बिपिन चंद्र पाल का बेटा जो पहले आजादी के आंदोलन में जुड़ा था, फिल्मों की दुनिया में अपने कदम रखेगा ये कोई सोच भी नहीं सकता था.
तिलक की 1920 में मौत के बाद जब लाला लाजपत राय भी साइमन कमीशन के विरोध के दौरान जब लाठीचार्ज में घायल होकर दुनिया को अलविदा कह गए तो बिपिन चंद्र पाल भी राष्ट्रीय आंदोलन से अलग होकर एकांतवास में चले गए थे और सालों बाद 1932 में उनकी मृत्यु हो गई. लेकिन उनके बेटे निरंजन पाल जो बचपन से ही उनके साथ आजादी के आंदोलन में लगातार हिस्सा लेते आ रहे थे, दूसरी दिशा में ही चले गए. एक दिन उन्होंने हिमांशु रॉय के साथ मिलकर बॉलीवुड के मशहूर ‘बॉम्बे टॉकीज’ की ही स्थापना कर दी. हिमांशु रॉय मशहूर एक्ट्रेस देविका रानी के पति थे. वो हिमांशु रॉय थे, जो अशोक कुमार को पर्दे पर लेकर आए और वो देविका रानी थीं, जिनकी वजह से दिलीप कुमार को फिल्मी दुनिया में ब्रेक मिला था.
लेकिन वो निरंजन पाल थे, जो हिमांशु रॉय को मुंबई लेकर आए. लंदन में निरंजन पाल ने दो थिएटर प्ले लिखे, एक था ‘लाइट ऑफ एशिया’ जो भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी कहानी थी और दूसरा था ‘शिराज’, जो ताजमहल को लेकर लिखा गया था. दोनों ही नाटकों में हिमांशु रॉय ने एक्टिंग की, हिमांशु और निरंजन पाल की जमने लगी, दोनों ही कोलकाता के थे. उन दोनों के मित्र बने जर्मनी के फिल्ममेकर फ्रैंज ओस्टन से. तीनों ने को-प्रोडक्शन में तीन फिल्मों की योजना बना डाली. भगवान बुद्ध के जीवन पर ‘प्रेम संन्यास’, ताजमहल के निर्माण पर ‘शिराज’ और महाभारत के युद्ध पर ‘ए थ्रो ऑफ डाइस’. साइलेंट फिल्मों का दौर होने से ये फायदा था कि आपको डबिंग करवाने जैसी मुश्किल नहीं थी. तय हुआ कि जर्मनी की तरफ से इक्विपमेंट, क्रू, कैमरा और डायरेक्टर मिलेगा तो हिमांशु रॉय और निरंजन पाल की तरफ से स्क्रिप्ट, लोकेशंस, एक्टर्स और पूंजी मिलेगी. पैसे से मदद जयपुर के महाराज ने की, सेट लाहौर में लगाया गया, सेट को डिजाइन करने की जिम्मेदारी देविका रानी के कंधों पर थी. 26 फरवरी को एक शिप के जरिए हिमांशु, निरंजन पाल और फ्रैंज ओस्टन क्रू और इक्विमेंट्स के साथ निकले, और 18 मार्च को वो मुंबई पहुंच गए.
हालांकि ये भी कहा जाता है कि देविका रानी चूंकि निरंजन पाल की तरह ब्रह्म समाज से ताल्लुक रखती थीं, इसलिए उसी के एक कार्यक्रम में निरंजन से पहले मिली थीं, उन्होंने ही हिमांशु रॉय से उनकी मुलाकात करवाई थी. दरअसल पहली पत्नी की मौत के बाद बिपिन पाल ने ब्रह्म समाज से जुड़कर एक विधवा से शादी कर ली थी. देविका रानी, हिमांशु रॉय, फ्रैंज ओस्टन के साथ निरंजन पाल की दोस्ती बढ़ी और इस तरह से बॉम्बे टॉकीज की स्थापना सबने मिलकर कर डाली. निरंजन पाल की लिखी पहली फिल्म ‘प्रेम संन्यास’ जो विदेशों में ‘लाइट ऑफ एशिया’ के नाम से रिलीज हुई, दुनिया भर में चर्चित रही थी. आज जिस तरह बॉलीवुड की मूवीज ओवरसीज मार्केट को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, इस दिशा में ये पहली फिल्म मानी जाती है, जो न केवल इंटरनेशनल प्रोडक्शन थी बल्कि ओवरसीज मार्केट को ध्यान में रखकर ही उस वक्त एक आम भारतीय फिल्म की तुलना में दस गुनी लागत मे बनाई गई थी. फिल्म की प्रोडक्शन कॉस्ट उस वक्त आई 1,71,423 रुपए, जो उस वक्त बनने वाली आम फिल्मों से दस गुना थी. जर्मनी में तो ये फिल्म खूब चली. 1926 में इसे ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने भी देखा और शाही परिवार ने फिल्म की जमकर तारीफ की. अमेरिका में भी इसे फिल्म आर्ट्स गिल्ड ने 11 मई 1928 को रिलीज किया. 2001 में इसे एक यूरोपियन चैनल जो फ्रांस और जर्मन का संयुक्त कंपनी है, ने इस फिल्म को फिर से पुराने प्रिंट्स से नया जीवन दिया और रिलीज किया, उसकी वजह थी, जितनी ये फिल्म भारत की विरासत थी, उतनी ही जर्मनी की भी थी. फ्रैंज ओस्टन बाद में जर्मनी के बड़े फिल्मकार बन गए, उन्होंने एक फिल्म स्टूडियो को खड़ा किया था बावरिया फिल्म स्टूडियो, आज वो यूरोप के सबसे बड़े स्टूडियोज में शुमार होता है.
निरंजन पाल ने लंदन में ही एक अंग्रेज लड़की लिली से शादी कर ली थी. उनके साथ वो मुंबई लौट आए. यानी जिंदगी कोलकाता से लंदन और फिर मुंबई में आकर ठहर गई थी. पिता बिपिन चंद्र पाल की मौत तो उनके मुंबई आने के 5 साल बाद हुई थी. इधर अशोक कुमार के बहनोई शशधर मुखर्जी जो काजोल के नाना थे, वो भी बॉम्बे टॉकीज से जुड़ गए थे. सो बॉम्बे टॉकीज में लैब असिस्टेंट बनकर अशोक कुमार की भी एंट्री हो चुकी थी. किस्मत से बॉम्बे टॉकीज के पहले हीरो के तौर पर उभरे अशोक कुमार. उनकी शुरुआती फिल्में मूवीज निरंजन पॉल ने ही लिखी थीं- अछूत कन्या, जवानी की हवा, जन्मभूमि, जीवन नैया आदि. सभी में देविका रानी हीरोइन थीं. परदेसिया, चिट्ठी जैसी कुछ मूवीज निरंजन पाल ने डायरेक्ट भी कीं, लेकिन वो ज्यादा चल नहीं पाईं. उन्होंने उदय शंकर के मशहूर इंटरनेशनल डांस ग्रुप के लिए कुछ नृत्य नाटिकाएं भी लिखीं. उनका बेटा लंदन के वेम्बले में पैदा हुआ था, नाम रखा था कॉलिन पाल, वो भी उनके साथ मुंबई आ गया और बाद में अशोक कुमार के फिल्मिस्तान स्टूडियो से जुड़ गया. पीएल संतोषी के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया, ‘समाधि’ मूवी में नेताजी बोस का रोल किया. विमल रॉय की ‘परिणीता’ और नौकरी में भी रोल किए. कुछ फिल्में भी डायरेक्ट कीं. फिर लम्बे समय तक फिल्म पब्लिसिस्ट के तौर पर काम किया, और आज उन्हें मुंबई में फिल्म हिस्टोरियन के तौर पर जाना जाता है, 2005 में उनकी भी मौत हो चुकी है.
कॉलिन पाल के बेटे दीप पाल भी फिल्मी दुनिया से ही जुड़ गए लेकिन एक सिनेमेटोग्राफर के तौर पर. तमाम बड़ी फिल्मों बॉर्डर, हम साथ साथ हैं, फिलहाल... आदि में स्टेडीकैम ऑपरेटर काम भी किया, सिनेमेटोग्राफर के तौर पर भी. आज भी वो स्टेडीकैम के फील्ड में बतौर पायोनीयर कई वर्कशॉप साल भर लगाते रहते हैं. उनका सबसे ज्यादा काम रहा है डॉक्यूमेंट्रीज में. तो देखिए कैसे एक मशहूर स्वतंत्रता सेनानी का परिवार धीरे धीरे फिल्मी बनता चला गया.
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