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Zee News Time Machine: टाइममशीन में आज जिक्र साल 1995 का. यानी वो साल जब पहली बार देश में मोबाइल फोन आया. यही वो साल था जब मोबाइल फोन के साथ साथ देश में इंटरनेट सेवा शुरू हुई थी. इसी साल मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनने वाली दलित महिला थीं मायावती और इसी वर्ष मायावती की जिंदगी में गेस्ट हाउस कांड आया जिसने राजनैतिक दुनिया में उथल पुथल मचा दी. 1995 ही वो साल था जब नागपुर के क्रिकेट स्टेडियम में एक तरफ खिलाड़ी चौके छक्के लगा रहे थे तो दूसरी तरफ उसी क्रिकेट स्टेडियम में मौतें हो रही थीं. आइए आपको टाइममशीन के जरिए बताते हैं वर्ष 1995 की 10 दिलचस्प कहानियां...
जब देश में आया मोबाइल फोन!
तकनीकि के क्षेत्र में भारत को बड़ी उपलब्धि साल 1995 में मिली. जब पहली बार देश में मोबाइल फोन आया. भारत में सबसे पहली मोबाइल कॉल करीब ढाई दशक पहले 31 जुलाई 1995 को हुई थी. देश में पहली मोबाइल कॉल किसी और ने नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम ने की थी. यह फोन कॉल कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से दिल्ली के संचार भवन में कनेक्ट किया गया था. इस कॉल के साथ ही कोलकाता में मोबाइल फोन सेवा की शुरुआत की गई थी. आपको बता दें कि, देश की पहली मोबाइल कॉल मोदी टेल्स ट्रामोबाइलनेट सर्विस के जरिए की गई थी.
देश में इंटरनेट सेवा की शुरूआत!
एक तरफ जहां देश में साल 1995 में मोबाइल फोन की सुविधा भारतीयों को मिली तो वहीं इसी साल से एक और आयाम तकनीकि के क्षेत्र में भारत को हासिल हुआ और वो था इंटरनेट सेवा का. आज के जमाने में जहां इंटरनेट ने लगभग हर परेशानी का हल निकाल दिया है. लेकिन इसकी नींव साल 1995 में रखी गई थी. इंटरनेट सेवा की शुरूआत भारत में 1995 में स्वतंत्रता दिवस के दिन यानी 15 अगस्त के दिन ही की गई थी. आम लोगों के लिए इंटरनेट सुविधा विदेश संचार निगम लिमिटेड यानी VSNL के गेटवे सर्विस के साथ शुरू की गई. इसके बाद साल 1998 में सरकार ने निजी कंपनियों को इंटरनेट सेवा क्षेत्र में आने की इजाजत दी.
देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री मायावती!
बहुजन समाज पार्टी की कर्ता धर्ता कही जाने वाली मायावती देश की पहली दलित महिला थीं जो साल 1995 में मुख्यमंत्री बनीं. मायावती 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. वह इस पद को संभालने वाली दलित समुदाय की अकेली महिला सदस्य भी हैं. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान मायावती की मुलाकात नेता कांशीराम से हुई. इसके बाद साल 1984 में मायावती को बसपा में शामिल किया गया. मायावती ने अपना पहला चुनाव साल 1984 में उत्तर प्रदेश में कैराना लोकसभा सीट से लड़ा था. इसके बाद दूसरी बार साल 1985 में उन्होंने बिजनौर और फिर 1987 में हरिद्वार से चुनाव लड़ा. साल 1989 में मायावती को बिजनौर से जीत हासिल हुई.
मायावती पहली बार साल 1994 में राज्यसभा सांसद बनीं. इसके बाद 1995 में गठबंधन की सरकार बनाते हुए मुख्यमंत्री बनीं. उस समय तक मायावती राज्य की सबसे कम उम्र में बनने वाली मुख्यमंत्री थीं.
मायावती का 'गेस्ट हाउस कांड'!
साल 1995 में एक तरफ जहां मायावती देश की पहली दलित महिला सीएम बनीं. तो वहीं दूसरी तरफ इसी साल मायावती के साथ वो हुआ, जो उन्होंने कभी सोचा नहीं था. 1993 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बीएसपी के मुखिया कांशीराम ने गठबंधन किया. दोनों पार्टियों ने विधानसभा चुनाव गठबंधन पर लड़कर सत्ता तो हासिल कर ली, लेकिन दो साल बाद सबकुछ बदल दिया.
गठबंधन सरकार में आपसी खींचतान के चलते 2 जून 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया. इससे मुलायम सरकार अल्पमत में आ गई. नाराज सपा कार्यकर्ताओं ने सीमाएं लांघनी शुरू की. कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस का घेराव करना शुरू किया. उस वक्त बीएसपी नेता मायावती इसी गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में रुकी थीं. बताया जाता है कि सपा के कार्यकर्ताओं ने बसपा के विधायक और नेताओं को बंधक बना लिया, जो उस वक्त वहीं मौजूद थे. मामला इतना बिगड़ा कि, इसी बीच मायावती ने खुद को कमरे में कैद कर लिया. कहा तो ये भी जाता है कि कथित तौर पर सपा के गुंडों ने बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ बदतमीजी की और अभद्र व्यवहार किया. इसके बाद पुलिस प्रशासन पहुंचा और दावा ये भी किया जाता है कि अपनी जान पर खेलकर बीजेपी विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी मौके पर पहुंचे और सपा विधायकों और समर्थकों को पीछे धकेलकर मायावती को बचाया. गेस्ट हाउस कांड से यूपी की सियासत में तूफान आ गया. इसके बाद कई बड़े नेताओं पर मुकदमे दर्ज हुए, जिसमें मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव समेत कई नेताओं के नाम शामिल थे.
मैच चलता रहा, मौतें होती रहीं!
अगर आपसे कहा जाए कि एक तरफ क्रिकेट के मैदान पर खिलाड़ी मैच खेल रहे थे छक्के चौके लगा रहे थे. तो वहीं दूसरी ओर उसी स्टेडियम बैठे क्रिकेट प्रेमियों की मौतें हो रही थीं. मामला 1995 का है. जब क्रिकेट के मैदान में एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया. दरअसल 1995 में 25 नवंबर के दिन टीम इंडिया न्यूजीलैंड के खिलाफ नागपुर में 5वां वनडे इंटरनैशनल मैच खेल रही थी. ये मैच नागपुर के विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के मैदान पर खेला जा रहा था. इस मैच की एक पारी पूरी हो चुकी थी और लंच ब्रेक चल रहा था और उधर स्टेडियम में भारी तादाद में दर्शक मैच का मजा लेने पहुंचे थे.
ब्रेक टाइम में लोग भी इधर से उधर हो रहे थे कि इसी बीच स्टेडियम के ईस्ट स्टैंड का एक हिस्सा ढह गया और ऐसा दर्शकों की भागदौड़ और धक्का मुक्की के चलते हुआ. दीवाल के ढह जाने के कारण कई लोग इसके नीचे दब गए. इस हादसे में 9 लोगों की जान चली गई. 3 दर्शकों की मौत तो मौके पर ही हो गई. जबकि 6 लोगों ने अस्पताल में दम तोड़ा और करीब 50 लोग इस घटना में घायल हुए.
इतना भयंकर हादसा होने पर भी वीसीए अधिकारियों ने न तो मैच को रोका और न ही इस बारे में खिलाड़ियों को सूचना दी. जांच में पाया गया कि दीवाल कुछ दिन पहले ही बनी थी और आर्किटेक्ट और कॉन्ट्रैक्टर समेत 4 लोगों को लापरवाही का आरोप लगा.
दिल्ली का चर्चित तंदूर कांड!
2 जुलाई 1995 को सुशील शर्मा नाम के एक शख्स ने अपनी पत्नी नैना साहनी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. दरअसल सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना और फिर जब उसने पता लगाया तो जिस शख्स से सुशील की पत्नी ने बात की वो उसका दोस्त ही था. इसके बाद सुशील ने नैना की गोली मारकर हत्या कर दी और अपनी पत्नी के शव को एक रेस्टोरेंट ले गया. जहां उसने पत्नी को मक्खन लगाकर तंदूर में जलाने की कोशिश की.
इसी बीच वहां से एक गुज़र रही महिला को इसकी भनक लगी. तो उसे लगा कि रेस्टोरेंट में आग लग गई है और फिर महिला ने चिल्लाना शुरू कर दिया. बस महिला के चिल्लाने के बाद आरोपी सुशील की दिल दहला देने वाली करतूत सामने आ गई और वहां दिल्ली पुलिस के सिपाही अब्दुल नजीर वहां पहुंचे और आरोपी सुनील को गिरफ्तार किया गया.
आपको बता दें कि, ये देश का सबसे चर्चित कांड माना जाता है, जिसमें किसी महिला को तंदूर में जला दिया गया था. आरोपी सुशील को साल 2000 में ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने जारी रखा था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बदलते हुए शर्मा को राहत दी थी और सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. इसके बाद उसे 2015 में पेरौल पर रिहा भी किया गया और 2018 में सजा पूरी होने पर रिहा कर दिया गया था और इस तरह से इस मामले में सुनील शर्मा ने 23 साल जेल में बिताए थे.
जब दिखा अमरीश पुरी का खौफ!
साल 1995 में एक फिल्म आई जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई थी और वो फिल्म थी करण अर्जुन. सलमान खान और शाहरुख खान स्टारर इस फिल्म में लंबी चौड़ी स्टारकास्ट थी. फिल्म की खूब तारीख हुई. लेकिन फिल्म में सबसे ज्यादा सुर्खियां अमरीश पुरी ने बटोरीं, जो फिल्म में विलेन के रोल में थे. फिल्म की शूटिंग राजस्थान के गावों में हुई और यही वजह है कि, बीलवाड़ी गांव काफी सुर्खियों में रहा. करीब एक घंटे की फिल्म की शूटिंग यहीं हुई थी. भंगड़ा पाले गाना का सीन हो या फिर फिल्म का कोई दूसरा सीन हो. फिल्म की लगभग ज्यादा शूटिंग यही हुई. यहां तक कि फिल्म में ठाकुर का रोल निभाने वाले अमरीश पुरी का खौफ दिखाने के लिए गांव में सन्नाटा पसरा होने और लोगों के घरों में बंद रहने के सीन यहीं फिल्माए गए थे.
आपको जानकर हैरानी होगी कि फिल्म के सीन में गांव में सन्नाटा दिखाने के लिए फिल्ममेकर्स गांव वालों को घरों में रहने को कहते थे. मेकर्स के कहने पर गांवों के लोग घरों में छिप गए थे. ताकि कोई भी व्यक्ति बाहर ना दिखे और गांव में सन्नाटा दिखे. उस वक्त किसी भी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश नहीं दिया जाता था.
मध्यप्रदेश बना 'टाइगर स्टेट ऑफ इंडिया'
1995 में मध्य प्रदेश को एक और नई उपलब्धि मिली. दरअसल इसी साल एमपी को टाइगर स्टेट ऑफ इंडिया का खिताब मिल गया था और इसके पीछे की एक वजह ये थी क्योंकि उस वक्त दुनिया में बाघों की आबादी का लगभग छठा हिस्सा यहां था. या यूं कह लीजिए कि सबसे ज्यादा बाघ यहीं पर थे. इसी वजह से मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट ऑफ इंडिया घोषित किया गया. यहां 10 राष्ट्रीय पार्क और 25 वन्य जीव अभ्यारण्य हैं. पन्ना नेशनल पार्क 1994 और पेंच नेशनल पार्क 1992 में टाइगर रिजर्व घोषित हुआ. यहां 6 टाइगर रिजर्व हैं.
थिएटर में DDLJ की धूम
साल 1995 में शाहरुख और काजोल स्टारर फिल्म दिल वाले दुलह्निया रिलीज हुई थी. इस फिल्म ने रिलीज के साथ ही बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की थी और फिल्म को दर्शकों ने भी खूब पसंद किया था.
लेकिन मुंबई के मराठा मंदिर में ये फिल्म सालों तक लगी रही. जी हां, 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' बॉलीवुड की सबसे लंबे वक्त तक चलने वाली फिल्म है. ये फिल्म मुंबई के मराठा मंदिर में करीब 20 साल से ज्यादा तक चली थी. फिल्म को देखने के लिए खुद शाहरुख खान भी आ चुके हैं. इसके अलावा कई दूसरे सितारों ने भी मुंबई के मराठा मंदिर में जाकर इस फिल्म को देखा और हिंदी सिनेमा की डीडीएलजे इकलौती ऐसी फिल्म बनी जो सबसे लंबे वक्त तक थिएटर में चली. इस फिल्म को 1996 में हुए फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में 14 कैटेगरी में नॉमिनेशन मिला था जिसमें से 10 अवॉर्ड्स इसने अपने नाम किए थे.
गणपति को दूध पिलाने के लिए उमड़ी भीड़
साल 1995 में एक ऐसी अफवाह उड़ी, जो पूरी दुनिया में फैल गई थी. दरअसल अफवाह यह थी कि भगवान गणेश चम्मच और कटोरी से दूध पी रहे हैं. खबर आग में जंगल की तरह फैली देशभर के मंदिरों में गणेश जी दूध पिलाने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. लोग गिलास में दूध लिए देर रात तक अपनी बारी का इंतजार करते देखे गए.
दरअसल पूरा मामला दिल्ली से उठा. दिल्ली के एक गणेश जी के मंदिर में अचानक सुबह सुबह हर तरफ ये अफवाह फैलने लगी कि मंदिर में गणेश जी चम्मच से दूध पी रहे हैं और ऐसा हुआ भी कि गणेश जी की प्रतिमा ने दूध पिया है. देखते ही देखते मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा हो गई और हर कोई अपनी अपनी बारी का इंतजार करने लगा. यहां तक कि बीजेपी के तत्कालीन नेता अटल बिहारी वाजपेयी भी मंदिर में गणेशजी की प्रतिमा को दूध पिलाते नजर आए थे.
न्यूज चैनल्स और अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया. ये घटना 21 सितंबर 1995 की थी, 22 सितंबर को दूसरे देशों में ये खबर फैल गई. बाद में गणेश जी की प्रतिमा के दूध पीने की थ्योरी पर विचार मंथन किया गया. वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष के रूप में जिस थ्योरी को जन्म दिया उसे 'मास हाइपनोसिस' यानी 'साइको-मैकेनिक रिएक्शन' का नाम दिया गया.
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