पीएम नरेंद्र मोदी ने कृषि बिलों के खिलाफ देश में हो रहे किसान आंदोलन पर नाराजगी जताई है. पीएम ने कहा कि आजादी के कई साल बाद तक किसानों के नाम पर कई नारे लगे, लेकिन वे नारे खोखले थे.
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नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने कृषि बिलों (Agriculture Bill) के खिलाफ देश में हो रही सियासत पर नाराजगी जताई है. पीएम ने कहा कि आजादी के कई साल बाद तक किसानों के नाम पर कई नारे लगे, लेकिन वे नारे खोखले थे. उन्होंने कहा कि लोगों के जीवन में सरकार जितना कम दखल देगी, उतना बेहतर होगा.
दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर पीएम का संबोधन
पीएम नरेंद्र मोदी शुक्रवार को भारतीय जनसंघ के जनक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के मौके पर पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुए इस कार्यक्रम में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत पार्टी के बड़े नेता भी शामिल हुए. पीएम ने कहा कि किसानों से हमेशा झूठ बोलने वाले कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थों की वजह से किसानों को भ्रमित करने में लगे हैं. ये लोग अफवाहें फैला रहे हैं. किसानों को ऐसी किसी भी अफवाह से बचाना भाजपा कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है. हमें किसान के भविष्य को उज्ज्वल बनाना है.
किसानों, श्रमिकों और महिलाओं की कभी सुध नहीं ली गई
किसानों, श्रमिकों और महिलाओं की ही तरह छोटे-छोटे स्वरोजगार से जुड़े साथियों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा था, जिसकी सुध कभी नहीं ली गई. रेहड़ी, पटरी, फेरी पर काम करने वाले लाखों साथी जो आत्मसम्मान के साथ अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं, उनके लिए भी पहली बार एक विशेष योजना बनाई गई है. किसानों, खेत मजदूरों, छोटे दुकानदारों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए 60 वर्ष की आयु के बाद पेंशन और बीमा से जुड़ी योजनाएं हमारी सरकार ने पहले ही आरंभ कर दिया है. अब नए प्रवधानों से सामाजिक सुरक्षा का ये कवच और मजबूत होगा.
देश में श्रमिक कानूनों को उलझाकर रख दिया गया
आत्मनिर्भरता के व्यापक मिशन से हर कोई जुड़े, सभी को अवसर मिले. यही तो दीनदयाल जी का सपना पूरा करने का प्रयास है. इसी ध्येय के साथ SC/ST वर्ग के साथियों के लिए जो आरक्षण का प्रावधान है, उसको हमारी सरकार ने पार्लियामेंट में अगले 10 वर्ष के लिए बढ़ाया गया है. जो पहले के श्रमिक कानून थे, वो देश की आधी आबादी, हमारी महिला श्रमशक्ति के लिए काफी नहीं थे. अब इन नए कानूनों से हमारी बहनों को, बेटियों को, समान मानदेय दिया गया है, उनकी ज्यादा भागीदारी को सुनिश्चित किया गया है. किसानों की तरह ही हमारे यहां दशकों तक देश के श्रमिकों को भी कानून के जाल में उलझाकर रखा गया है. जब-जब श्रमिकों ने आवाज़ उठाई, तब-तब उनको कागज पर एक कानून दे दिया गया.
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