Parliament Session 2024: कौन हैं वो सांसद, जिनका हाथ पकड़कर संसद पहुंचे अखिलेश यादव? भाजपा को चुभेगी ये तस्वीर
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Parliament Session 2024: कौन हैं वो सांसद, जिनका हाथ पकड़कर संसद पहुंचे अखिलेश यादव? भाजपा को चुभेगी ये तस्वीर

Parliament Session 2024 News: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे और नई सरकार के गठन के बाद संसद का पहला सत्र सोमवार (24 जून) को शुरू हो गया. पहले दिन संसद आते हुए सपा प्रमुख और कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव अपने एक सांसद का हाथ पकड़े हुए दिखे. वहीं, लोकसभा में उन्हें पहली पंक्ति में राहुल गांधी और अपने बीच में बिठाया. इन दोनों दृश्यों ने देशभर का ध्यान खींचा है. 

Parliament Session 2024: कौन हैं वो सांसद, जिनका हाथ पकड़कर संसद पहुंचे अखिलेश यादव? भाजपा को चुभेगी ये तस्वीर

Faizabad (Ayodhya) MP Awadhesh Prasad: आम चुनाव और केंद्र में नई सरकार के गठन के बाद पहले संसद सत्र के पहले दिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने अनोखे कदम से सबका ध्यान खींचा. यूपी की कन्नौज लोकसभा सीट से जीते अखिलेश यादव अपनी पार्टी से पहली बार सांसद चुने गए एक नेता का हाथ पकड़कर संसद आते हुए दिखे. ये तस्वीर सत्तारूढ़ भाजपा को एक तरह से चुभने वाली है.

अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने इस सांसद को अपने बीच बिठाया

सपा के सभी 37 सांसद एक साथ संसद पहुंच रहे थे. इस दौरान अखिलेश यादव ने एक हाथ में संविधान की प्रति और दूसरे हाथ से अपने एक सांसद का हाथ पकड़ा हुआ था. लोकसभा के अंदर आने के बाद अखिलेश ने पहली पंक्ति में अपने और राहुल गांधी के बीच ही उस सांसद को भी बिठाया. इसके बाद लोगों में उत्सुकता बढ़ गई कि आखिर कौन हैं वह सांसद जिन्हें अखिलेश यादव और राहुल गांधी इतनी तवज्जो दे रहे हैं. आइए, उनके बारे में जानते हैं.

सदन बाहर और भीतर सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने खींचा सबका ध्यान 

संसद सत्र के पहले दिन सदन बाहर और भीतर सबका ध्यान खींचने वाले सपा सांसद का नाम अवधेश प्रसाद है. उन्होंने उत्तर प्रदेश की फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा सीट से दो बार के भाजपा सांसद लल्लू सिंह को 54 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर सपा को जीत दिलाई है. भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण और 22 जनवरी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद लोकसभा चुनाव 2024 में इस सीट पर भाजपा की हार ने सबको चौंका दिया था.

'अयोध्या के लिए हमारे पास अच्छी योजनाएं, हमारे एजेंडे अभी तय होंगे'

संसद सत्र के पहले दिन सदन के बाहर फैजाबाद (अयोध्या) के सांसद अवधेश प्रसाद ने कहा, "फैजाबाद के देवतुल्य मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरूंगा... हमारे एजेंडे अभी तय होंगे... अयोध्या के लिए हमारे पास अच्छी योजनाएं हैं." प्रसाद ने लोकसभा सांसद के रूप में शपथ लेने से पहले भी भाजपा पर निशाना साधा. उन्होंने कहा, 'भगवान राम की कृपा से हम चुने गए हैं, अब शपथ लेंगे. भाजपा कहती थी, हम राम को लाए हैं, लेकिन राम जी का आशीर्वाद मुझे मिला.'

मुलायम के करीबी, नौ बार विधायक और यूपी में बड़े दलित नेता की पहचान

सपा संस्थापक और अखिलेश यादव के पिता दिवंगत मुलायम सिंह यादव के करीबी,  नौ बार के विधायक रहे दलित नेता अवधेश प्रसाद ने फैजाबाद लोकसभा सीट से विपक्षी इंडी गठबधन का प्रत्याशी बनते ही अपने जीत को लेकर दावे कर दिए थे. अयोध्या जनपद की मिल्कीपुर विधानसभा से सपा के विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने जनता पार्टी से राजनीति की शुरुआत की थी. साल 1977 में पहली बार अयोध्या जनपद की सोहावल विधानसभा से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. अवधेश प्रसाद ने इसके बाद 1985, 1989, 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 लगातार विधानसभा चुनाव जीतते रहे हैं.

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दलित, मुस्लिम और यादव वोटों पर पकड़, विधानसभा में भी अखिलेश के बगल में सीट

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में मिल्कीपुर विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी गोरखनाथ बाबा ने उन्हें 28,276 मतों से हरा दिया. इसके बाद अवधेश प्रसाद ने 2022 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी गोरखनाथ बाबा को 13 हजार से अधिक मतों से पराजित कर दिया. उसके बाद लोकसभा चुनाव 2024 में जीत से सबको चौंका दिया. सपा की स्थापना के समय से ही जुड़े अवधेश प्रसाद दलित समाज और पासी जाति से हैं. दलित वोट बैंक के साथ ही यादव और मुस्लिम वोटों पर भी उनकी मजबूत पकड़ है. उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी वह अखिलेश यादव के बगल में ही बैठते रहे हैं.

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हार गए थे पहला चुनाव, आपातकाल विरोधी आंदोलन में जेल जाने के बाद पहली जीत 

उत्तर प्रदेश सरकार में छह बार मंत्री रहे अवधेश प्रसाद का जन्म 31 जुलाई, 1945 को सुरवारी गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से 1968 में एलएलबी किया. इसके पहले कानपुर के डीएवी कॉलेज से बीए और एमए की डिग्री ली. उन्होंने अपना पहला चुनाव 1974 में लड़ा और महज 324 वोट से हार गए थे. हालांकि, जयप्रकाश नारायण के आपातकाल विरोधी आंदोलन के सहारे उन्होंने 1977 में जीत दर्ज की और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा

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