तमिलनाडु की राजनीति में 3 दशकों तक लहराया जयललिता का परचम
Advertisement
trendingNow1311685

तमिलनाडु की राजनीति में 3 दशकों तक लहराया जयललिता का परचम

पिछले तीन दशकों से तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण सितारा रहकर अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाली जयललिता तमाम अड़चनों और भ्रष्टाचार के मामलों से झटके के बावजूद वापसी करने में सफल रहीं थीं।

तमिलनाडु की राजनीति में 3 दशकों तक लहराया जयललिता का परचम

चेन्नई: पिछले तीन दशकों से तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण सितारा रहकर अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाली जयललिता तमाम अड़चनों और भ्रष्टाचार के मामलों से झटके के बावजूद वापसी करने में सफल रहीं थीं।

छठे और सातवें दशक में तमिल सिनेमा में अभिनय का जादू बिखेरनी वाली जयललिता अपने पथप्रदर्शक और सुपरस्टार एमजीआर की विरासत को संभालने के बाद 5 बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं। राजनीति में तमाम झंझावतों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी बदौलत अपना मुकाम हासिल किया। कर्नाटक के मैसूर में एक ब्राह्मण परिवार में जयललिता का जन्म हुआ था। ब्राह्मण विरोधी मंच पर द्रविड़ आंदोलन के नेता अपने चिर प्रतिद्वंद्वी एम करूणानिधि से उनकी लंबी भिड़ंत हुयी।

राजनीति में 1982 में आने के बाद औपचारिक तौर पर उनकी शुरुआत तब हुयी जब वह अन्नाद्रमुक में शामिल हुयीं। वर्ष 1987 में एम जी रामचंद्रन के निधन के बाद पार्टी को चलाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गयी और उन्होंने व्यापक राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया। भ्रष्टाचार के मामलों में 68 वर्षीय जयललिता को दो बार पद छोड़ना पड़ा लेकिन दोनों मौके पर वह नाटकीय तौर पर वापसी करने में सफल रहीं।

नायिका के तौर पर जयललिता का सफर ‘वेन्निरा अदाई’ (द व्हाइट ड्रेस) से शुरू हुआ। राजनीति में उनकी शुरुआत 1982 में हुयी जिसके बाद एमजीआर ने उन्हें अगले साल प्रचार सचिव बना दिया। रामचंद्रन ने करिश्माई छवि की अदाकारा-राजनेता को 1984 में राज्यसभा सदस्य बनाया जिनके साथ उन्होंने 28 फिल्में की। 1984 के विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रभार का तब नेतृत्व किया जब अस्वस्थता के कारण प्रचार नहीं कर सके थे। वर्ष 1987 में रामचंद्रन के निधन के बाद राजनीति में वह खुलकर सामने आयीं लेकिन अन्नाद्रमुक में फूट पड़ गयी। ऐतिहासिक राजाजी हॉल में एमजीआर का शव पड़ा हुआ था और द्रमुक के एक नेता ने उन्हें मंच से हटाने की कोशिश की। 

बाद में अन्नाद्रमुक दल दो धड़े में बंट गया जिसे जयललिता और रामचंद्रन की पत्नी जानकी के नाम पर अन्नाद्रमुक (जे) और अन्नाद्रमुक (जा) कहा गया। एमजीआर कैबिनेट में वरिष्ठ मंत्री आर एम वीरप्पन जैसे नेताओं के खेमे की वजह से अन्नाद्रमुक की निर्विवाद प्रमुख बनने की राह में अड़चन आयी और उन्हें भीषण संघर्ष का सामना करना पड़ा।

जयललिता ने बोदिनायाकन्नूर से 1989 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और सदन में पहली महिला प्रतिपक्ष नेता बनीं। इस दौरान राजनीतिक और निजी जीवन में कुछ बदलाव आया जब जयललिता ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ द्रमुक ने उनपर हमला किया और उनको परेशान किया गया। रामचंद्रन की मौत के बाद बंट चुकी अन्नाद्रमुक को उन्होंने 1990 में एकजुट कर 1991 में जबरदस्त बहुमत दिलायी।

अलबत्ता, पांच साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोपों, अपने दत्तक पुत्र की शादी में जमकर दिखावा और उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं करने के चलते उन्हें 1996 में अपने चिर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी। इसके बाद उनके खिलाफ आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति सहित कई मामले दायर किये गए। अदालती मामलों के बाद उन्हें दो बार पद छोड़ना पड़ा। पहली बार 2001 में दूसरी बार 2014 में। उच्चतम न्यायालय द्वारा तांसी मामले में चुनावी अयोग्यता ठहराने से सितंबर 2001 के बाद करीब 6 महीने वह पद से दूर रहीं। 

बेंगलुरू में एक निचली अदालत द्वारा भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषसिद्धि के बाद एक बार फिर विधायक से अयोग्य ठहराए जाने पर 29 सितंबर 2014 और 22 मई 2015 के बीच उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा। बाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसले को खारिज कर दिया। दो बार उन्हें जेल जाना पड़ा। पहली बार तब जब द्रमुक सरकार ने 1996 में भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया और दूसरी बार 2014 में दोषसिद्धि के बाद। बहरहाल, जयललिता दोनों मौके पर वापसी करने में सफल रहीं।

वह पांच बार- वर्ष 1991-96, मई-सितंबर 2001, 2002-06, 2011-14 और 2015-16 में मुख्यमंत्री रहीं। ‘पुराची तलैवी’ (क्रांतिकारी नेता) कही जाने वाली जयललिता ने 2011 में सभी अटकलों को खारिज कर दिया कि द्रमुक सत्ता में बरकरार रहेगी। उन्होंने डीएमडीके और वाम दलों के साथ गठबंधन कर अपनी पार्टी को शानदार जीत दिलायी। तीन दशकों बाद इतिहास रचते हुए पार्टी को लगातार जीत दिलाकर वर्ष 2016 में उन्होंने सत्ता कायम रखी।

जयललिता को शिक्षा और रोजगार में 69% आरक्षण, लुभावने तोहफे बांटने और जल, सीमेंट और रियायती दरों पर कैंटीन जैसे ब्रांड अम्मा पहल सहित कई नयी योजनाएं, कार्यक्रम शुरू करने का श्रेय जाता है। जयललिता की लंबे समय तक सबसे विश्वस्त सहयोगी रहीं शशिकला नटराजन उनके साथ पोएस गार्डन में रहती थीं। शशिकला को कुछ समय के लिए पार्टी से निष्कासित भी किया गया लेकिन दोनों फिर से साथ भी हो गयीं।

Trending news