Jaswant singh Jasol Life story : राजस्थान में बाड़मेर जिले के जसोल में जन्मे जसवंत सिंह जसोल अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विदेश मंत्री से लेकर वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री का पद संभाल चुके है. कंधार विमान हाईजैक के समय अजीत डोभाल के साथ मिलकर उन्हौने ही मोर्चा संभाला है.
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Jaswant singh Jasol history : ये बात कंधार विमान हाईजैक के वक्त की है. जसवंत सिंह के घर पौती ने जन्म लिया. घर में खुशनुमा माहौल था लेकिन इसी बीच खबर मिली कि यात्रियों से भरा हवाई जहाज हाईजैक हो गया. IC-814 अमृतसर छोड़ते ही भारत के हाथों से निकल गया था, मतलब अब सरकार की कोशिशें सांप के गुजर जाने के बाद लकीर पीटने जैसी थी. जहाज लाहौर पहुंचा. उतरने की इजाजत नहीं मिली तो दुबई की ओर मुड़ा. दुबई में भी सिर्फ फ्यूल भरने की इजाजत मिली. दुबई ने न नेगोशिएट करने की इजाजत दी, न ऑपरेशन करने की. मीडिया कवरेज में भी सिर्फ CNN को इजाजत मिली, जो रातभर भारत की उतरती इज्जत लाइव दिखाता रहा. ध्यान रहे, अमेरिका उस वक्त पाकिस्तान प्रेमी था. अगली सुबह जहाज वहां से कंधार पहुंचा.
दुबई से आई CNN पर तस्वीरों ने माहौल को पैनिक कर दिया. इसी पैनिक के बीच विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई तो उन यात्रियों के परिजन भी प्रेस कांफ्रेंस में घुस आए. नारों में बाबर को धूल चटाने वाली और ख्वाबों में चीन की चूले हिलाने वाली हिंदुस्तान की जनता लगातार सरकार पर आतंकियों के आगे घुटने टेकने का दबाव बना रही थी. आतंकियों की हर मांग मान लो बस हमारे लोगों को छुड़ा लो. आज गोलियों से मां भारती की आरती करने वाले भी उस समय यही कह रहे थे. " लेट देम टेक व्हाट दे वांट" क्योंकि मामला उनके परिवारों का था.
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उस समय IB चीफ थे अजीत डोभाल, डोभाल नहीं चाहते थे कि आतंकियों के साथ शर्तों पर बात की जाए. वो एक बड़ा रिश्क लेने की तैयारी में थे. मतलब तालिबान की धरती पर कोई बड़ा ऑपरेशन करने की तैयारी. डोभाल चाहते थे कि अगर हम झुकते नहीं है तो दुनिया में एक सख्त संदेश देने में कामयाब होंगे. लेकिन ऑपरेशन के लिए न तो अफगान सरकार तैयार हुई. न भारत सरकार की मंजूरी मिली. मुसीबत ये भी थी कि बीच में पाकिस्तान की धरती पड़ती है. पाकिस्तान किसी भी हाल में मदद देने को तैयार नहीं था. असल में तो वो हाईजैकर्स के साथ ही मिला हुआ था.
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30 आतंकियों की रिहाई से शुरू हुआ सौदा 3 पर खत्म हुआ. लेकिन ये सौदा भारत के लिए बेहद अपमानित करने वाला कदम था. तो तीन आतंकी और भारत की इज्जत एक हवाई जहाज में लादकर कन्धार में सरेंडर की जानी थी. औऱ इसके लिए जो भी नेतृत्व करता. वो जीवन भर के लिए अपमानित होने वाला था. ये फैसला पूरी कैबिनेट का था लेकिन शर्मिंदा कोई नहीं होना चाहता था. कुछ वक्त बाद नंबर 2 रहे आडवाणी भी कैबिनेट के इस फैसले से पल्ला झाड़ने वाले थे. तो जहर कौन पीएगा. नीलकंठ कौन होगा. जिंदगी पर ये धब्बा कौन बर्दास्त करेगा. और उस वक्त आगे आया राजस्थान की मरूधरा से निकला ये वीर.
दो जोड़ी कोट,एक गीता और एक रुद्राक्ष बैग में डालकर वो कन्धार पहुंचे. उसी विमान से गए जिसमें भारत की इज्जत सरेंडर होने जा रही थी. जिसमें रिहा होने वाले 3 आतंकी भी सवार थे. जसौल उन शर्मनाक तस्वीरों का हिस्सा बने. प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री. रक्षा मंत्री से लेकर वित्त मंत्री. सभी बड़े मंत्रालयों वाले तुर्रमखानों के बीच एक बहादुर था. जो नीलकंठ बना.
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31 दिसंबर की रात विमान दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पहुंचा. जसवंत सिंह भी उसी जहाज में पहुंचे. सबसे पहले उतरे, और सीढियों के नीचे तब तक खड़े रहे, जब तक आखरी यात्री ने भारत भूमि पर कदम न रख लिया. हम जसवंत सिंह जसोल को नीलकंठ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि उन्हौने अपने पूरे सियासी करियर में इस अपमान और बदनामी का घूंट पिया. जिस अमेरिका को आज हम अपना जिगरी दोस्त कह रहे है. अमेरिका से दोस्ती की वकालात वायपेयी कार्यकाल में जसवंत सिंह जसौल ने की थी. वक्त की जरूरत को वो पहले से समझते थे. लेकिन तब जसवंत को अमेरिका का पिट्ठू कहा गया. लेकिन वो जहर के घूंट पी गए. परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका को मनाने में कामयाब रहे. तब वामपंथी धड़े ने उन्हैं अमेरिका का पिट्ठू कहा. और बाद में भी कई मौके ऐसे आए जब जसवंत नीलकंठ बने. अपमान अपने हिस्से लिया और यश का भागीदार अटलजी से लेकर आडवाणी को बनाया. अपने कार्यकाल में कारगिल से लेकर ऑपरेशन पराक्रम, बम धमाके, लाहौर बस यात्रा, अमेरिकी प्रतिबंध, संसद पर आतंकी हमला और विमान हाईजैक तक उनके दौर में कुर्सियां कांटों से भरी हुई थी.