जोधपुर की बिलाड़ा सीट राजस्थान के पहले विधानसभा चुनाव की भी साक्षी रही है, यह सीट जोधपुर के ग्रामिण इलाके की सीट है.
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Bilara Vidhansabha Seat : जोधपुर की बिलाड़ा सीट राजस्थान के पहले विधानसभा चुनाव की भी साक्षी रही है, यह सीट जोधपुर के ग्रामिण इलाके की सीट है. आज के दौर में भले ही अनुसूचित जाति के लिए यह सीट आरक्षित हो, लेकिन इस सीट पर जीत और हार का फैसला जाट ही करते हैं.
इस सीट के लिए कहा जाता है कि यहां उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला तो जाट करते हैं, लेकिन वह चुनाव लड़ नहीं सकते. दरअसल यह सीट 2008 से ST वर्ग के लिए आरक्षित है. हालांकि 1951 से 1967 तक और फिर 1977 से 2003 के चुनाव तक यह सीट सामान्य वर्ग के लिए रही है. इस सीट पर सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड रामनारायण डूडी और राजेंद्र चौधरी के नाम है. रामनारायण डूडी ने पहला चुनाव 1977 में जीता, इसके बाद वह 1980 में फिर विधायक बने और 2003 में भाजपा के टिकट पर एक बार फिर बिलाड़ा की जनता ने उन्हें जिताया. जबकि राजेंद्र चौधरी 1985 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद 1993 और 1998 में फिर लगातार दो बार विधायक चुने गए. वहीं अर्जुन लाल गर्ग दो बार विधायक चुने गए.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 2013 में हार चुके हीराराम मेघवाल पर फिर दाव खेला था, जबकि कांग्रेस ने टिकट दावेदारी करने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी रह चुके दूसरे प्रत्याशी विजेंद्र झाला को टिकट नहीं दिया. लिहाजा ऐसे में विजेंद्र झाला बागी हो गए और बोतल का हाथ थाम लिया. हालांकि हीराराम मेघवाल ने चुनाव से पहले यहां कड़ी मेहनत की और सक्रिय भी नजर आते रहे. स्थानीय बनने के लिए उन्होंने यहां जमीन भी खरीदी. जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिला और विजेंद्र झाला के भीतरघात के बावजूद उन्होंने जीत हासिल की. वहीं अर्जुन लाल गर्ग को भाजपा ने तीसरी बार चुनावी मैदान में उतारा जबकि वो दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे, लिहाजा ऐसे में अर्जुन लाल का कद भी बढ़ गया लेकिन इसका फायदा वो चुनाव में नहीं उठा सके.
बिलाड़ा विधानसभा सीट का इतिहास
पहला चुनाव 1951
1951 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से गुल्ला राम चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार संतोष सिंह ने टक्कर दी. इस चुनाव में गुल्ला राम के पक्ष में 8,907 वोट पड़े तो वहीं संतोष सिंह के समर्थन में 15,542 मतदाताओं ने वोट किया और उनकी जीत हुई.
1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए भैरो सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया तो वहीं भैरो सिंह को सबसे कड़ी टक्कर निर्दलीय उम्मीदवार चंद्र सिंह से मिली. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार भैरो सिंह की जीत हुई. जबकि चंद्र सिंह को शिकस्त का सामना करना पड़ा. हालांकि दोनों के बीच जीत और हार का अंतर लगभग 2000 वोटों का था.
1962 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला भैरो सिंह वर्सेस चंद्र सिंह के बीच हुआ. इस चुनाव में चंद्र सिंह, भैरो सिंह को पटखनी देने में कामयाब हुए और उन्होंने निर्दलीय होते हुए भी चुनाव जीत लिया. जबकि भैरो सिंह को इस चुनाव में मुंह की खानी पड़ी.
1967 के विधानसभा चुनाव से पहले यहां का गणित बदल गया. बिलाड़ा विधानसभा सीट जनरल कोटे से आरक्षित वर्ग में चली गई. लिहाजा ऐसे में कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार को बदला और कालूराम आर्य को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि उन्हें बीजेएस पार्टी से कड़ी टक्कर मिली. इस चुनाव में कालूराम आर्य की 19,335 मतों से जीत हुई.
इस चुनाव में कांग्रेस फिर से कालूराम को ही चुनावी मैदान में उतारा जबकि इस बार पर कालूराम को BJS पार्टी से चुनौती मिली. BJS पार्टी से वचनाराम नेता चुनावी ताल ठोकने उतरे. हालांकि कालूराम बड़े अंतर से 28,542 वोट लेकर विजयी हुए.
इस चुनाव में फिर समीकरण बदले, इसका कारण बना बिलाडा सीट के आरक्षित वर्ग से सामान्य वर्ग की सीट में तब्दील होना. लिहाजा ऐसे में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदला और रामनारायण को टिकट दिया, जबकि जनता पार्टी की ओर से राम नारायण को उम्मेद राम ने चुनौती दी. चुनाव में उम्मेद राम के पक्ष में 13,905 मत पड़े वहीं रामनारायण को 21,695 लोगों ने वोट दिया और उनकी जीत हुई.
रामनारायण डूडी चुनावी मैदान उतरे और कांग्रेस आई की ओर से उम्मीदवार बने. चुनाव में भाजपा के वचना राम ने चुनौती पेश की. लेकिन रामनारायण डूडी फिर से विजयी होने में कामयाब हुए.
चुनाव में कांग्रेस ने राम नारायण डूडी की जगह राजेंद्र चौधरी को टिकट दिया, जबकि उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी लोकदल के उम्मीदवार महेंद्र प्रताप बने. लेकिन प्रत्याशी बदलने के रणनीति में कांग्रेस सफल हुई और राजेंद्र चौधरी की 30,271 वोटों से जीत हुई.
इस चुनाव में रामनारायण डूडी एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवार बने जबकि मिश्री लाल चौधरी ने जनता दल की ओर से चुनौती पेश की. इस चुनाव में मिश्री लाल चौधरी 44,145 मतों के साथ विजयी हुए.
दसवां विधानसभा चुनाव 1993
1993 के विधानसभा चुनाव में बिलाड़ा की सियासी तस्वीर फिर बदलने वाली थी, क्योंकि कांग्रेस ने इस बार फिर राजेंद्र चौधरी पर ही विश्वास जताया और उन्हें टिकट दिया. जबकि जनता दल के टिकट पर चुनाव जीत चुके मिश्री लाल चौधरी को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में मिश्रीलाल चौधरी के पक्ष में 32,757 वोट पड़े तो वही राजेंद्र चौधरी के पक्ष में 52,348 वोट डले है और बड़े अंतर से राजेंद्र चौधरी एक बार फिर बिलाड़ा की जनता का प्रतिनिधित्व करने विधानसभा पहुंचे.
1998 के विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस का विश्वास राजेंद्र चौधरी पर बन चुका था और कांग्रेस ने फिर से राजेंद्र चौधरी को ही चुनावी मैदान में आगे किया. जबकि कांग्रेस के टिकट पर विधायक रह चुके रामनारायण डूडी अबकी बार भाजपा के उम्मीदवार बने. इस बेहद ही रोमांचक चुनाव में रामनारायण के पक्ष में 30,840 मतदाता खड़े नजर आए तो वहीं राजेंद्र चौधरी 44,870 मतों के साथ एक बार राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
2003 का विधानसभा चुनाव बड़ा मजेदार था. क्योंकि इस बार मुकाबला फिर रामनारायण डूडी और राजेंद्र चौधरी के बीच था. इस चुनाव में भाजपा ने रामनारायण डूडी पर एक बार फिर दांव खेला जबकि कांग्रेस का विश्वास हासिल कर चुके राजेंद्र चौधरी हाथ के साथ चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में राजेंद्र चौधरी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा और रामनारायण डूडी आखिर 42559 मतों के साथ बिलाड़ा की जनता का विश्वास जीत चुके थे.
2008 के विधानसभा चुनाव में बिलाड़ा के समीकरण एक बार फिर बदलते हुए नजर आए. यह सीट सामान्य वर्ग से एक बार से आरक्षित वर्ग में चली गई. यह सीट भले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई हो लेकिन यहां जीत और हार जाट ही तय कर रहे थे. कांग्रेस ने नए चेहरे के रूप में शंकरलाल को उतारा तो वहीं बीजेपी की ओर से नए चेहरे के रूप में अर्जुन लाल ने चुनावी ताल ठोकी. इस चुनाव में अर्जुन लाल की जीत हुई हालांकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक को रिपीट करते हुए चुनावी मैदान में उतारा. जबकि कांग्रेस ने चेहरा बदलते हुए हीराराम पर दांव खेला. हालांकि मोदी लहर पर सवार अर्जुन लाल बड़े मतों के अंतर से विजयी हुए जबकि हीराराम को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.
यह चुनाव एक बार फिर दिलचस्प हो गया. इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस का गणित बिगाड़ने के लिए हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी चुनावी मैदान में उतर चुकी थी. इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने अपने पुराने चेहरों पर ही विश्वास करते हुए हीराराम मेघवाल और अर्जुन लाल गर्ग को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं उन्हें कड़ी टक्कर देने के लिए आरएलपी से विजेंद्र झाला उतरे. बिलाड़ा की जनता ने विजेंद्र झाला को 37,7ॉ96 मत दिए, जबकि अर्जुन लाल गर्ग को 66,053 वोट मिले और 36% बिलाड़ा की जनता का आशीर्वाद मिला. लेकिन यह आशीर्वाद उन्हें जीत नहीं दिला सका. इस चुनाव में कांग्रेस के हीराराम मेघवाल की 75,671 वोटों के साथ जीत हुई. उन्होंने 9618 मतों से के अंतर से जीत दर्ज की और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी.
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