Punjab Opinion Poll: पंजाब में इस बार त्रिशंकु विधान सभा? केजरीवाल बनेंगे किंगमेकर?
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Punjab Opinion Poll: पंजाब में इस बार त्रिशंकु विधान सभा? केजरीवाल बनेंगे किंगमेकर?

Zee News ने पंजाब असेंबली चुनाव से पहले राज्य में ओपिनियन पोल किया है. इस पोल में 1 लाख 5 हज़ार लोगों ने भाग लिया. 

Punjab Opinion Poll: पंजाब में इस बार त्रिशंकु विधान सभा? केजरीवाल बनेंगे किंगमेकर?

Punjab Opinion Poll: पंजाब में 2 करोड़ 13 लाख वोटर्स हैं और हमारे ओपिनियन पोल का सैम्पल साइज़ है 1 लाख 5 हज़ार, जो इसे पंजाब का सबसे विशाल ओपिनियन पोल बनाता है. इससे पहले हमने आपको बताया था कि उत्तराखंड में कैसे कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर है और उत्तर प्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव के बीच सीधा मुकाबला है. यानी यहां तीसरे की कोई गुंजाइश ही नहीं है. 

  1. पंजाब में बन सकती है हंग असेंबली
  2. लोकप्रियता की रेस में ये नेता हैं आगे
  3. सीएम चन्नी से पिछड़ रहे हैं सिद्धू!

पंजाब में बन सकती है हंग असेंबली

वहीं लेकिन पंजाब के चुनाव में इस बार बहुत भीड़भाड़ है. वहां पर एक नहीं बल्कि तीन ऐसी पार्टियां हैं, जो सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच सकती हैं. इसी वजह से वहां पर त्रिशंकु विधान सभा यानी Hung Assembly के आसार हैं. इस वक़्त सबसे अच्छी स्थिति में है, आम आदमी पार्टी. उसके बाद कांग्रेस और अकाली दल भी लगभग बराबर की सीटें जीत रहे हैं. यानी पंजाब का चुनाव भी अपने लहलहाते सरसों के खेतों की तरह खुला हुआ है. 

इस समय वहां इन तीनों में से किसी भी पार्टी की सरकार बन सकती है. इसके अलावा दो छोटे छोटे Player और भी हैं. एक है बीजेपी और दूसरे हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह. इन सबको मिला कर पंजाब के चुनावी मैदान में पांच टीमें खेल रही हैं, जिनमें से तीन बड़ी टीमें हैं और दो छोटी टीमें हैं. अब इनमें से सरकार बनाने के लिए किसी भी दो बड़ी टीमों को साथ आना ही पड़ेगा. 

जानें ओपिनियन पोल की खास बातें

पंजाब का ओपिनियन पोल देखने से पहले आपको कुछ और बातें जान लेनी चाहिए. इन्हीं बातों में पंजाब की पूरी चुनावी पिक्चर छिपी हुई है.

- Zee News और Design Boxed के इस ओपिनियन पोल में हमने पंजाब के लगभग हर 200 वोटर्स में से एक व्यक्ति की राय को शामिल किया था.

पंजाब की कुल आबादी 2 करोड़ 77 लाख है. और ये आबादी के मामले में ऑस्ट्रेलिया जैसे देश से भी बड़ा है. ऑस्ट्रेलिया की आबादी लगभग ढाई करोड़ है.

- दूसरी बात, पंजाब एक Border State है, जिसकी लगभग 553 किलोमीटर लम्बी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पाकिस्तान के साथ लगती है. और ये बात, इस राज्य के चुनाव को बहुत महत्वपूर्ण बना देती है.

देखें वीडियो:

क्या कहते हैं पंजाब के तीनों क्षेत्रों के लोग

पाकिस्तान से ड्रग्स और हथियारों की घुसपैठ और खालिस्तानी संगठनों को मिलने वाली मदद, पंजाब में एक बड़ा मुद्दा है. ये मुद्दे, राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़े हैं.

- एक और ज़रूरी बात, हमारे ओपिनियन पोल में सभी 117 सीटों के वोटर्स की राय शामिल है. हम आपको हर Region यानी क्षेत्र का ओपिनियन पोल बता रहे हैं. 

- पंजाब में कुल तीन Regions यानी तीन क्षेत्र हैं. इनमें माझा में 25 सीटें, दोआबा में 23 सीटें और मालवा में 69 सीटें हैं. यानी सीटों के लिहाज़ से सबसे बड़ा क्षेत्र है, मालवा. कैप्टन अमरिंदर सिंह, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार भगवंत मान और अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल इसी मालवा क्षेत्र से आते हैं.

लोकप्रियता की रेस में ये नेता हैं आगे

सबसे पहले हम आपको ये बताते हैं कि ओपिनियन पोल में पंजाब के लोगों ने मुख्यमंत्री के लिए किस नेता को अपनी पहली पसन्द चुना है.

- सबसे ज़्यादा 31 प्रतिशत लोगों का मानना है कि पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को ही पंजाब का अगला CM बनना चाहिए. चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बने, सिर्फ़ चार महीने ही हुए हैं. इत्तेफाक से ये चार महीने भी उन्होंने आज ही पूरे किए हैं.

- वो 20 सितम्बर 2021 को पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे, जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू से मतभेद के बाद ये पद छोड़ दिया था.

सीएम चन्नी से पिछड़ रहे हैं सिद्धू!

- नवजोत सिंह सिद्धू ओपिनियन पोल में लोकप्रियता के मामले में चन्नी से थोड़ा बहुत नहीं, बल्कि काफ़ी पीछे हैं. चन्नी मुख्यमंत्री पद के लिए 31 प्रतिशत लोगों की पसन्द हैं. जबकि ओपिनियन पोल में मात्र 5 प्रतिशत लोगों का ही ये कहना है कि वो सिद्धू को मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहते हैं.

- वैसे दोनों नेताओं की उम्र लगभग बराबर है. सिद्धू भी 58 साल के हैं और चन्नी भी 58 साल के हैं.

- जबकि इन दोनों नेताओं से 10 साल छोटे, आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान मुख्यमंत्री पद के लिए 24 प्रतिशत लोगों की पसन्द हैं.

- भगवंत मान को आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है. शायद इसका अरविंद केजरीवाल की पार्टी को फायदा मिल रहा है.

अरविंद केजरीवाल को भी पसंद कर रहे लोग

- हालांकि 11 प्रतिशत लोगों ने अरविंद केजरीवाल को भी पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपनी राय दी है. यानी कुछ लोग भगवंत मान की जगह, अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहते हैं.

- इसके अलावा 22 प्रतिशत लोग सुखबीर सिंह बादल को मुख्यमंत्री पद के लिए मजबूत नेता मानते हैं. सुखबीर सिंह बादल, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के पुत्र हैं. वर्ष 2009 से 2017 तक, जब पंजाब में प्रकाश सिंह बादल की सरकार थी, तब वो डिप्टी सीएम थे. सुखबीर सिंह बादल 59 साल के हैं.

- इस लिस्ट में कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी नाम है. ओपिनियन पोल में 7 प्रतिशत लोग उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं.

- हालांकि 2017 में जब पंजाब में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी, तब कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर सामने आए थे.  इस बार के ओपिनियन पोल में वो लोकप्रियता के मामले में बाकी नेताओं से पिछड़ते हुए दिख रहे हैं.

- कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ कर अपनी अलग पार्टी बनाई है, जिसका नाम है, पंजाब लोक कांग्रेस. उन्होंने बीजेपी के साथ गठबन्धन भी किया है.

पंजाब में 20 फरवरी को होनी हैं वोटिंग

कुल मिला कर सार ये है कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की लोकप्रियता में ज़बरदस्त उछाल आया है. हालांकि आम आदमी पार्टी के भगवंत मान और अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल उनसे ज्यादा पीछे नहीं हैं. पंजाब में 20 फरवरी को वोटिंग होनी है. यानी आज से पूरा एक महीना बचा हुआ है. और इस दौरान पंजाब की पिक्चर में नए Twist भी आ सकते हैं.

पंजाब के चुनाव में इस बार कौन से मुद्दे हावी रहेंगे?

- 65 प्रतिशत लोग बेरोज़गारी को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं.

- 2017 में जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी थी, तब उसका नारा था, घर घर नौकरी. लेकिन आज पांच साल बाद पंजाब में बेरोज़गारी दर उत्तर प्रदेश से भी लगभग 3 प्रतिशत ज्यादा है. ये 7.4 प्रतिशत है. यानी हर 100 लोग, जो कोई ना कोई काम कर सकते हैं, उनमें से लगभग 7 लोग बेरोज़गार हैं.

- 58 प्रतिशत लोग मानते हैं कि चुनाव में महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा होगा.

- ओपिनियन पोल में 54 प्रतिशत लोगों ने नशाखोरी को भी सबसे बड़ा मुद्दा बताया है.

- वैसे तो ये मुद्दा पिछले 35-40 साल से पंजाब के लगभग सभी विधान सभा चुनावों में महत्वपूर्ण रहता है. लेकिन इस बार लोगों के बीच इस पर काफ़ी चर्चा हो रही है. पाकिस्तान से पंजाब में अवैध तरीक़े से ड्रग्स की सप्लाई होती है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पंजाब के 75 प्रतिशत युवा, कम से कम एक बार ड्रग्स का सेवन कर चुके हैं. इसलिए इस मुद्दे को कोई भी पार्टी नज़रअंदाज नहीं कर सकती.

- 55 प्रतिशत लोगों ने बे-अदबी को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा माना है. सिख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान को बे-अदबी माना जाता है. पिछले महीने अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर और कपूरथला के एक गुरुद्वारे में बे-अदबी का मामला सामने आने पर दो आरोपियों की पीट पीट कर हत्या कर दी गई थी. उस समय सभी पार्टियों के नेता इस लिचिंग पर खामोश रहे थे.

- बे-अदबी के अलावा 32 प्रतिशत लोग मानते हैं कि इस बार चुनाव में कृषि और किसान सबसे बड़ा मुद्दा होंगे. पंजाब की 65 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई है. केन्द्र सरकार के कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ जो किसान आन्दोलन हुआ था, वो पंजाब से ही शुरु हुआ था. फिलहाल तो ये आन्दोलन खत्म हो गया है, लेकिन ओपिनियन पोल के मुताबिक़ ये मुद्दा अब भी पंजाब के चुनाव में अपना असर डाल सकता है.

मालवा क्षेत्र में कांग्रेस को बड़ा नुकसान!

ओपिनियन पोल के मुताबिक़ इस बार पंजाब में कांग्रेस के लिए सबकुछ ठीक नहीं है. पंजाब में इस बार का चुनावी मैच, दो टीमों के बीच नहीं, बल्कि तीन टीमों के बीच होगा. ये मैच सुपर ओवर तक भी जा सकता है. इसलिए पंजाब को समझने के लिए पहले आपको, उसके तीनों Reigons की स्थिति समझनी होगी.

सबसे पहले हम आपको मालवा क्षेत्र के बारे में बताते हैं, जहां 15 ज़िलों में सबसे ज़्यादा 69 सीटें हैं. इन 15 ज़िलों में पंजाब का फिरोज़पुर भी है, जहां प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई थी. इसके अलावा लुधियाना, फतेहगढ़ साहिब, मोगा, संगरुर और पटियाला जैसे ज़िले भी इसी क्षेत्र में आते हैं. ये क्षेत्र दो और वजहों से काफ़ी महत्वपूर्ण है. पहला, पिछले 30 वर्षों में पंजाब को जितने भी मुख्यमंत्री मिले हैं, वो इसी क्षेत्र से थे. दूसरा, ऐसा कहा जाता है कि किसान आन्दोलन में सबसे ज्यादा किसान, इसी क्षेत्र से दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे. 

पंजाब का सबसे बड़ा किसान संगठन, भारतीय किसान यूनियन उग्राहां और संयुक्त किसान मोर्चा, पंजाब के इसी मालवा क्षेत्र से आते हैं. पंजाब में सभी पार्टियों के जितने भी बड़े चेहरे हैं, वो मालवा क्षेत्र से ही हैं. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, अकाली दल के नेता सुखबीर बादल, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान मालवा क्षेत्र से ही आते हैं.

2017 में यहां कांग्रेस को सबसे ज़्यादा लगभग 37 प्रतिशत वोट मिले थे. अकाली दल को 26 प्रतिशत, आम आदमी पार्टी को 27 प्रतिशत और बीजेपी को 3 प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन Zee News के ओपिनियन पोल के मुताबिक़, इस बार कांग्रेस को इस क्षेत्र में काफ़ी ज्यादा नुकसान हो सकता है. इस बार कांग्रेस का वोट शेयर 29 प्रतिशत तक रह सकता है. यानी सीधे तौर पर कांग्रेस पार्टी को यहां 8  प्रतिशत वोटों का नुकसान होता दिख रहा है. 

आम आदमी पार्टी की बढ़ सकती हैं सीटें

एक तरफ़ कांग्रेस का वोट शेयर कम हो रहा है, तो दूसरी तरफ़ ओपिनियन पोल में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 9 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है. ये 27 प्रतिशत से 36 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. यानी लगभग जितने वोट कांग्रेस के कम हो रहे हैं, उतने ही वोट आम आदमी पार्टी के खाते में बढ़ रहे हैं. और इसका सीधा सा गणित ये है कि, आम आदमी पार्टी इस बार मालवा में कांग्रेस का ज़बरदस्त नुकसान कर रही है. 

अकाली दल को इस बार भी 26 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. जबकि बीजेपी का वोट शेयर इस Reigon में एक प्रतिशत तक बढ़ सकता है. ये 3 से 4 प्रतिशत हो सकता है. हालांकि वोट शेयर बढ़ने से सीटें बढ़ेंगी या नहीं, अब आप ये समझिए.

2017 में कांग्रेस को मालवा की 69 सीटों में से 40 सीटें मिली थीं. आम आदमी पार्टी को 18, अकाली दल को 8 और बीजेपी को एक सीट मिली थी. ओपिनियन पोल के मुताबिक़, इस बार सीटों की संख्या पूरी तरह बदल जाएगी. इस बार कांग्रेस को इस क्षेत्र में 19 से 21 सीटें, अकाली दल को 13 से 14 सीटें, आम आदमी पार्टी को 28 से 30 सीटें और बीजेपी को 2 से 3 सीटें मिल सकती हैं.

यानी सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस का ही है. जबकि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी मालवा में सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है. यहां महत्वपूर्ण बात ये है कि, जो पार्टी, मालवा में जीतती है, चुनाव के बाद उस पार्टी की सरकार बनने की सम्भावना सबसे ज्यादा होती है.

माझा क्षेत्र में अकाली दल को फायदा

अब आपको माझा क्षेत्र का ओपिनियन पोल दिखाते हैं. पंजाब के माझा क्षेत्र की पहचान ऐतिहासिक गुरुद्वारों के लिए होती है. यहां अमृतसर का स्वर्ण मन्दिर और करतारपुर कॉरिडोर है. इस क्षेत्र में कुल 25 सीटें है. पिछली बार ये क्षेत्र पूरी तरह कांग्रेस के नाम रहा था.

2017 में कांग्रेस को यहां 46 प्रतिशत, अकाली दल को 25 प्रतिशत, आम आदमी पार्टी को 14 प्रतिशत और बीजेपी को 10 प्रतिशत वोट मिले थे. ओपिनियन पोल में इस बार माझा में कांग्रेस का वोट शेयर 13 प्रतिशत कम होकर, 33 प्रतिशत हो सकता है. जबकि आम आदमी पार्टी का वोट शेयर लगभग इतना ही बढ़ कर 26 प्रतिशत हो सकता है. यानी मालवा की तरह माझा में भी, कांग्रेस को जितने वोटों का नुकसान दिख रहा है, उतने ही वोटों का फायदा आम आदमी पार्टी को नज़र आ रहा है. 

इसके अलावा अकाली दल का वोट शेयर भी 25 से 31 प्रतिशत तक पहुंच सकता है जबकि बीजेपी का वोट शेयर 10 से 6 प्रतिशत पर आ सकता है. पिछली बार बीजेपी और अकाली दल ने गठबन्धन में चुनाव लड़ा था. लेकिन इस बार दोनों पार्टियां, अलग अलग चुनाव लड़ रही हैं. ओपिनियन पोल से लगता है कि बीजेपी को इसका नुकसान हो रहा है. जबकि अकाली दल ने किसान आन्दोलन को जो समर्थन दिया था, उससे वो फायदे में दिख रही है.

2017 में कांग्रेस को माझा की 25 सीटों में से 22 सीटें मिली थीं. अकाली दल को दो सीट और बीजेपी को एक सीट मिली थी. जबकि आम आदमी पार्टी का यहां खाता भी नहीं खुला था. लेकिन Zee News का ओपिनियन पोल कहता है कि इस बार, कांग्रेस को यहां 12 से 13 सीटों का नुकसान हो सकता है. कांग्रेस को इस बार 9 से 10 सीटें ही मिलने का अनुमान है. जबकि अकाली दल को 6 से 7 सीटों का फायदा हो सकता है. 

अकाली दल की सीटों की संख्या 9 से 10 तक पहुंच सकती है, यानी कांग्रेस के बराबर. इसके अलावा आम आदमी पार्टी को 5 से 6 सीटें मिल सकती हैं. पिछली बार उसे एक भी सीट नहीं मिली थी. जबकि बीजेपी को एक से दो सीटें मिलने का अनुमान है.

दोआबा में अकाली दल हो सकता है नंबर 1

अब आपको पंजाब के तीसरे और आख़िरी Region दोआबा का ओपिनियन पोल बताते हैं. दोआबा का अर्थ होता है, दो नदियों के बीच बसा क्षेत्र . ये दो नदियां हैं, सतलुज और ब्यास नदी. इस क्षेत्र में हिन्दू और दलित सिख वोटरों का काफ़ी प्रभाव माना जाता है. दोआबा के चार ज़िलों में 23 सीट हैं.

2017 में कांग्रेस को यहां 37 प्रतिशत वोट मिले थे. आम आदमी पार्टी को 24 प्रतिशत, अकाली दल को 21 प्रतिशत और बीजेपी को 9 प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन Zee News और Design Boxed के ओपिनियन पोल के मुताबिक़, इस बार कांग्रेस का वोट शेयर 7 प्रतिशत तक कम हो सकता है. ये 37 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. 

वहीं इस क्षेत्र में अकाली दल सारी पार्टियों को पीछे छोड़ते हुए, नम्बर वन पर रह सकता है. अकाली दल को यहां 33 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. आम आदमी पार्टी को पिछली बार की तरह लगभग 25 प्रतिशत वोट और बीजेपी को 7 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं. बीजेपी को यहां भी 2 प्रतिशत वोटों का नुकसान हो रहा है. हालांकि बीजेपी की सीटें 2017 जितनी ही रह सकती हैं.

इस बार कांग्रेस को दोआबा की 25 सीटों में से 7 से 8 सीटें मिल सकती हैं. पिछली बार उसे 15 सीटें मिली थीं. यानी सीधे तौर पर आधी सीटों का नुकसान दिख रहा है. जबकि अकाली दल को 2017 की तुलना में इतनी ही सीटों का फायदा होने का अनुमान है. अकाली दल को यहां 9 से 11 सीटें मिल सकती हैं. 2017 में उसे केवल 5 सीटें मिली थीं. आम आदमी पार्टी को 3 से 4 सीटें मिल सकती हैं. बीजेपी को एक से दो सीट मिल सकती है.

पंजाब में किसी को नहीं मिलेगा बहुमत!

अब आपको पंजाब की सभी 117 सीटों का ओपिनियन पोल दिखाते हैं. सबसे पहले आपको वोट शेयर के बारे में बताते हैं.

2017 में कांग्रेस को 39 प्रतिशत, अकाली दल को 25 प्रतिशत, आम आदमी पार्टी को 24 प्रतिशत और बीजेपी को 5 प्रतिशत वोट मिले थे. ओपिनियन पोल के मुताबिक़ इस बार कांग्रेस को 30 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं, आम आदमी पार्टी को 33 प्रतिशत, अकाली दल को 26 प्रतिशत और बीजेपी को 6 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. यानी कांग्रेस को छोड़ कर बाकी सभी पार्टियों का वोट शेयर बढ़ता हुआ दिख रहा है.

अब आपको सीटों का गणित बताते हैं. पंजाब में कुल 117 सीटें हैं, जिनमें से बहुमत के लिए 59 सीटों की ज़रूरत पड़ती है. 2017 में कांग्रेस ने इस नम्बर को आसानी से पार कर लिया था. कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं, अकाली दल को 15 सीट, आम आदमी पार्टी को 20 सीट, बीजेपी को 3 सीट और अन्य को 2 सीटें मिली थीं. लेकिन इस बार मुकाबला कड़ा हो सकता है और शायद कोई भी पार्टी इस बार बहुमत के आंकड़े को छू ना पाए. 

इस बार को कांग्रेस को 35 से 38 सीटें मिल सकती हैं. अकाली दल को 32 से 35 सीटें, आम आदमी पार्टी को 36 से 39 सीटें और बीजेपी को 4 से 7 सीटें मिलने का अनुमान है. यानी ओपिनियन पोल में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं है और तीनों ही पार्टियों की सीटें आसपास रह सकती हैं.

चुनाव के बाद ये हो सकते हैं 4 विकल्प

अगर चुनाव के नतीजे ओपिनियन पोल की तरह रहे तो ऐसी स्थिति में सरकार बनाने के लिए 4 विकल्प होंगे.

पहला विकल्प- अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने गठबन्धन कर लिया तो सरकार बन सकती है. क्योंकि दोनों पार्टियों को 77 सीटें मिलने का अनुमान है.

दूसरा विकल्प- अगर आम आदमी पार्टी, अकाली दल के साथ भी गठबन्धन करती है, तब भी सरकार बनाई जा सकेगी. क्योंकि तब दोनों पार्टियों के पास ओपिनियन पोल के हिसाब से 74 सीटें होंगी और बहुमत है, 59 सीट.

तीसरा विकल्प- काफ़ी मुश्किल है लेकिन राजनीति में कुछ भी सम्भव हो सकता है. वो विकल्प ये है कि अगर अकाली दल, कांग्रेस के साथ गठबन्धन कर ले क्योंकि दोनों पार्टियों के पास बहुमत लायक सीटें होंगी.

और चौथा और आख़िरी विकल्प- Hung Assembly में राष्ट्रपति शासन का बचता है.

VIP सीटों पर जीत सकते हैं ये महारथी 

हमारे ओपिनियन पोल के मुताबिक पंजाब विधानसभा चुनाव में चमकौर साहिब सीट से मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी चुनाव जीत सकते हैं.

पंजाब की अमृतसर ईस्ट सीट से पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू चुनाव जीत सकते हैं. जलालाबाद सीट से शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल चुनाव जीत सकते हैं .

पंजाब की धुरी सीट से आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत मान चुनाव जीत सकते हैं. पंजाब की पटियाला सीट से पंजाब लोक कांग्रेस के अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनाव जीत सकते हैं.

हमारे ओपिनियन पोल के मुताबिक शिरोमणि अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल लंबी सीट से चुनाव जीत सकते हैं. पंजाब की कादियां सीट से कांग्रेस के प्रताप बाजवा चुनाव जीत सकते हैं.

मजीठा सीट से शिरोमणि अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया चुनाव जीत सकते हैं. बठिंडा अरबन सीट से कांग्रेस के मनप्रीत सिंह बादल चुनाव हार सकते हैं. इस सीट से आम आदमी पार्टी जीत सकती है.

हमारे ओपिनियन पोल के मुताबिक जालंधर कैंट सीट से कांग्रेस के परगट सिंह चुनाव जीत सकते हैं.

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ओपिनियन पोल की 5 बड़ी बातें 

पहली बात- इस बार पंजाब में कांटे की टक्कर होगी और किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा.

दूसरी बात- आम आदमी पार्टी किंगमेकर की भूमिका में हो सकती है.

तीसरी बात- कांग्रेस को इस बार ज़बरदस्त नुकसान हो सकता है.

चौथी बात- कांग्रेस का वोट शेयर, आम आदमी पार्टी में ट्रांसफर हो सकता है.

पांचवीं बात- किसान आन्दोलन के समर्थन में बीजेपी के साथ गठबन्धन तोड़ना, अकाली दल के लिए सही फैसला साबित हुआ है.

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