Bikaner News: राजस्थान अपने क़िले हवेलियों,संस्कृति , वेशभूषा और खान-पान के लिये पूरी दुनिया में जाना जाता है, लेकिन वक़्त के साथ यहां की विरासत धीरे-धीरे आधुनिकीकरण में कुछ कम होती जा रही है. कोई है जो इन्हें चमकाने की जुगत में लगा हुआ है. आइए देखते हैं इस खास रिपोर्ट में.
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Bikaner: राजस्थान अपने क़िले हवेलियों,संस्कृति , वेशभूषा और खान-पान के लिये पूरी दुनिया में जाना जाता है, लेकिन वक़्त के साथ यहां की विरासत धीरे-धीरे आधुनिकीकरण में कुछ कम होती जा रही है. हवेलियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं, तो वहीं ऊंची-ऊंची इमारतें बन रही हैं, लेकिन इन सब के बीच अपनी विरासत को संजोय रखना हम सब का कर्तव्य है.
ताकि आने वाली कई पीढ़ियां हमे इसी ख़ासियत के लिये पहचान सकें. इसी को आगे बढ़ाने का काम कर रहे कलकत्ता के निवासी शरद लखोटिया. जिन्होंने अब तक कई ऐसी हवेलिया जिनको फिर से पहले रूप में तैयार कर एक अनूठी मिशाल कायम की है. जहां अपना वैभव खो चुकी हवेलिया एक बार फिर एक जीवंत हो उठी हैं.
बीकानेर जिसकी पहचान में धरातल पर स्थित जूनागढ़. कोटगेट और लालगढ जैसी धरोहर है वहीं नमकीन मे पापड़ भुज़ियों का तीखापन वहीं रसगुल्लो का मिठास इनकी पहचनो मे से एक है. ऐतिहासिक रूप से बीकानेर की हवेलियां भी एक विशिष्ट पहचान रखती हैं. जिसे बीकानेर की विरासत में जाना जाता है.
जो बीकानेर की संस्कृति को प्रदर्शित करती शताब्दीयों से भी अधिक अपनी विरासतों को संजोय हुवे रखने वाला बीकानेर आज अपनी हवेलियों के रूप मे विरासतो कों खो रहा है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण बीकानेर में स्थित विभिन्न स्थानों की प्राचीन हवेलियों की नक्काशी किये पत्थरों की विखण्डित कर बीकानेर से बाहर की ओर ले जाया जा रहा है जो एक अहम विचारणीय बिन्दु है.
इसका दूसरा उदाहरण हमे यह देखने को मिला जो की एक सुखद और खुशनुमा है, बीकानेर की उतरती हवलियों का जो की पारम्परिक रूप से उनको संजोये रखने का निरंतर काम कर रहे है , कलकत्ता निवासी शरद कुमार लखोटिया, इन्होंने अपने इस महत्वपूर्ण कार्य से बीकानेर की विरासत (हवेलियों) की हिफाजत करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया है.
इन्होंने सर्वप्रथम बीकानेर के लखोटिया चौक में स्थित 130 साल पुरानी अपनी हवेली का जीर्णोद्धार करवाया. इसके बाद तेलीवाडा में स्थित मशहूर और सुप्रसिद्ध रिखबदास बागडी की “गोविन्द हवेली” जो लगभग 199 साल पुरानी है जिनका जीर्णोद्धार करवाया और उत्सव वाटिका का निर्माण करवाया गया.
उसके बाद डागा मोहल्ला स्थित सेठ चुनीलाल डागा की हवेली का जीर्णोद्धार जो की वर्तमान समय मे कार्यरत है जो लगभग 70-80 साल पुरानी हवेलियों मे से एक है जिसमे सुनहरी कलम से नक्काशी का जिसमे बीकानेर की प्रसिद्ध उस्ता कला और मैथरण कला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता है. इस हवेली में जो लकड़ी खराब हो चुकी उसे ठीक तरीके से उसी स्वरूप में लाने के लिए पिछले कई दिनों से सुथार काम कर रहे हैं इनके अलावा चित्रकार लगातार पुरानी चित्रकारी को नया रूप दे रहे हैं.
खास बात यह है कि यह हवेली लखोटिया के मित्र की हवेली है जो बीकानेर में नहीं हैं इस हवेली का काम पूरी तरह से लखोटिया ही संभाल रहे हैं. शरद लखोटिया कहते है कि बीकानेर की हवेलियों को उनके मूल रूप में रखकर उसे आने वाली पीढीयों के लिए सजोये रखना एक तोहफ़े से कम नहीं है. जिससे भविष्य मे भी बीकानेर कों हवेलियों की धरोहर” के रूप में देखा जा सके. इनके इस खूबसूरत कार्य इनके सहयोगी जन के रूप में विधि सलाहकार रमाशंकर कल्ला और निर्माण कार्य के लिए वास्तु सलाहकार सुनील कुमार गहलोत लुप्त होती भिति चित्रण शैली के सुनहरी कलम के चित्रकार राम कुमार भादाणी अपनी चित्रकारी से पुनः मूल स्वरूप दे रहे हैं.
तकनीकी सहयोग के रूप मे योगेश कुमार कल्ला के साथ अन्य सहयोगी के रूप मे कार्यरत है ताकि पुनः इन हवेलियों कों जीवंत रूप मे रखा जा सके सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इन हवेलियों के संरक्षक द्वारा अपने निजी वहन से इस कार्य कों अंजाम दे रहे है. ताकि उतरती हवेलियों बीकानेर की लुप्त होती धरोहर कों बचाया जा सके .