसदीय मामलों की cabinet committee लेती है और इस कमिटी की अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री करते हैं. यही कमिटी सत्र बुलाने की तारीख और सत्र का एजेंडा तय करती है. इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर को इसकी जानकारी दी जाती है. 

ये फैसला राष्ट्रपति के पास भी भेजा जाता है

संसदीय मामलों की इस cabinet committee का ये फैसला राष्ट्रपति के पास भी भेजा जाता है. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही सत्र बुलाए जाने का Notification जारी कर दिया जाता है. हालांकि इस Article में इस बारे में कुछ नहीं बताया गया है कि संसद के सत्र कब बुलाए जाने हैं और कितने वक्त तक के लिए बुलाए जाने हैं. ये फैसला सरकार के ऊपर छोड़ दिया गया है. ताकि वो अपनी जरूरत के अनुसार संसद के सत्र बुला सके.

वर्ष में संसद के तीन सत्र होते हैं

हालांकि इसी Article में ये जरूर कहा गया है कि संसद के दो सत्रों के बीच में 6 महीने से ज्यादा का गैप नहीं होना चाहिए. यानी इस लिहाज से जरूरी है कि वर्ष में संसद के कम से कम दो सत्र तो जरूर होने चाहिए. हालांकि हमारी संसदीय परंपरा के अनुसार एक वर्ष में संसद के तीन सत्र होते हैं. संसद के पहले सत्र को बजट सत्र कहा जाता है और ये संसद का सबसे लंबा सेशन होता है. ये session आम तौर पर जनवरी के अंत में शुरू होता है और अप्रैल के अंत तक या मई के पहले हफ़्ते तक चलता है. इसमें बीच में एक Break भी होता है, ताकि सांसद बजट को अच्छे से पढ़ सकें और संसदीय समितियां बजट के प्रस्तावों पर चर्चा कर सकें. संसद के दूसरे सत्र को मॉनसून सत्र कहा जाता है. ये सत्र जुलाई में शुरू होता है और अगस्त में खत्म होता है.

सरकार तय करती है..

इसी तरह वर्ष के तीसरे सत्र को शीतकालीन सत्र यानी winter session कहा जाता है, और इसका आयोजन नवंबर से दिसंबर के बीच में होता है. इन तीन सत्रों के अलावा भी अगर सरकार को लगता है कि संसद का सत्र बुलाया जाना जरूरी है, तो वो राष्ट्रपति की मंजूरी से ऐसा सत्र बुला सकती है. संसदीय भाषा में इसे ही विशेष सत्र कहा जाता है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि संविधान में किसी विशेष सत्र या Special Session का कोई जिक्र नहीं है. विशेष सत्र को बुलाने के लिए भी उसी प्रक्रिया का पालन किया जाता है, जो दूसरे सत्रों के लिए अपनाई जाती है. यानी विशेष सत्र बुलाने का फैसला केंद्र सरकार ही करती है. सरकार ही तय करती है कि ये Special Session कब और कितने दिनों के लिए बुलाया जाना है.

संविधान का Article 85

संविधान के Article 85 के अनुसार राष्ट्रपति संसद का सत्र कभी भी और कहीं भी बुला सकते हैं. यानी ये ज़रूरी नहीं है कि संसद की बैठकें संसद भवन में ही हों. संसद की बैठकें कभी भी और कहीं भी हो सकती हैं. इस प्रावधान को आपात कालीन स्थितियों को ध्यान में रख कर जोड़ा गया था. यानी युद्ध या प्राकृतिक आपदा जैसी Situation में जब संसद भवन में सत्र आयोजित करना possible न हो, तब इसका इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति किसी और जगह भी संसद का सत्र बुला सकते हैं.

कामकाज की क्या प्रक्रिया है?

ये तो संसद के विशेष सत्र की बात हुई लेकिन अब मैं आपको बताउंगा कि ये सत्र कैसे आयोजित होता है और इसमें कामकाज की क्या प्रक्रिया है? आम तौर पर संसद का सत्र शुरू होने से 15 दिन पहले इसकी जानकारी सभी सांसदों को दे दी जाती है. सत्र की शुरुआत से पहले सरकार सेशन के agenda के बारे में जानकारी देती है, इसमें बताया जाता है कि सत्र में कौन कौन से बिल पेश होने हैं. या और कौन कौन से दूसरे कामकाज़ होने हैं. हालांकि सरकार बैठक वाले दिन Agenda बदल भी सकती है.

अब तक 11 बार बुलाया जा चुका है विशेष सत्र

यही नहीं स्पेशल सेशन में Question Hour या Zero Hour होगा या नहीं. ये भी सरकार की सलाह पर सदन के स्पीकर तय करते हैं. जैसे इस विशेष सत्र के लिए सरकार ने पहले ही बता दिया था कि इस बार न तो Zero Hour होगा और न ही Question Hour. यही नहीं इस दौरान कोई Private Member Bill भी नहीं पेश किया जा सकेगा. हालांकि ये पहला मौका नहीं है जब किसी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया हो. अलग-अलग सरकारें अपनी जरूरत के अनुसार संसद के SPECIAL SESSION बुलाती रही हैं. अब तक 11 बार ऐसे मौके आ चुके हैं, जब संसद का विशेष सत्र बुलाया गया.

आजादी के मौके पर पहली बार..

संसद का विशेष सत्र पहली बार आज़ादी के मौक़े पर बुलाया था. वर्ष 1947 में 14-15 अगस्त की रात को बुलाए गए विशेष सत्र में ही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश की आज़ादी की घोषणा की थी और the tryst with destiny वाला ऐतिहासिक भाषण दिया था. इसके बाद उन्हीं के कार्यकाल में वर्ष 1962 में भी संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था. ये सत्र भारत-चीन युद्ध की वजह से पैदा हुए हालात पर चर्चा के लिए बुलाया गया था. इसी तरह वर्ष 1972, 1977, 1991, 1992, 1997, 2012, 2015 को भी संसद का विशेष सत्र बुलाया जा चुका है.

आखिरी बार वर्ष 2017 में..

आख़िरी बार वर्ष 2017 में GST यानी Goods and Services tax को पास करवाने के लिए मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया था. आज पूरे दिन इस ऐतिहासिक संसद भवन की उपलब्धियों पर चर्चा हुई और पुरानी यादों को ताज़ा किया गया. इस दौरान पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह तक का ज़िक्र हुआ. कहा जाता है कि Healthy Debates... किसी भी लोकतंत्र की ताक़त होता है. मौजूदा संसद तो ऐसी न जाने कितनी यादगार और शानदार चर्चाओं की गवाह रही है.

चिंता का विषय ये है कि..

भारतीय संसद ने Parliamentry Debates का एक Standerd Set किया है. यहां एक से एक वक्ता हुए हैं, जिनके भाषणों का विरोधी पार्टियों के नेता भी इंतजार करते थे. लेकिन इसी संसद ने चर्चा के नाम पर सियासी हंगामा और राजनीतिक कटुता भी देखी है. चिंता का विषय ये है कि ये सियासी विरोध और हंगामा अब ज्यादा हावी होता जा रहा है. पीएम मोदी ने भी आज सभी सांसदों से अपील की थी कि वो कम से कम आज के दिन राजनीति छोड़कर संसद से जुड़ी यादों पर चर्चा करें. चर्चा हुई भी, लेकिन ये चर्चा भी राजनीति से नहीं बच पाई.

ये हमारे लोकतंत्र की आत्मा..

दरअसल संसद कोई इमारत या ईंट पत्थरों का ढांचा नहीं है. ये हमारे लोकतंत्र की आत्मा है और जिस तरह भगवद़ गीता में कहा गया है कि आत्मा अजर अमर होती है, वो नष्ट नहीं होती बस एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है. उसी तरह लोकतंत्र की तमाम शक्तियां जो आज तक इस इमारत से संचालित हो रही थीं. अब इसके ठीक सामने स्थित एक नई इमारत में समाहित हो जाएंगी. तब संसद की ये नई इमारत भारत के लोकतंत्र का प्रतीक बन जाएगी. लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते हम भी यही आशा करते हैं कि संसद की नई इमारत 21वीं सदी के भारत को तो Represent करेगी ही. हमारे लोकतंत्र की वैभवशाली विरासत को भी संजोकर रखेगी.

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