DNA: पुणे में नाबालिग ने कैसे सिस्टम का एक्सीडेंट कर दिया, सवाल तो बहुत हैं..
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DNA: पुणे में नाबालिग ने कैसे सिस्टम का एक्सीडेंट कर दिया, सवाल तो बहुत हैं..

Pune News: सिस्टम दो लोगों की जान लेने वाले इस नाबालिग आरोपी को सजा नहीं दे सकता. क्योंकि, सिस्टम की नज़र में ये 17 वर्ष 8 महीने का नन्हा-मुन्ना नासमझ बालक है. जो 300 शब्दों का निबंध लिखकर किये गये अपराध का प्रायश्चित करेगा.

DNA: पुणे में नाबालिग ने कैसे सिस्टम का एक्सीडेंट कर दिया, सवाल तो बहुत हैं..

Porsche accident Pune: पुणे में शराब के नशे में धुत्त 17 साल के नाबालिग ने 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कार दौड़ाकर दो लोगों की जान ली. इस अपराध में आरोपी नाबालिग को 300 शब्दों का निबंध लिखने की शर्त पर जमानत भी मिल गई. क्योंकि, सिस्टम को लगता है कि आरोपी नाबालिग है, जिसके साथ बालिगों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता. ना ही उसे इस अपराध के लिए बालिगों वाली सजा दी जा सकती है.

17 साल 8 महीने के जिस लड़के को सिस्टम नन्हा-मुन्ना बच्चा समझता है और मानता है कि उसे अपराध की समझ नहीं है. उसी नाबालिग को अपने कुछ दोस्तों के साथ एक BAR में देखा गया. सामने टेबल पर शराब के पैग रखे हैं. हावभाव देखकर तो यही लगता है कि ये बहुत समझदार है. इसका व्यवहार यहां बालिगों जैसा ही है. सिस्टम को भले ही ये नाबालिग लगता हो, लेकिन BAR मालिक और मैनेजर को ये बालिग ही लगा होगा. तभी तो इसे शराब परोसी गई.

बेटे के पास लाइसेंस तक नहीं

इसके बिल्डर पिता को यकीन हो गया होगा, कि बेटा बड़ा हो गया है और समझदार भी. तभी तो इसे करीब 2 करोड़ रुपये कीमत की कार चलाने के लिए दी होगी. ये जानते हुए भी कि बेटे के पास लाइसेंस तक नहीं है. सिस्टम को भले ही ये नाबालिग लगा है क्योंकि, अभी इसकी उम्र 17 वर्ष 8 महीने है. लेकिन इसके पिता को इसके बड़े होने का अहसास था, तभी तो BAR में दोस्तों के साथ शराब पीने की इजाजत दी होगी. सिस्टम की नज़र में नाबालिग लड़का

- BAR में शराब पी सकता है
- नशे में कार भी चला सकता है
- दो लोगों की जान ले सकता है

नाबालिग आरोपी को सजा नहीं दे सकता?

लेकिन सिस्टम दो लोगों की जान लेने वाले इस नाबालिग आरोपी को सजा नहीं दे सकता. क्योंकि, सिस्टम की नज़र में ये 17 वर्ष 8 महीने का नन्हा-मुन्ना नासमझ बालक है. जो 300 शब्दों का निबंध लिखकर किये गये अपराध का प्रायश्चित करेगा. लेकिन यही नन्हा-मुन्ना बालक चार महीने बाद सिस्टम की नज़र बालिग हो जायेगा, फिर इसे हर उस बात की समझ होगी जो आज ये नहीं जानता.

कहते हैं कानून के हाथ लंबे होते हैं, लेकिन हमारे देश का सिस्टम ऐसा है. जिसने कानून के लंबे हाथों को जकड़ रखा है. पुणे के पुलिस कमिश्नर ने इस केस को लेकर जो कहा है, उससे तो ऐसा ही लगता है.

सिस्टम ने तो आरोपी को नादान, नासमझ बालक ही माना है, वरना Juvenile Juctice Act की धारा में जघन्य अपराध को लेकर विशेष प्रावधान है. जिसके तहत

- अगर 16 से 18 वर्ष के बीच कोई नाबालिग जघन्य अपराध करता है, तो Juvenile Justice Board नाबालिग का आंकलन कर बालिग की तरह केस चलाने की इजाजत दे सकता है.

- यहां जघन्य अपराध से मतलब ये कि अपराध की प्रकृति ऐसी हो कि IPC की धारा में 7 वर्ष की सजा का प्रावधान हो.

इस केस में सिस्टम..आरोपी को नाबालिग मानता है भले ही चार महीने बाद वो बालिग हो जाएगा. लेकिन अभी उसने जो भी किया..सिस्टम के मुताबिक उसमें उसका कोई दोष नहीं है...

तीन सौ शब्दों का निबंध लिखकर प्रायश्चित

गलती तो बार के मालिक और मैनेजर की है..जिन्होंने दोस्तों के साथ शराब पीने आए नाबालिग को बालिग समझ लिया और शराब परोस दी. गलती तो नाबालिग के नासमझ पिता की है..जिन्होंने अपने नाबालिग बेटे को बड़ा और समझदार मान लिया और अपनी कार की चाभी दे दी. इसलिए सिस्टम के तहत पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है. और बार पर ताला लगा दिया है.

लेकिन 17 साल 8 महीने का नाबालिग तो निर्दोष है. दूध पीता बच्चा है. भले ही वो शराब पीकर..कार को हवाई जहाज समझ ले और दो लोगों को कुचलकर मार डाले. लेकिन उसे सुधार गृह में डालने की भी जरूरत नहीं है.

तीन सौ शब्दों का निबंध लिखकर उसका प्रायश्चित पूरा हो जाएगा.
ट्रैफिक पुलिस के साथ 15 दिन काम करके वो ट्रैफिक नियमों का एक्सपर्ट बन जाएगा.
डॉक्टर की सलाह लेकर वो शराब पीना भी छोड़ देगा.
और फिर वो एक जिम्मेदार नागरिक बन जाएगा.

लेकिन उन परिवारों का क्या..जिनके बच्चों की जान 17 साल 8 महीने के एक नाबालिग ने ली...और सिस्टम ने उस नाबालिग को बच्चा समझकर निबंध लिखने की सजा सुनाकर छोड़ भी दिया.

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