सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने गोवा के हिस्से में बसावट शुरू कर दी थी. तिस्वाड़ी के केंद्रीय जिले जो अब पुराना गोवा है, से अपनी कमान संभाली. अपने समुद्री प्रभुत्व को बचाने के लिए पुर्तगालियों ने पहाड़ियों पर समुद्री तट के साथ किलों का निर्माण किया. 1624 में उन्होंने अपनी मजबूत पकड़ वाले शहर को मोरमुगाओ बंदरगाह की दिशा वाली भूमि पर बनाना शुरू किया.
पुर्तगालियों से पहले गोवा पर राज करने वाले बीजापुर के सुल्तानों ने आसानी से हार नहीं मानी. कई आक्रमण हुए. समुद्र से डच आए, जिन्होंने अंततः पुर्तगालियों से अधिकांश तटीय बस्तियों पर कब्जा कर लिया. 1640 से 1643 तक, डचों ने मोरमुगाओ पर कब्जा करने की पूरी कोशिश की, लेकिन अंत में उन्हें खदेड़ दिया गया.
1683 में गोवा में पुर्तगाली मराठों से गंभीर खतरे में थे. लगभग निश्चित हार टल गई जब संभाजी ने अचानक घेराबंदी उठा ली और मुगल सम्राट औरंगजेब से अपने राज्य की रक्षा के लिए दौड़ पड़े. तब के पुर्तगाली शासक को भारत में पुर्तगाली होल्डिंग्स की राजधानी को मोरमुगाओ के दुर्जेय किले में स्थानांतरित करने की सलाह दी गई.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मोरमुगाओ का बंदरगाह ऑपरेशन क्रीक का केंद्र था. इसी ऑपरेशन के तहत जर्मन व्यापारी जहाज एरेनफेल्स पर बमबारी हुई, जो गुप्त रूप से यू-बोट्स को सूचना प्रसारित कर रहा था. अब आपको यह तो पता चल ही गया होगा कि गोवा का मोरमुगाओ क्यों विशेष है. मोरमुगाओ.. गोवा का सबसे पुराना बंदरगाह भी है, जिसपर आजादी से पहले हमेशा विदेशी ताकतों की नजर रही.
‘मोरमुगाओ’ (Mormugao) वॉरशिप को गोवा मुक्ति दिवस के मौके पर भारतीय नौसेना के दूसरे स्वदेशी विध्वंसक युद्धपोत के रूप में पिछले साल समुद्र में पहली बार ट्रायल के लिए उतारा गया था. इसका ट्रायल गोवा की पुर्तगाली शासन से आजादी के 60 साल पूरे होने के अवसर पर किया गया था.
‘मोरमुगाओ’ की लंबाई 163 मीटर है और यह 17 मीटर चौड़ा है. यह परमाणु, जैविक और रासायनिक युद्ध स्थितियों में लड़ सकता है. चार शक्तिशाली गैस टर्बाइनों द्वारा संचालित, युद्धपोत 30 समुद्री मील से अधिक की स्पीड से दुश्मनों की तरफ वार करने के लिए बढ़ सकता है. इसमें अत्याधुनिक हथियार और सेंसर हैं. यह आधुनिक निगरानी रडार के अलावा सतह से सतह और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों से लैस है जो हथियार प्रणालियों को लक्ष्य डेटा प्रदान करता है. इसे भारतीय नौसेना के युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन किया गया है. युद्धपोत का निर्माण मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने किया है.
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