शहर की हाईटेक नर्सरी में वन विभाग की ओर से ग्रामीण महिलाओं को जैविक खाद बनाने का कार्य सिखाया गया, जिसके बाद महिलाओं ने बड़ी संख्या में जैविक खाद को बनाया और उसकी बिक्री की.
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Banswara: राजस्थान के बांसवाड़ा शहर की हाईटेक नर्सरी में वन विभाग की ओर से ग्रामीण महिलाओं को जैविक खाद बनाने का कार्य सिखाया गया, जिसके बाद महिलाओं ने बड़ी संख्या में जैविक खाद को बनाया और उसकी बिक्री की. अब वन विभाग इनको गमले बनाने का प्रशिक्षण भी दे रहा है ,जिससे अब यह ग्रामीण महिलाएं गमले बनाने का कार्य भी बहुत जल्द शुरू करेंगी.
शहर की वन विभाग की हाईटैक नर्सरी में अब पौधों के साथ-साथ जैविक की खाद भी लोगों को मिल रही है. पौधों को खतरनाक रसायनों से बचाने और आसानी से पनप सके इसके लिए नर्सरी में बड़े स्तर पर जैविक खाद तैयार की गई है. खास बात यह है कि इस जैविक खाद को बारी गांव की कुछ जागरूक महिलाएं मिलकर बना रही हैं.
इन महिलाओं को स्व-रोजगार से जोड़ने की मंशा से विभाग सहयोग कर रहा है. शीतला माता महिला स्वयं सहायता समूह के नाम से महिलाओं ने समूह बनाया है. यहां पौधे खरीदने आ रहे लोगों में इस जैविक खाद की जबरदस्त डिमांड है. शुरुआत में महिलाओ को केचुएं का खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. समूह ने अब 100 क्विंटल से भी ज्यादा खाद तैयार कर लिया है. यह जैविक खाद पौधों के विकास के लिए काफी बेहतर है.
यहां पौधे लेने आ रहे लोगों को भी समूह की महिला सदस्य खाद के बारे में जानकारी देती हैं. फिलहाल समूह की ओर से 5-5 किलो के बैग तैयार किए गए हैं. हर महीने करीब 2 से 3 क्विंटल खाद की बिक्री हो रही है. इससे यह हर महीने 200-200 रुपये बचत भी कर लेती है.
अब तक यह महिला 35 हजार की खाद बेच चुकी हैं. अब इन्हें गमले बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि ये सभी महिलाएं स्वरोजगार से जुड़ सकें. इस समूह में बारी गांव की 14 महिला जुड़ी हुई है और अपनी मेहनत और लगन से काम सिख भी रही है और बेहतर खाद बना भी रही हैं. इस महिलाओं को प्रशिक्षण उपवन संरक्षक सतीश जैन द्वारा दिलवाया जा रहा है.
इसलिए जरूरी जैविक का खाद
वर्मीकंपोस्ट में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैगनीशियम और अनेक सूक्ष्मतत्व संतुलित मात्रा में होते हैं. यह भूमि की उर्वरकता, वातायनता को तो बढ़ाता ही है, साथ ही भूमि की जल सोखने की क्षमता को भी बढ़ाता है.
वर्मी कंपोस्ट वाली भूमि में खरपतवार कम उगते हैं और पौधों में रोग कम लगते हैं. पौधों और भूमि के बीच आयनों के आदान-प्रदान में वृद्धि होती है.
समूह की पारी बुझ ने बताया कि जैविक खाद की मांग बढ़ने से हमें लग रहा है कि अब समूह को इससे आर्थिक मजबूती भी मिलेगी. फिलहाल वन विभाग से काफी सहयोग मिल रहा है.
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उपवन संरक्षक सतीश जैन ने बताया कि हमने बारी गांव की महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए हाईटेक नर्सरी में खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया, जिसके इन महिलाओ ने खाद बनाना शुरू किया. इन महिलाओं ने अबतक 35 हजार रुपये की खाद को बनाकर बेच दिया है. अब हम इन महिलाओं को गमले बनाने का प्रशिक्षण भी देने वाले है, जिससे महिआएं अपना रोजगार और बड़ा सकें.
Reporter- Ajay Ojha
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