इस मौसम में ही पंखा चलाना पड़ा और कुछ लोगों ने तो एयर कंडीशनर तक चला लिए. ऊनी कपड़े पैक कर दिए गए. अगर आप दिल्ली या उत्तर भारत में रहते हैं तो फरवरी महीने से ही शुरू हो गई गर्मी को लेकर आपका अनुभव भी जरूर ऐसा होगा. जबकि होली से पहले तक इतनी ठंड रहती ही है कि सुबह शाम गर्म कपड़े पहनने पड़ें और सोते समय कंबल या हल्की रजाई की जरूरत पड़े. लेकिन वर्ष 2021 की फरवरी ने ये पुराना अनुभव बदल दिया है. गुलाबी ठंड के मौसम में धूप राहत देती थी पर अब परेशान कर रही है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि, दिल्ली में वर्ष 1901 के बाद ये दूसरा मौका है, जब फरवरी महीने में तापमान सबसे अधिक रहा. India Metrological Department जो कि हमारे देश के मौसम से जुड़ी जानकारी रखता है. उसने भविष्यवाणी की है कि मार्च, अप्रैल और मई में हरियाणा, चंड़ीगढ़, पंजाब, पूर्वी राजस्थान और महाराष्ट्र राज्य में सामान्य से ज़्यादा गर्मी होगी. अभी तक आप समझते थे कि क्लाइमेट चेंज सेमिनार और किताबों का विषय है. हम इसे सरकार और नेताओं के भरोसे छोड़ देते हैं. हम यह मान कर चलते थे कि यह मुद्दा एनजीओ और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का है. लेकिन अब मौसम का ये बदलाव आपके घरों में आ चुका है. कल तक मौसम का बदलाव जो बहुत दूर लगता था अब कैसे आपके घरों के भीतर पहुंच चुका है.
दिल्ली से 5,869 किलोमीटर दूर है Italy. इटली में एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है, वेनिस. भारतीय फिल्मों में आपने देखा होगा कि इस शहर में लोग सड़क की जगह नहर का इस्तेमाल करते हैं और गाड़ियों की जगह नाव चलती हैं. पर नहरों के बीच बसे इस शहर की पहचान अब बदल गई है. वेनिस की नहरें सूख गई हैं. इसके लिए भी क्लाइमेट चेंज को कारण माना जा रहा है.
120 साल बाद फरवरी महीने का औसत तापमान 27.9 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया. आमतौर से फरवरी महीने का अधिकतम तापमान 23 डिग्री के आसपास रहता है. तापमान में यही चार डिग्री का फर्क आपके फरवरी वाले पसीने की वजह है. अब हम आपको फरवरी वाली गर्मी की वजह समझाने के लिए वेनिस शहर से आइसलैंड लेकर चलते हैं. इटली से 2,883 और दिल्ली से 8752 किलोमीटर दूर है एक देश जिसका नाम है, आइसलैंड. इस देश का औसत तापमान पूरे वर्ष औसतन 10 से 15 डिग्री सेल्सियस रहता है. कुल जमीन का 11 प्रतिशत हिस्सा हमेशा बर्फ से ढंका रहता है और पूरे देश में करीब 270 ग्लेशियर्स हैं. पर हमेशा ठंडा रहने वाला यह देश आजकल गर्मी से परेशान है. हर वर्ष तापमान 2 से 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है. इसकी वजह से यहां ग्लेशियर्स पिघलना शुरू हो गए हैं. ग्लेशियर के खत्म होने पर यहां अंतिम यात्रा भी निकाली जा रही है. लोग शोकसभा कर रहे हैं और यहां ग्लेशियर की कब्र बनाते हैं. कब्र पर एक पत्थर लगाकर ग्लेशियर की जिंदगी के बारे में लिखा जाता है.
क्लाइमेट चेंज का मतलब है जलवायु में हो रहे परिवर्तन. इसे समझने के लिए आपको पृथ्वी के चारों ओर ओजोन की लेयर के बारे में जानना होगा. यह परत छह गैसों से मिलकर बनी होती है, इसमें सबसे ज्यादा मात्रा आक्सीजन की होती है. ये लेयर पृथ्वी पर आने वाली सूर्य की 99% गर्मी को रोकती है, जिसकी वजह से पृथ्वी का तापमान संतुलित रहता है ज्यादा घटता या बढ़ता नहीं है. पर ओजोन लेयर को पृथ्वी पर चलने वाले वाहनों के धुएं, कोयले के जलने से निकलने वाली गैस, वायु प्रदूषण और एयर कंडीशनर, फ्रिज से निकलने वाली गैसों के कारण बहुत नुकसान हो रहा है. ओजोन परत कमजोर हो रही है, इससे सूर्य की किरणें, पृथ्वी को ज्यादा गरम कर रही है. इसकी वजह से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है और पृथ्वी का मौसम बिगड़ रहा है.
तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इसकी वजह से 2050 तक दुनिया में समुद्र का जलस्तर 20 फीट ऊपर हो जाएगा, और जकार्ता, लॉस एंजिल्स , मनीला, मुंबई, ओसाका, शंघाई, टोक्यो के अलावा फ्लोरिड और न्यूयॉर्क शहर के कई हिस्से पानी में डूब जाएंगे.
इसके अलावा दुनिया के 570 शहर भी डूब जाएंगे और 800 करोड़ लोग बुरी तरह से प्रभावित होंगे. इससे 44 ट्रिलियन यूएस डॉलर यानी 322 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा. गर्मी के समय चलने वाली गरम हवा यानी लू लगने से ही दुनिया में साढ़े बारह करोड़ लोग हर साल मर जाते हैं. अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने साल 2019 को मानव इतिहास में दुनिया का सबसे गर्म साल माना है.
ट्रेन्डिंग फोटोज़