Profile of Pranab Mukherjee: बचपन से ही प्रणब मुखर्जी पढ़ने-लिखने में बहुत तेज थे. उनकी याददाश्त गजब की थी. बड़े होने पर प्रणब मुखर्जी ने बीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज (कलकत्ता यूनिवर्सिटी) में दाखिला लिया. उन्होंने राजनीति विज्ञान और इतिहास में एमए की डिग्री ली और कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ही एलएलबी की पढ़ाई की.
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President Election: साल 1969 का दौर था. मिदनापुर उपचुनाव के दौरान निर्दलीय कैंडिडेट वीके कृष्ण मेनन के लिए एक शख्स जोरदार कैंपेन कर रहा था. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने उसका राजनीति को लेकर जोश और जज्बा देखा और कांग्रेस पार्टी का सदस्य बनने की न्योता दिया. उसने हामी भर दी. इसके बाद उस शख्स ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति में कामयाबी की सीढ़ियां तेजी से चढ़ता चला गया. रक्षा, वित्त, विदेश जैसे बड़े मंत्रालय संभाले. हालांकि प्रधानमंत्री न बन पाने की कसक हमेशा मन में रही. दो बार ऐसे मौके आए लेकिन हसरत पूरी नहीं हुई. बाद में वो शख्स भारत का 13वां राष्ट्रपति बना. जी न्यूज की खास सीरीज महामहिम में आज हम किस्से सुनाएंगे कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणब मुखर्जी के.
बीरभूम में हुआ जन्म
11 दिसंबर 1935 को बंगाल के बीरभूम इलाके के मिराटी में जन्मे प्रणब मुखर्जी के बचपन का नाम पोल्टू था. उनके पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था. कामदा किंकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थे और 12 साल (1952-1964) तक कांग्रेस की ओर से पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य रहने के साथ-साथ AICC के मेंबर भी थे. ब्रिटिश राज की खिलाफत करने के लिए उनको 10 साल जेल भी काटनी पड़ी. यानी कहा जाए कि प्रणब मुखर्जी को राजनीति के गुर घर से मिले तो गलत नहीं होगा. प्रणब मुखर्जी के एक भाई पीयूष मुखर्जी और एक बहन अन्नपूर्णा मुखर्जी थी.
बचपन से ही प्रणब मुखर्जी पढ़ने-लिखने में बहुत तेज थे. उनकी याददाश्त गजब की थी. बड़े होने पर प्रणब मुखर्जी ने बीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज (कलकत्ता यूनिवर्सिटी) में दाखिला लिया. उन्होंने राजनीति विज्ञान और इतिहास में एमए की डिग्री ली और कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ही एलएलबी की पढ़ाई की.
राजनीति में आने से पहले वह डिप्टी अकाउंटेंट-जनरल (पोस्ट एंड टेलीग्राफ) में अपर डिविजन क्लर्क थे. साल 1963 में वह विद्यानगर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर बन गए. बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया और बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में काम किया.
फिर हुई राजनीति में एंट्री
1969 का साल प्रणब मुखर्जी के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. उनकी काबिलियत देखकर इंदिरा गांधी ने उन्हें राज्यसभा भेजा. वक्त के साथ उन्होंने राजनीति में तेजी से कामयाबी हासिल की और इंदिरा गांधी के सबसे खास सिपहसालारों में से एक हो गए. इंदिरा ने 1973 में उन्हें अपनी कैबिनेट में शामिल किया. वह औद्योगिक विकास विभाग के उप मंत्री थे. पार्टी में मुखर्जी का कद बढ़ रहा था. एक वक्त ऐसा आया जब इंदिरा सरकार में वह नंबर दो हो गए थे. उनके बौद्धिक स्तर और काबिलियत को देखते हुए इंदिरा गांधी ने यह लिखित आदेश तक जारी करवा दिया था कि उनकी गैरमौजूदगी में कैबिनेट मीटिंग की अगुआई प्रणब मुखर्जी करेंगे.
1982 से 1984 तक उन्होंने कई कैबिनेट पद संभाले. 1982 में भारत के वित्त मंत्री बने. साल 1984 में यूरोमनी मैगजीन के एक सर्वे में उन्हें सबसे अच्छा वित्त मंत्री चुना गया. उनके कार्यकाल में भारत ने एक खास कामयाबी हासिल की. मुखर्जी ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ से 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर के लोन के लिए बातचीत की और लोन के एक तिहाई हिस्से को बिना इस्तेमाल किए लौटा दिया. पूरी दुनिया तब भारत के इस कदम से हैरान रह गई थी. उनके वित्तीय प्रबंधन की तारीफ अमेरिका के 40वें राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के वित्त मंत्री डोनाल्ड रेगन ने भी की थी. दिलचस्प बात है कि जिस वक्त प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे, उन्होंने ही पूर्व रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर पीएम मनमोहन सिंह की नियुक्ति की थी. इस तरह से मुखर्जी मनमोहन सिंह के सीनियर थे. लेकिन शायद आगे किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
फिर हुई इंदिरा गांधी की हत्या
अक्टूबर 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो देश सदमे में आ गया. इंडियन एयरलाइंस का बोइंग 737 कोलकाता से दिल्ली आ गया था. उस विमान में राजीव गांधी, प्रणब मुखर्जी, बलराम जाखड़, लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल सुभाष कश्यप, उमाशंकर दीक्षित, एबीएगनी खां चौधरी थे.
राजीव गांधी ढाई बजे विमान के कॉकपिट से बाहर आए और बताया कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की मौत हो गई है. किसी को भी इस पर विश्वास नहीं हो रहा था. शुरुआती सदमे के बाद इस पर विचार-विमर्श होने लगा कि आगे क्या रणनीति अपनाई जाए.
इस दौरान प्रणब मुखर्जी ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू के वक्त से ही अंतरिम प्रधानमंत्री को शपथ दिलाए जाने की परंपरा रही है. जब नेहरू का देहांत हुआ तो कैबिनेट में सबसे सीनियर नेता गुलजारी लाल नंदा को पीएम चुना गया था. बताया जाता है कि राजीव गांधी से बातचीत में उन्होंने 'वरिष्ठता' पर ज्यादा जोर दिया था, जिसका बाद में पीएम बनने की इच्छा के तौर पर पेश किया गया. कहा ये भी जाता है कि वे राजीव गांधी की समर्थक मंडली की साजिश के शिकार हो गए.
इसका नतीजा ये निकला कि जब राजीव गांधी पीएम बने तो प्रणब मुखर्जी को साइडलाइन कर दिया गया. उन्हें न तो कैबिनेट में जगह दी गई और ना ही कांग्रेस कार्यसमिति में. इससे खफा होकर प्रणब मुखर्जी ने 1986 में अपनी खुद की पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. हालांकि बाद में जब राजीव गांधी से उनकी सुलह हो गई तो 1989 में उसकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया.
नरसिम्हा राव सरकार में करियर को मिली संजीवनी
1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई. देश शोक में डूब गया. नरसिम्हा राव पीएम बने तो उन्हें 1991 में प्लानिंग कमिशन का अध्यक्ष बनाया गया. 1995 में वह विदेश मंत्री बने. तब तक पार्टी में प्रणब मुखर्जी का कद बहुत ऊंचा हो चुका था. 1998 में बात सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंपने की आई तो मुखर्जी ने ही इसकी पटकथा लिखी थी.
2004 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार हार गई और यूपीए ने सरकार बनाई तो हर किसी के जहन में था कि पीएम कौन बनेगा. ये पहला ऐसा चुनाव था, जिसमें प्रणब मुखर्जी लोकसभा से जीतकर आए थे. तब सरकार में प्रणब मुखर्जी नंबर दो की हैसियत पर थे. सोनिया गांधी ने पीएम पद ठुकरा दिया था. कहीं न कहीं प्रणब मुखर्जी के मन में था कि उनको प्रधानमंत्री पद दिया जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. राज्यसभा में कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी ने यूपीए सरकार चलाने की जिम्मेदारी सौंपी और प्रणब मुखर्जी का पीएम बनने की कसक दूसरी बार भी रह गई. उन्हें लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया.
कौन-कौन से मंत्रालय संभाले
प्रणब मुखर्जी ऐसे नेता थे, जिनकी न सिर्फ पार्टी बल्कि विपक्षी दल भी काफी इज्जत करते थे. उन्हें पढ़ने-लिखने का काफी शौक रहा. उनकी एक पर्सनल लाइब्रेरी भी थी, जिसमें अर्थशास्त्र, हिस्ट्री और दर्शन की सैकड़ों किताबें थीं. अंग्रेजी साहित्य और भाषा पर भी उनकी पकड़ कमाल थी. लोग आज भी प्रणब मुखर्जी की उपलब्धियों के अलावा उनकी फोटोग्राफिक याददाश्त को याद करते हैं. उनको डायरी लिखने की भी आदत थी. दुनिया भर में हो रही घटनाओं को अपनी डायरी में वह रोज उतारा करते थे.
गजब की याददाश्त के साथ-साथ उनका लेखन, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मामलों पर पकड़ और संसदीय कार्यप्रणाली में महारत की वजह से वह न सिर्फ कांग्रेस पार्टी बल्कि कैबिनेट के लिए रीढ़ की तरह हो गए थे.
जब भी कोई मुश्किल या विवादास्पद मुद्दा आता तो प्रणब मुखर्जी ही परदे के पीछे सारी प्लानिंग करते थे. पार्टी को हर मुश्किल से बचाने के लिए संकटमोचक के तौर पर खड़े रहते थे. चाहे कांग्रेस के प्रस्तावों को ड्राफ्ट करने का मामला हो या फिर कोई और काम, तलब प्रणब मुखर्जी को ही किया जाता था. मनमोहन सरकार में वे नंबर दो थे और 50 से ज्यादा मंत्रिमंडलीय समितियों के अध्यक्ष भी. साल 2008 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. कई अन्य देशों ने भी उन्हें सम्मान से नवाजा है.
पाइप जमा करने के शौकीन थे प्रणब दा
बहुत कम लोग ये जानते हैं कि प्रणब दा वर्षों पहले ही स्मोकिंग छोड़ चुके थे. लेकिन फिर भी वह पाइप को मुंह से लगाए रखते थे. उनको पाइप जमा करने का भी शौक था. होठों से वो पाइप की टिप को दबाए रखते थे, जिससे उन्हें पीने का अहसास होता था. लेकिन अंदर तंबाकू बिल्कुल नहीं होती थी.
उनको कांग्रेस नेताओं, मंत्रियों और विदेशी मेहमानों से तोहफे में 500 पाइप मिले थे. ये उनका कलेक्शन था, जिसे बाद में उन्होंने राष्ट्रपति भवन के म्यूजियम को दे दिया था.
कैसे बने राष्ट्रपति
साल 2012 में जब प्रतिभा पाटिल का कार्यकाल खत्म होने को आया तो सवाल उठा कि इस पद के लिए कौन उपयुक्त रहेगा. हालांकि कहा जाता है कि पहले राष्ट्रपति पद के लिए सोनिया गांधी की पसंद तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी थे. लेकिन बाद में कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर उनका नाम आगे किया. लेकिन उससे पहले की कहानी हम आपको बता रहे हैं.
जून 2012 को सोनिया गांधी और प्रणब मुखर्जी की मुलाकात हुई. अपनी आत्मकथा द कोअलेशन इयर्स में प्रणब मुखर्जी ने लिखा है, 'सोनिया गांधी मुझसे कहा कि इस पद के लिए आप सबसे उपयुक्त शख्स हैं. लेकिन सरकार को चलाने में भी आपका किरदार बेहद अहम है. क्या अपना कोई ऑप्शन आप मुझे बता सकते हैं.'
आगे प्रणब दा लिखते हैं, 'पता नहीं तब मुझे ऐसा क्यों लगा कि वह मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति और मुझे प्रधानमंत्री बनाने के बारे में सोच रही हैं. अगले दिन ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात की और शाम को ऐलान किया कि उनके राष्ट्रपति उम्मीदवारों के क्रम में कलाम, मनमोहन सिंह और सोमनाथ चटर्जी हैं. इस ऐलान के बाद ही सोनिया गांधी ने मुझे राष्ट्रपति बनाने का सोचा. अगले दिन कोर कमेटी की बैठक हुई और फिर मनमोहन सिंह ने मुझे बताया कि आपको पार्टी ने राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है.'
एनडीए ने प्रणब दा के सामने पीए संगमा को खड़ा किया. 26 जून 2012 को मुखर्जी ने सरकार से इस्तीफा दे दिया. चुनाव हुए तो मुखर्जी को 7,13,763 वोट मिले और संगमा को 3,15,987. 25 जुलाई 2012 को प्रणब दा ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली.
कैसा रहा राष्ट्रपति कार्यकाल
जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बने तो उनका सरकार और विपक्ष के साथ कभी खुशी कभी गम जैसा रिश्ता था. कभी विपक्ष उनसे खुश दिखा कभी सरकार, कभी सरकार खुश दिखी कभी विपक्ष. उन्होंने सरकार के बार-बार अध्यादेश लाने के सिलसिले पर सवाल उठाए लेकिन उन्हें लौटाया नहीं. मॉब लिंचिंग और असहिष्णुता को लेकर भी अपने विचार रखे. कई बार उन्होंने जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के शासन की तारीफ की.
उन्होंने अजमल कसाब, अफजल गुरु और याकूब मेमन समेत 30 दया याचिकाओं को खारिज कर दिया. गुजरात के आतंकवाद विरोधी बिल, राज्य सरकारों के दो बिलों को मंजूरी नहीं दी. मोदी सरकार की नोटबंदी का समर्थन किया और विपक्ष द्वारा संसद की कार्रवाई को अवरुद्ध करने की रणनीति को बढ़ावा नहीं दिया.
5 साल के कार्यकाल में उनका नाम किसी विवाद में नहीं आया. विपक्ष और पक्ष दोनों ने खूब सम्मान दिया. राष्ट्रपति भवन के दरवाजे उन्होंने जनता के लिए खोल दिए थे और कई बार रहने के लिए लोगों को आमंत्रित किया. पीएम नरेंद्र मोदी ने मार्गदर्शन और हमेशा साथ खड़े रहने के लिए सार्वजनिक तौर पर उनकी सेवा की. साल 2017 में उनको भारत रत्न दिया गया था.
2020 में दुनिया को कहा अलविदा
10 अगस्त 2020 को वह कोविड पॉजिटिव पाए गए. उनके दिमाग में ब्लड क्लॉट की सर्जरी भी होनी थी. उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह बाथरूम में गिर गए. उनको वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया. 13 अगस्त को वह ब्रेन सर्जरी के बाद कोमा में चले गए. हालांकि उनके अंग काम कर रहे थे. 25 अगस्त को उनकी हालत बिगड़ने लगी और 31 अगस्त 2020 को 84 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
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