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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) जिस विमान से अमेरिका दौरे पर गए हैं, वो Boeing 777-300 E.R. सीरीज का आधुनिक विमान है. इसका नाम Air India One है, अमेरिका में राष्ट्रपति के लिए भी इसी सीरीज के विमान का इस्तेमाल होता है. इस विमान से पहले भारत में प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति और राष्ट्रपति के लिए Boeing 747 Jumbo Jet विमान इस्तेमाल होता था, जिसे अमेरिका दौरे के दौरान Refueling के लिए जर्मनी के Frankfurt Airport पर रुकना होता था. इस नए विमान में Refueling की जरूरत ही नहीं पड़ती यानी ये विशेष विमान नॉन स्टॉप दिल्ली से अमेरिका के लिए उड़ान भरता है.
इस विमान की खासियत है कि ये किसी भी तरह के मिसाइल हमलों को नाकाम कर सकता है. ये एक ऐसे सिस्टम से लैस है जो Infrared मिसाइलों को जाम कर दूसरी तरफ मोड़ देता है. इसमें मिसाइल एप्रोच वार्निंग सिस्टम भी है, जो विमान की तरफ आ रही मिसाइलों का पता लगा सकता है. ये सिस्टम विमान को ट्रैक कर रहे दुश्मन देश के रडार को भी जाम कर चकमा दे सकता है. जब कुछ काम ना आए तो इस सिस्टम की मदद से Flares यानी छोटे-छोटे रॉकेट छोड़े जा सकते हैं. ये रॉकेट इतनी गर्मी और रोशनी पैदा करते हैं कि Infrared मिसाइलें इनकी तरफ खिंची चली आती हैं और विमान हमले से बच जाता है. ये विमान सेटेलाइट कम्युनिकेशन (Satellite Communication) सिस्टम से भी लैस से है, जिससे सफर के दौरान दुनिया के किसी भी कोने में सम्पर्क किया जा सकता है. अमेरिका की Aerospace कम्पनी Boeing ने पिछले साल ही भारत को दो ऐसे VVIP विमान सौंपे थे. भारत में इस विमान का संचालन भारतीय वायु सेना के पास है.
प्रधानमंत्री का ये सातवां अमेरिकी दौरा है. 2014 से अब तक उन्होंने अपने 107 विदेशी दौरों में 60 देशों की यात्रा की है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सफर के दौरान की एक तस्वीर भी कल सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी, जिसमें वो काम करते हुए दिख रहे थे. इस तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा था, 'लंबी उड़ान का मतलब कुछ पेपर और फाइल वर्क करने का अवसर भी होता है'.. दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी जब भी विदेशी दौरों पर जाते हैं, तब उनका ध्यान दो चीजों पर सबसे ज्यादा होता है. पहला वो रात के समय सफर करते हैं ताकि समय का सदुपयोग कर सकें और दूसरा ऐसे विदेशी दौरों पर होटेल और दूसरे खर्चों को जितना हो सके, उतना कम कर सकें.
समय के सदपुयोग के लिए प्रधानमंत्री मोदी विदेशी दौरे पर अपने साथ प्रधानमंत्री कार्यालय की ढेर सारी फाइल्स लेकर चलते हैं, ताकि खाली समय के दौरान वो अपना फाइल वर्क कर सकें और उनके विदेशी दौरों की वजह से कोई काम भी पेंडिंग ना रहे. इसके अलावा घरेलू दौरों पर भी वो ऐसा ही करते हैं. इसे आप इस तस्वीर से समझ सकते हैं. वर्ष 2018 में जब प्रधानमंत्री सरकारी कार्यक्रम के लिए अंडमान गए थे, तब उनके हाथ में ढेर सारी फाइल्स थीं. विदेशी दौरों पर ज्यादा खर्च ना हो, इसके लिए प्रधानमंत्री ज्यादातर यात्राएं रात के समय करते हैं ताकि उन्हें होटेल में ज्यादा दिन ना रुकना पड़े और वो कम से कम समय में अपनी विदेशी यात्रा को खत्म कर पाएं. उदाहरण के लिए, 2016 में प्रधानमंत्री ने सिर्फ चार दिनों में तीन देशों की विदेशी यात्रा की थी. ये तीन देश थे, सउदी अरब, बेल्जियम और अमेरिका. यानी ऐसा नहीं है कि तीनों देश आसपास थे. इस चार दिन के दौरे में प्रधानमंत्री ने अपनी तीन रातें विमान में ही बिताई थीं.
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इसी तरह 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने Portugal, अमेरिका और Netherlands का दौरा केवल चार दिन में पूरा कर लिया था और इस दौरे में भी उन्होंने तीन रातें विमान में ही बिताईं थी जबकि एक रात ही वो होटेल में रुके. वर्ष 2019 में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया था कि जब प्रधानमंत्री का विमान तकनीकी जांच या Refuelling के लिए किसी एयरपोर्ट पर रुकता है तो प्रधानमंत्री होटेल जाने के बजाय एयरपोर्ट पर ही रुक कर इंतजार करते हैं और एयरपोर्ट पर ही Shower भी ले लेते हैं. अगर पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह से तुलना करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 से 2016 के बीच दो साल में अपने 20 विदेशी दौरों पर 40 देशों की यात्रा की थी. जबकि मनमोहन सिंह 2004 से 2006 के बीच अपने 15 विदेशी दौरे में सिर्फ 18 देशों को ही कवर कर पाए थे.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 25 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें अधिवेशन में भाषण देंगे और ये अधिवेशन इस बार 30 सितम्बर तक चलने वाला है. इससे जुड़ी आज की एक बड़ी खबर ये है कि ऐसा हो सकता है कि इस बार के अधिवेशन में तालिबान भी भाषण दे. तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को एक चिट्ठी लिखी है और इस चिट्ठी में उन्होंने कहा है कि तालिबान को भी इस अधिवेशन में दुनिया के नेताओं को संबोधित करने की इजाजत मिलनी चाहिए. तालिबान ने इसके लिए अपने प्रवक्ता सुहेल शाहीन को संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान का राजदूत भी नियुक्त कर दिया है. तालिबान की इस अपील को संयुक्त राष्ट्र की क्रेडेंशियल कमेटी के पास भेज दिया गया है. यानी अब ये कमेटी तय करेगी कि तालिबान संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देगा या नहीं?
इस कमेटी में अमेरिका, रशिया और चीन समेत कुल 9 देश हैं और चीन तो इसके लिए तालिबान का समर्थन भी कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने आज ही चीन के दबाव में तालिबान की सरकार के 14 मंत्रियों को यात्रा प्रतिबंध में छूट दे दी है. यानी अब ये नेता दूसरे देशों में जाकर अपनी सरकार के लिए समर्थन मांग सकेंगे. चीन तो ये चाहता था कि तालिबान को ये छूट 180 दिन की मिले, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने इसे नहीं माना और अब 90 दिनों की छूट इन 14 आतंकवादियों को Travel Ban से मिल गई है. इसके तहत अब 23 सितम्बर यानी आज से 22 दिसम्बर तक ये नेता अफगानिस्तान से बाहर जा सकेंगे और कतर की राजधानी दोहा में संयुक्त राष्ट्र के साथ ही शांति वार्ता कर सकेंगे. कहने का मतलब ये है कि, संयुक्त राष्ट्र के मंच पर तालिबान को लाने के लिए चीन पूरी कोशिश करेगा और वो तो इस क्रेडेंशियल कमेटी का हिस्सा भी है. और हमें लगता है कि अगर तालिबान को इस बार भाषण देने की मंजूरी इस कमेटी से नहीं मिली तो अगले साल या उसके अगले साल ऐसा हो ही जाएगा और जिस दिन ऐसा होगा, ये पूरी दुनिया के करोड़ों लोगों के साथ मजाक होगा, जो अमन पसंद हैं और जो शांति चाहते हैं.
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