Indian Railways: पहले ऐसे बुक होती थी ट्रेनों की टिकट, जानें 36 सालों में क्या-क्या बदला?
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Indian Railways: पहले ऐसे बुक होती थी ट्रेनों की टिकट, जानें 36 सालों में क्या-क्या बदला?

भारतीय रेलवे (Indian Railway) ने आज ही के दिन यानी 20 फरवरी 1986 को कंप्यूटर से रेलवे टिकट आरक्षण प्रणाली की शुरुआत की थी. इससे पहले टिकट बुकिंग काउंटर में रेलवे क्लर्क हुआ करते थे.

 

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: कंप्यूटर (Computer) को मानव इतिहास के चंद सबसे महत्वपूर्ण अविष्कारों में शुमार किया जाता है. इसके होने से आंकड़ों का संकलन और संचालन बड़ी सहजता से हो जाता है. भारतीय रेलवे (Indian Railway) ने आज ही के दिन यानी 20 फरवरी 1986 को कंप्यूटर से रेलवे टिकट आरक्षण प्रणाली की शुरुआत की थी. इससे पहले टिकट बुकिंग काउंटर में रेलवे क्लर्क हुआ करते थे, जो रजिस्टर देखकर ट्रेन में खाली बर्थ की जानकारी देते. इसके लिए लंबी-लंबी कतारें लगा करतीं. लेकिन कंम्प्यूटर के इस्तेमाल के बाद रेलवे के इस काम में बड़ी सरलता हो गई.

  1. 20 फरवरी 1986 से कंप्यूटर से रेलवे टिकट आरक्षण प्रणाली हुई शुरू
  2. पहले टिकट बुकिंग काउंटर में रेलवे क्लर्क हुआ करते थे
  3. इसके लिए रेलवे सूचना प्रणाली केन्द्र (क्रिस) की हुई स्थापना

साल 1986 से शुरू हुआ ये टिकट का ये सिस्टम

कंप्यूटरीकृत टिकट सर्विस को आज दुनिया की सबसे अहम खोजों में गिना जाता है. इसके कारण करोड़ों आंकड़ों का संचालन रोजाना आसानी से हो रहा है. लेकिन पहले ये इतना आसान नहीं था. मैनुअल आरक्षण में हो रही परेशानियों को देखते हुए साल 1985 में भारतीय रेलवे ने कुछ नया करने की ठानी और साल 1985 में कंप्यूटर के जरिए आरक्षण के लिए पायलेट प्रोजेक्ट शुरू किया.

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पहले होता था मैनुअल आरक्षण

आपको बता दें कि इससे पहले मैनुअल आरक्षण हुआ करता था, जो लगभग डेढ़ सौ सालों तक चलता रहा. इसके लिए लोगों को पहले एक फॉर्म भरना होता था. अगर किसी एक तारीख पर आरक्षण न मिल रहा हो तो अगली डेट डालनी होती थी. इसके बाद भरा हुआ फॉर्म लेकर कतार में लगना होता था, जो खासी लंबी हुआ करती. यही वजह है कि लोग यात्रा के लिए काफी पहले से प्लान करते थे.

ऐसे होता था रेलवे रिजर्वेशन

इसके आगे की प्रक्रिया भी आसान नहीं थी. काउंटर पर टिकट बुकिंग क्लर्क हुआ करते, जो रजिस्टर देखकर ट्रेन में सीट की उपलब्धता बताते. यानी फॉर्म भर लंबी कतार पार करने के बाद ये भी हो सकता था कि टिकट आसपास के दिनों में उपलब्ध ही न हो. तब नए सिरे से सारी कवायद होती. यहां ये जानना भी मजेदार है कि अगर-अलग स्थानों की यात्रा के लिए अलग-अलग रजिस्टर मेंटेन किए जाते और इसके लिए अलग-अलग खिड़कियां होती थीं.

साल 1985 में शुरू हुआ पायलेट प्रोजेक्ट

ये समस्या देखते हुए भारत सरकार ने कंप्यूटर प्रणाली के इस्तेमाल की ठानी. इसके लिए पहले पायलेट किया गया. साथ ही सारी कंप्यूटर संबंधी गतिविधियों के लिए एक अम्ब्रेला संगठन के रूप में रेलवे सूचना प्रणाली केन्द्र की स्थापना दिल्ली के चाणक्यपुरी में की. इस प्रणाली को क्रिस नाम दिया गया, जिसका काम था रेलवे की प्रमुख कंप्यूटर प्रणालियों के विकास को देखना.

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अब घर बैठे भी कर सकते हैं टिकट बुक

कंम्प्यूटर से रेलवे रिजर्वेशन सिस्टम की शुरूआत होने के बाद सिलसिला आगे बढ़ता रहा. आज रेलवे टिकट का पूरा काम कंम्प्यूटर से ही होता है. इतना ही नहीं अब तो ये सिस्टम इतना डिजिटल हो चुका है कि लोग घर बैठे ही किसी भी ट्रेन में रिजर्वेशन कर सकते हैं. साथ ही ट्रेन में सीट की उपलब्धता भी चेक कर सकते हैं.

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