Rajasthan Election: पश्चिमी राजस्थान की वो सीट जहां जाटों का दबदबा, 2013 में टूटा वर्चस्व तो 2018 में फिर से कब्जा
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Rajasthan Election: पश्चिमी राजस्थान की वो सीट जहां जाटों का दबदबा, 2013 में टूटा वर्चस्व तो 2018 में फिर से कब्जा

Gudamalani Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान की गुड़ामालानी विधानसभा सीट पर जाट समुदाय का पहले चुनाव से ही वर्चस्व रहा है, लेकिन इस वर्चस्व को साल 2013 में चुनौती मिली और भाजपा के लादूराम चौधरी ने जीत हांसिल की. पढ़ें यहां का सियासी इतिहास

Rajasthan Election: पश्चिमी राजस्थान की वो सीट जहां जाटों का दबदबा, 2013 में टूटा वर्चस्व तो 2018 में फिर से कब्जा

Gudamalani Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान की गुडामालानी विधानसभा सीट पर सिर्फ एक ही जाति का वर्चस्व रहा है. हालांकि जब यह वर्चस्व टूटा तो कमल का फूल खिल उठा था. ये वो सीट है जहां कांग्रेस ने एक नहीं, दो नहीं बल्कि 12 बार जीत हासिल की. इसे पश्चिमी राजस्थान में कांग्रेस का सबसे मजबूत किला कहा जाता है, हालांकि माना जा रहा है कि लंबे अरसे बाद गुडामालानी को विधायक के रुप में एक नया चेहरा मिल सकता है. 

खासियत

इस सीट पर ना सिर्फ एक जाति का वर्चस्व है, बल्कि इस सीट पर व्यक्तियों का भी वर्चस्व रहा है. बाड़मेर की गुडामालानी से 1957 में पहली बार विधायक बने राम राम चौधरी की विरासत को उनके बेटे गंगाराम चौधरी ने 1962 से 1977 तक आगे बढ़ाया. इसके बाद से ही इस सीट पर हेमाराम चौधरी का वर्चस्व रहा है. हेमाराम चौधरी यहां से 6 बार विधायक चुने गए हैं. 

गुडामालानी और हेमाराम चौधरी

गुडामालानी में हेमाराम चौधरी के वर्चस्व का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि ना सिर्फ हेमाराम चौधरी यहां से 6 बार विधायक रहे, बल्कि उनकी पत्नी भीखा देवी भी पिछले 30 सालों से निर्विरोध सरपंच के रूप में जीतते के आई हैं. 

हेमाराम चौधरी का सियासी सफर

हेमाराम चौधरी पिछले 45 सालों से राजस्थान और खासकर बाड़मेर की सियासत में सक्रिय हैं, 1978 में चौधरी ने वार्ड पंच का चुनाव जीत का सियासत की दुनिया में कदम रखा था. इसके बाद हेमाराम चौधरी साल 1980, 1985, 1998, 2003, 2008 और 2018 में कुल 6 बार विधायक चुने गए. इतना ही नहीं सबसे खास बात यह है हेमाराम चौधरी हर बार बाड़मेर की गुडामालानी सीट से विधायक चुने गए. साल 2003 में हेमाराम चौधरी गहलोत सरकार ने मंत्री बने. उन्हें परिवार कल्याण विभाग का स्वतंत्र प्रभार दिया गया, जबकि कृषि राज्य मंत्री की भी जिम्मेदारी उन्हें दी गई. हालांकि 2013 में हेमाराम चौधरी को पहली बार शिकस्त का सामना करना पड़ा.

गुडामालानी विधानसभा सीट का इतिहास

पहला विधानसभा चुनाव 1957

गुडामालानी विधानसभा सीट के पहले चुनाव में कांग्रेस की ओर से राम दान चौधरी उम्मीदवार थे तो वहीं सामने रामराज्य पार्टी की ओर से बाबू ताल ठोक रहे थे, रामदान चौधरी के पक्ष में 6712 वोट पड़े तो वहीं राम राज्य परिषद के पक्ष में 4981 वोट पड़े. इस चुनाव में रामदान चौधरी की जीत हुई और वहीं से उनके परिवार की सियासी वर्चस्व की नींव पड़ी.

दूसरा विधानसभा चुनाव 1962

इस चुनाव में रामदान चौधरी के पुत्र गंगाराम चौधरी चुनावी मैदान में थे, उन्हें कांग्रेस की ओर से टिकट मिला. उनके सामने निर्दलीय उम्मीदवार बच्चू सिंह ताल ठोक रहे थे, इस चुनाव में गंगाराम चौधरी ने बच्चू सिंह को 6572 वोटों से शिकस्त दी.

तीसरा विधानसभा चुनाव 1967

1967 में रामदान चौधरी के पुत्र गंगाराम चौधरी ने जीत हासिल की, लिहाजा ऐसे में कांग्रेस का विश्वास गंगाराम चौधरी पर बढ़ चुका था, कांग्रेस ने गंगाराम चौधरी को 1967 में एक बार फिर टिकट दिया और वह पार्टी के विश्वास पर खरे उतरे. गंगाराम चौधरी के पक्ष में 11169 मत पड़े तो वहीं सबसे करीबी प्रतिद्वंदी निर्दलीय उम्मीदवार के पक्ष में 7632 वोट पड़े.

चौथा और पांचवां विधानसभा चुनाव 1972 और 1977

1967 में निर्दलीय उम्मीदवार को शिकस्त देकर जीत हासिल करने वाले गंगाराम चौधरी इस बार फिर कांग्रेस के टिकट से चुनावी मैदान में थे, उन्होंने स्वराज पार्टी के भीमाराम को  19729 वोटों के बड़े अंतर से शिकस्त दी. इसके बाद 1977 के विधानसभा चुनाव में गंगाराम चौधरी अपने पक्ष में 24917 वोट लेकर एक बार फिर विजयी हुए.

छठा विधानसभा चुनाव 1980

1980 के विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो चले थे, इंदिरा गांधी का जमाना था, यहां कांग्रेस की लड़ाई कांग्रेस (आई) से ही थी यानी कांग्रेस बनाम कांग्रेस के मुकाबले में इस बार गंगाराम चौधरी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस (आई) की ओर से हेमाराम चौधरी ने ताल ठोकी. इस चुनाव में हेमाराम चौधरी ने गंगाराम चौधरी पर 11120 मतों के अंतर से जीत हासिल की. इस चुनाव के बाद हेमाराम चौधरी का वर्चस्व गुडामालानी की सियासत में बहुत बढ़ गया.

सातवां विधानसभा चुनाव 1985

इस चुनाव में हेमाराम चौधरी कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार थे तो वहीं सामने कैलाश बेनीवाल लोक दल की ओर से ताल ठोक रहे थे, इस चुनाव में हेमाराम चौधरी के पक्ष में 38127 वोट पड़े तो वहीं उनके करीबी प्रतिद्वंदी कैलाश बेनीवाल को महज 9404 वोट मिले. इस चुनाव में हेमाराम चौधरी ने जीत हासिल कर दूसरी बार विधायकी हासिल की.

सातवां विधानसभा चुनाव 1990

यह चुनाव गुडामालानी के इतिहास को बदलकर रखने वाला था, क्योंकि इससे पहले कभी भी बार महिला विधायक नहीं चुनी गई थी. कांग्रेस ने चेनाराम को अपना उम्मीदवार बनाया तो वहीं जनता दल की ओर से मदन कौर उम्मीदवार बनी. इस चुनाव में मदन कौर ने बड़े अंतर से जीत हासिल की और वह गुडामालानी की पहली महिला विधायक के तौर पर विधानसभा पहुंची.

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नोवां विधानसभा चुनाव 1993

इस चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर जोर लगाया और अपनी वापसी का रास्ता तय किया. इस चुनाव में जोधपुर के परसराम मदेरणा कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार बने, तो वहीं बीजेपी की ओर से सत्यपाल चुनावी मैदान में थे, बीजेपी बनाम कांग्रेस के इस चुनाव में जातीय समिकरण के चलते कांग्रेस को जीत हासिल हुई और परसराम मदेरणा ने 15332 मतों से जीत हासिल की.

दसवां विधानसभा चुनाव 1998

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से एक बार हेमाराम चौधरी चुनावी मैदान में थे तो वहीं लोक दल से चुनाव लड़ चुके कैलाश बेनीवाल ने एक बार फिर चुनावी ताल ठोकी, लेकिन इस बार कैलाश बेनीवाल भाजपा के उम्मीदवार थे. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो कैलाश बेनीवाल को हेमाराम चौधरी के हाथों करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में हेमाराम चौधरी के पक्ष में 69819 वोट पड़े तो वहीं कैलाश बेनीवाल को महेश 17282 मतों से संतोष करना पड़ा.

11वां और 12वां विधानसभा चुनाव 2003 और 2008

इस विधानसभा चुनाव में गुडामालानी में अपनी धाक जमा चुके हेमाराम चौधरी एक बार फिर कांग्रेस के टिकट से चुनावी मैदान में थे, जबकि उनका मुकाबला सामने भाजपा के उम्मीदवार लादूराम विश्नोई से था. हेमाराम चौधरी जहां गुडामालानी के सबसे बड़े वोट बैंक यानी जाट समुदाय से आते थे, तो वहीं लादूराम विश्नोई क्षेत्र में दूसरे स्थान पर सबसे ज्यादा प्रभाव रखने वाले विश्नोई समुदाय से थे. हालांकि इन दोनों ही चुनाव में जब नतीजे आए तो हेमाराम चौधरी को बड़े मार्जिन से जीत हासिल हुई.

13वां विधानसभा चुनाव 2013

इस चुनाव में मौजूदा विधायक हेमाराम चौधरी कांग्रेस री ओर से एक बार फिर चुनावी ताल ठोक रहे थे, तो वहीं भाजपा ने फिर से लादूराम विश्नोई पर विश्वास जताया और उन्हें चुनावी मैदान में उतारा. हालांकि इस चुनाव का परिणाम गुडामालानी विधानसभा क्षेत्र के इतिहास को बदलने वाला था. इस चुनाव के नतीजे आए तो हेमाराम चौधरी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. लादूराम विश्नोई विजयी हुए. यह पहला मौका था जब गुडामालानी की जनता ने गैर जाट को अपना प्रतिनिधि के रूप में चुना. इस चुनाव में लादूराम चौधरी के पक्ष में 91619 वोट पड़े तो वहीं हेमाराम चौधरी के पक्ष में 58464 वोट पड़े. यही वह चुनाव था जिसमें हेमाराम चौधरी को भी पहली बार शिकस्त का सामना करना पड़ा.

14वां विधानसभा चुनाव 2018

इस विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की ओर से हेमाराम चौधरी और भाजपा की ओर से लादूराम विश्नोई के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला. इस चुनाव में हेमाराम चौधरी ने अपनी सियासी वर्चस्व को फिर हासिल करते हुए चुनावी विजयी हासिल की. इस चुनाव में हेमाराम चौधरी के पक्ष में 93433 वोट पड़े तो वहीं लादूराम विश्नोई के पक्ष में 79869 वोट पड़े.

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सियासी रिटायरमेंट का ऐलान

गुडामालानी सीट से 7 बार विधायक चुने गए हेमाराम चौधरी ने अगला चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है. हेमाराम चौधरी का लंबे वक्त से इस सीट पर सियासी वर्चस्व रहा है. कहा जाता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव को भी लड़ने के लिए हेमाराम चौधरी तैयार नहीं थे, इसकी वजह उनके पुत्र वीरेंद्र चौधरी के देहांत को बताया जाता है. हालांकि सचिन पायलट के मनाने के बाद हेमाराम चौधरी साल 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुए थे और उसके बाद उन्होंने बड़े अंतर से जीत हासिल की थी, वहीं अब ऐसे में जब उन्होंने अगला विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है तो माना जा रहा है गुडामालानी की जनता 2023 के चुनाव में एक नए चेहरे को अपने विधायक के रुप में चुनेंगी.

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