DNA: एक देश एक चुनाव.. 2029 में मोदी की गारंटी, नफा-नुकसान क्या हैं?
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DNA: एक देश एक चुनाव.. 2029 में मोदी की गारंटी, नफा-नुकसान क्या हैं?

Election System In India: देश में पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव भी होते हैं. लेकिन एक देश, एक चुनाव के प्रस्ताव में इन्हें शामिल नहीं किया जाता. कोविंद कमेटी ने सिफारिश की है कि पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव, लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिन के अंदर करवाने चाहिए.

DNA: एक देश एक चुनाव.. 2029 में मोदी की गारंटी, नफा-नुकसान क्या हैं?

One Nation One Election: साल 2014 में बीजेपी के घोषणापत्र में एक देश, एक चुनाव का भी वादा था. अब मोदी सरकार ने अपने इस वादे को पूरा करने की तैयारी तेज कर दी है. वर्ष 2029 में एक देश, एक चुनाव हो सकते हैं. जिसकी सिफारिश एक देश, एक चुनाव पर विचार के लिए बनाई गई कमेटी ने की है.

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने आज राष्ट्रपति मुर्मु को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इस कमेटी का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था. इस रिपोर्ट को तैयार करने में 191 दिन लगे..रिपोर्ट के लिए आम लोगों से लेकर तमाम एक्सपर्ट्स की राय ली गई है.

एक देश, एक चुनाव क्या है?
कोविंद कमेटी की वो रिपोर्ट है..जिसमें एक देश, एक चुनाव से जुड़े हर पहलु के बारे में बताया गया है और इससे जुड़े हर सवाल का जवाब दिया गया है. ये रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की है. सबसे पहले ये समझ लेते हैं कि एक देश, एक चुनाव क्या है? इसे 2 Point में समझिये. अभी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होते हैं. लेकिन एक देश, एक चुनाव के Concept के तहत लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए जाने चाहिए.

आजादी के बाद एक देश, एक चुनाव का ही Concept था...
देश में पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव भी होते हैं. लेकिन एक देश, एक चुनाव के प्रस्ताव में इन्हें शामिल नहीं किया जाता. कोविंद कमेटी ने सिफारिश की है कि पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव, लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिन के अंदर करवाने चाहिए. अब आप सोचेंगे कि ये तो बढ़िया चीज है. इसे लागू करने में क्या दिक्कत हो सकती है और ये नियम पहले क्यों नहीं लागू हए. तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आजादी के बाद भारत में एक देश, एक चुनाव का ही Concept था.

उन्नीस सौ सड़सठ (1967) तक भारत में राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ ही चुनाव होते थे. वर्ष 1952 में हुए पहले चुनाव, उसके बाद 1957, 1962 और उन्नीस सौ सड़सठ (1967) में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ हो चुके हैं. लेकिन ये सिलसिला तब टूटा जब 1968- उन्नीस सौ उनहत्तर में कुछ राज्यों की विधानसभाएं, समय से पहले भंग कर दी गई. इसके बाद वर्ष उन्नीस सौ इकहतर में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे.

यानी ऐसा नहीं है कि देश में एक देश, एक चुनाव का Concept नया नहीं है. आजादी के बाद एक बार में ही लोकसभा और विधानसभाओँ में चुनाव होते रहे हैं.. लेकिन देश में आखिरी बार एक देश, एक चुनाव उन्नीस सौ सड़सठ (1967) में हुए थे. तो अब सवाल ये है कि इस बात को तो करीब सत्तावन साल बीत चुके हैं. क्या आज एक देश, एक चुनाव संभव हैं? क्योंकि अब तो स्थिति ये है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ सिर्फ चार राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए थे.

राज्यों की विधानसभाओं का क्या होगा?
ऐसे में वर्ष 2029 में अगर एक देश, एक चुनाव करवाना है तो राज्यों की विधानसभाओं का क्या होगा? और 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव करवाना कैसे मुमकिन होगा? क्योंकि, हर वर्ष किसी ना किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होते रहते हैं. यही सबसे बड़ा सवाल है और इस सवाल का जवाब भी कोविंद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में दिया है.

विधानसभा का कार्यकाल छोटा करना पड़ेगा
कोविंद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ये सुझाव दिया है, कि 2029 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए अस्थाई उपाय की आवश्यकता होगी. जिससे सभी राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल जून 2029 तक पूरा हो सके. क्योंकि, वर्ष 2029 तक अलग-अलग राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में जो फॉर्म्यूला बताया गया है उसके मुताबिक कुछ राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल छोटा करना पड़ेगा, जबकि कुछ का कार्यकाल बढ़ाना पड़ सकता है. जैसे

- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा का कार्यकाल जून 2024 में पूरा हो रहा है, इसी तरह जून 2029 में इन राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल पूरा होगा, इसलिए यहां कोई दिक्कत नहीं है. क्योंकि इन राज्यों में विधानसभा के चुनाव लोकसभा के साथ कराए जा सकते हैं.

- लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा का कार्यकाल नवंबर 2024 में पूरा हो रहा है, दोबारा चुनाव के बाद दोनों राज्यों का कार्यकाल नवंबर 2029 में पूरा होगा. इन राज्यों में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए विधानसभा का कार्यकाल 5 महीने छोटा करना पड़ेगा. तभी जून 2029 में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव संभव हो पायेंगे.

- इसी तरह दिल्ली में फरवरी 2025 में विधानसभा चुनाव होंगे, जिसका कार्यकाल फरवरी 2030 तक रहेगा. यहां विधानसभा का कार्यकाल 8 महीने कम करना होगा. झारखंड विधानसभा का अगला कार्यकाल जनवरी 2030 तक रहेगा जिसमें 7 महीने की कटौती करनी पड़ेगी.

- अब बिहार की स्थिति समझिये, मौजूदा बिहार विधानसभा नवंबर 2025 तक चलेगी. इसके बाद बिहार विधानसभा कार्यकाल कटौती के बाद जून 2029 तक साढ़े तीन साल का रहेगा.

- असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुद्दुचेरी की विधानसभा का कार्यकाल मई 2026 में पूरा होगा, बाद का कार्यकाल जून 2029 तक सिर्फ तीन साल और 1 महीने का ही रहेगा. तभी लोकसभा के साथ यहां विधानसभा चुनाव हो सकते हैं.

- कोविंद कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2027 में छह राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल पूरा होगा, इन राज्यों में विधानसभा के मौजूदा कार्यकाल में एक से डेढ़ साल की कटौती की जाये, और अगला कार्यकाल सवा दो साल का रखने का सुझाव है.

- अगर किसी राज्य में विधानसभा भंग हो जाती है, तो दोबारा चुनाव होंगे. लेकिन विधानसभा का कार्यकाल बचे हुए समय के लिए ही होगा.

- इसके अलावा अगर किसी राज्य की विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है, तो इसके साथ विश्वास प्रस्ताव भी लाया जायेगा. ताकि बचे हुए विधानसभा के कार्यकाल को नई सरकार पूरा करे.

इस तरह कुछ राज्यों के विधानसभा के कार्यकाल को कम करके जून 2029 तक लाया जा सकता है. जिससे एक देश एक चुनाव की व्यवस्था को लागू किया जा सकता है. क्योंकि, एक बार ऐसा हो गया, तो फिर भविष्य में इस तरह की दिक्कतें नहीं होंगी. हर पांच साल में लोकसभा के साथ ही राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न हो सकेंगे.

अब आप समझ गए होंगे कि देश में लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कैसे संभव होंगे? लेकिन आपमें से सभी लोग एक देश, एक चुनाव के पक्ष में ही हों..ऐसा तो हो नहीं सकता. ऐसा ही राजनीतिक दलों के साथ भी है.

कोविंद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि एक देश-एक चुनाव पर 47 राजनीतिक दलों ने कमेटी को अपनी राय दी. इनमें से 32 ने पक्ष में और 15 ने विपक्ष में मत रखा है. एक देश, एक चुनाव के विरोध में कांग्रेस, TMC, NCP, AAP जैसी विपक्षी पार्टियां हैं जबकि बीजेपी और उसके सहयोगी दल, एक देश एक चुनाव के हक में हैं.

एक देश एक चुनाव का विरोध करने वालों के अपने तर्क हैं..और इसका पक्ष लेने वालों की अपनी दलीलें हैं...हम चाहते हैं कि एक देश, एक चुनाव पर अपनी राय बनाने से पहले आपको ये पता होना चाहिए कि इसके पक्ष और विपक्ष में कौन-कौन सी दलीलें दी जा रही हैं..

एक देश, एक चुनाव के समर्थन में दिये जाने वाले तर्क

इसके समर्थन में सबसे बड़ा तर्क ये दिया जाता है कि इससे हर साल चुनावों पर होने वाले खर्च में कमी आएगी.
जाहिर सी बात है कि जब पांच साल में एक बार ही चुनाव होंगे तो खर्च तो कम होगा ही. और इससे सरकार को काफी बचत होगी. कोविंद कमेटी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगर लोकसभा और विधानसभा..दोनों के चुनाव एक साथ कराये जायें तो आर्थिक विकास दर में करीब डेढ़ फीसदी का इजाफा होने की संभावना है.

एक देश, एक चुनाव के समर्थन में दूसरा तर्क दिया जाता है कि इससे देश में विकास कार्यों में तेजी आएगी.
दरअसल हमारे देश में हर साल चार से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होते हैं. इस दौरान चुनावी राज्यों में करीब दो महीने तक आचार संहिता लागू होती है. जिसकी वजह से नई विकास योजनाएं लागू नहीं हो पातीं. और कई बार तो चुनाव के बाद सत्ता बदलने की वजह से कई विकास योजनाएं अधर में लटक जाती हैं. एक देश, एक चुनाव से ऐसा नहीं होगा.

एक देश, एक चुनाव से एक फायदा ये भी होगा कि सरकारी अधिकारियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और सुरक्षा बलों के समय और ऊर्जा की बचत होगी. जब भी किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं तो स्कूल, कॉलेज और अन्य सरकारी विभागों के साथ-साथ पुलिस बल के कर्मचारियों को चुनावी ड्यूटी में लगना पड़ता है. जिससे सरकारी काम बाधित होता है. एक चुनाव होने से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल एक ही बार होगा. जिससे सारी संस्थाएं बेहतर ढंग से काम कर सकेंगी.

एक देश एक चुनाव से नीतिगत निर्णयों में निश्चितता आएगी.
एक ही बार चुनाव होगा, तो सरकारों को वोटबैंक को ध्यान में रखकर जनता को लुभाने वाली योजनाएं चलाने के हथकंडे नहीं अपनाने होंगे, बजट में राजनीतिक समीकरणों को ज्यादा तवज्जो नहीं देनी पड़ेगी. यानी एक बेहतर नीति के तहत सरकार चल सकेगी.

एक देश, एक चुनाव के समर्थन में एक और तर्क भी दिया जाता है कि एक ही बार में सभी चुनाव होंगे तो वोटर ज्यादा संख्या में वोट करने निकलेंगे..इससे लोकतंत्र और ज्यादा मजबूत होगा.

ये सारी बातें सुनकर आपको लग रहा होगा कि एक देश, एक चुनाव तो बड़े कमाल का Concept है..इसे तो जल्द से जल्द लागू कर दिया जाना चाहिए. लेकिन किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले आपको ये भी पता होना चाहिए कि एक देश, एक चुनाव के Idea के विरोध में क्या तर्क दिए जाते हैं...

विरोध में तर्क दिया जा रहा है..
क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियां स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ती हैं. लेकिन जब लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी होंगे तो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को लाभ मिलेगा. एक सर्वे के मुताबिक अगर एक साथ चुनाव हुए तो वोटर के लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव में एक ही पार्टी को वोट करने के चांस 77 प्रतिशत होंगे.

विरोध में एक तर्क ये भी है कि एक साथ चुनाव से स्थानीय मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो जाएंगे. .
आमतौर पर विधानसभा चुनाव...स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं. लेकिन संभावना है कि जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में होंगे तो मतदाता स्थानीय मुद्दों के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर ही विधानसभा में भी वोटिंग करेंगे.

एक देश एक चुनाव के विरोध में ये तर्क भी दिया जा रहा है कि ये देश के संघीय ढांचे के खिलाफ होगा. क्योंकि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने पर कुछ विधानसभाओं की मर्जी के खिलाफ उनके कार्यकाल को बढ़ाया या घटाया जायेगा जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है.

एक देश एक चुनाव के विरोध में एक दलील ये भी है कि एक चुनाव जीतने के बाद सरकारें निरंकुश होकर काम करने लगेंगी. दरअसल अलग-अलग समय पर चुनाव होने से सरकारों को जनता के प्रति लगातार जवाबदेह रहना पड़ता है. लेकिन अगर एक ही बार चुनाव हो जाएंगे तो सरकारें जनता के प्रति जवाबदेही से बच जाएंगी. एक देश एक चुनाव के विरोध में ये भी कहा जाता है कि भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में एक देश, एक चुनाव तार्किक नहीं है. जानकारों के मुताबिक एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव करवाए जाने के लिए मौजूदा संसाधनों और मशीनरी से कम से कम दोगुने संसाधनों की जरूरत पड़ेगी.

तो अब आपको एक देश, एक चुनाव के लाभ और हानि..दोनों पता चल चुके हैं. लेकिन कोविंद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में एक देश, एक चुनाव को देश की जरूरत बताया है. और वर्ष 2029 में एक साथ चुनाव करवाने की सिफारिश की है. हमें उम्मीद है कि एक देश, एक चुनाव पर आप भी अपनी राय बना चुके होंगे. लेकिन अलग-अलग राजनीतिक दलों की इस पर क्या राय है..ये भी आपको सुनवाते हैं...

एक देश, एक चुनाव एक ऐसा Concept है, जो सुनने में तो आसान लगता है लेकिन इसे लागू करना इतना आसान नहीं है. खुद Law Commission ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि संविधान के मौजूदा ढांचे के तहत, एक साथ चुनाव नहीं करवाए जा सकते. तो अब आपको बताते हैं कि देश में एक साथ चुनाव करवाने की चुनौतियां क्या हैं?

ये चुनौतियां मुख्य तौर पर दो तरह की हैं. पहली - संवैधानिक और दूसरी - आर्थिक.

संवैधानिक विशेषज्ञों के मुताबिक...अगर एक देश-एक चुनाव को लागू करना है तो तीन शर्तें पूरी करनी होंगी..

पहली शर्त
संविधान में कम से कम 5 संशोधन करने होंगे,

दूसरी शर्त
कुछ संवैधानिक संशोधनों के लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों को भी रजामंदी देनी होगी

तीसरी शर्त
संवैधानिक संशोधनों के बाद संसद में 2 तिहाई बहुमत से बिल को पास करवाना होगा.

देश में एक साथ चुनाव को लेकर आर्थिक चुनौती भी है, वैसे एक साथ चुनाव के पक्ष में धन की बचत का तर्क भी दिया जा रहा है. लेकिन भारत जैसे विशाल और आबादी वाले देश में एक साथ चुनाव कराने से आर्थिक दबाव भी पड़ेगा. Law Commission ने बताया था कि

- एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के लिए 30 लाख EVM मशीन और VVPAT मशीन की आवश्यकता होगी.

- भारत में इस्तेमाल होने वाली एक EVM की कीमत 17 हज़ार रुपये है, करीब इतनी ही कीमत एक VVPAT मशीन की है. एक देश एक चुनाव के लिए 15 लाख नए EVM मशीन खरीदने की जरूरत होगी.

- चुनाव आयोग के मुताबिक 15 वर्ष के बाद EVM और VVPAT मशीन को बदलने की आवश्यकता होती है, इसके लिए अलग से 9,284 करोड़ रुपये की जरूरत होगी.

- चुनाव आयोग के लिए चुनौती 30 लाख EVM मशीनों को जुटाना और मशीनों को स्टोर करने के लिए बड़ी जगह की जरूरत होगी. मशीनों को स्टोर करने का खर्च बढ़ेगा.
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इससे अलग एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए चुनाव आयोग को कम से कम डेढ साल का समय चाहिए होगा. मतलब ये कि एक देश एक चुनाव जितना आसान लग रहा है, उसमें उतनी ही चुनौतियां भी हैं.

एक साथ चुनाव का कानून बनाने में कई तरह की संवैधानिक और व्यवाहारिक बाधाएं हैं..लेकिन ऐसा नहीं है कि ये हो ही नहीं सकता. इसका उदाहरण तो खुद भारत ही है, जहां पहले एक साथ ही चुनाव होते थे और अभी भी दुनिया के कई देशों में एक साथ ही चुनाव करवाने की परंपरा है..

ब्रिटेन में House Of Commons, स्थानीय चुनाव और मेयर चुनाव साथ में होते हैं.

फ्रांस में भी हर पांच साल में एक साथ राष्ट्रपति और नेशनल असेंबली के लिए चुनाव कराए जाते हैं.

अमेरिका में भी राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के लिए चुनाव...हर चार साल में पर होते हैं.

दक्षिण अफ्रीका में संसद, विधानसभाओं और नगर पालिकाओं के चुनाव भी एक साथ होते हैं.

इंडोनेशिया में राष्ट्रपति और Legislative Election साथ करवाए जाते हैं.

स्वीडन में भी हर चार साल में आम चुनाव के साथ County और नगरपालिकाओं के चुनाव एक साथ होते हैं.

इसके अलावा Germany, Phillipines, Brazil समेत कई अन्य देशों में भी एक साथ ही सारे चुनाव होते हैं.

तो जो अन्य देशों में हो सकता है, वो भारत में भी हो सकता है. जब एक देश, एक विधान हो सकता है, जब एक देश, एक टैक्स हो सकता है. एक देश, एक कानून हो सकता है तो एक देश, एक चुनाव भी हो सकता है. और वर्ष 2014 में ही प्रधानमंत्री मोदी वादा कर चुके थे कि वो एक देश, एक चुनाव को लागू करवाएंगे.

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