वेस्ट गोदावरी जिले की यह परंपरा कोई आज की नहीं बल्कि काकतिया शासकों के काल से यहां ऐसा होता आ रहा है. शादी के एक दिन पहले दुल्हन को दूल्हे के कपड़े पहनने होते हैं और दूल्हा लड़कियों जैसा भेष बनाकर कोई साड़ी या लहंगा पहनता है. यह परंपरा भले ही अजीब है लेकिन गन्नामनि लोग इसका पूरे जोश के साथ पालन करते आ रहे हैं.
इस प्रथा के जरिए लड़का-लड़की के भेदभाव को तोड़ने की कोशिश तो है ही, साथ ही यह हमारे देश की विविधता का भी एक अनोखा उदाहरण पेश करती है. शादी में लड़का न सिर्फ दुल्हन के कपड़े पहनता है बल्कि लड़की की तरह ही सज-धज कर तैयार होता है. इसके लिए उसे ज्वेलरी से लेकर अन्य आभूषण भी पहनने होते हैं.
इसी तरह दुल्हन भी पेंट-शर्ट या धोती-कुर्ता में तैयार होकर समारोह में शामिल होती है. इसके अलावा वह इस दौरान जूड़ा या चोटी नहीं बांधती बल्कि लड़कों की हेयर स्टाइल बनाती है. साथ में लड़कों जैसा चश्मा पहनने का भी चलन है.
काकतिया साम्राज्य की महारानी रुद्रमा देवी के वक्त से इस परंपरा की शुरुआत हुई थी. उनके सेनापति गन्नामनि परिवार से ताल्लुक रखते थे. महारानी ने 1263 से लेकर 1289 तक साम्राज्य की सत्ता संभाली थी. इस परंपरा के पीछे का मकसद पुरुषों की छवि को दुनिया के सामने बेहतर तरीके से पेश करना था.
युद्ध के दौरान जब सैकड़ों सैनिकों की जान चली गई तो फैसला किया गया कि औरतें सेना में पुरुषों के कपड़े पहनकर जंग लड़ेंगी. इसके बाद यह कदम काम आया और काकतिया साम्राज्य को कई जंगों में इसका फायदा भी हुआ. साथ ही गन्नामनि परिवारों की शादियों में भी कपड़ों की अदला-बदली की यह परंपरा शुरू हो गई, जिसका आजतक पालन किया जा रहा है. (सभी फोटो: प्रतीकात्मक )
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