सनातन संस्कृति में होली का त्योहार बहुत मायने रखता है. इस पर्व में आपसी बैर और द्वेष को भुलाते हुए एक-दूसरे को रंग लगाकर भाईचारे का संदेश दिया जाता है.
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भीलवाड़ा: बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर मनाए जाने वाला रंगों का त्योहार बड़ी होली आज (शुक्रवार) मनाई जा रही है. परंपरा के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है. उसके अगले दिन अबीर-गुलाल और फूलों से होली खेली जाती है. सनातन संस्कृति में होली का त्योहार बहुत मायने रखता है. इस पर्व में आपसी बैर और द्वेष को भुलाते हुए एक-दूसरे को रंग लगाकर भाईचारे का संदेश दिया जाता है.
रंगों का त्योहार, प्यार का त्योहार, हर्षोल्लास का त्योहार यानि होली की धूम सुबह से शुरू हो गई. होली मतलब रंगों का वो खेल जिसमें हर कोई भीगा नजर आया. आज शुक्रवार को लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि लगाते हुए नजर आए, ढोल बजा कर होली के गीत गाये और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया गया. बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियां भूलकर ढोलक-झाल-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब नजर आ रहे हैं. चारों तरफ रंगों की फुहार फूट पड़ती है.
यह है पौराणिक कथा
होली के पर्व से अनेक कहानियां जुड़ी हुई हैं. इनमें से सबसे प्रसिद्घ कहानी है प्रह्लाद की. माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था. उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था. प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रोद्धित होकर हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा.
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे. आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया. ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था. इसी खुशी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग होली खेली थी.
रिपोर्ट: दिलशाद खान