अनोखी परंपरा: बूंदी में घास भैरू की सवारी में दिखा अजब-गजब नजारा, कहा- गांव में नहीं आती कोई बीमारी
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1415066

अनोखी परंपरा: बूंदी में घास भैरू की सवारी में दिखा अजब-गजब नजारा, कहा- गांव में नहीं आती कोई बीमारी

Bundi: घास भैरू की सवारी दीपावली के बाद निकाली जाती है. इस पुरानी परंपरा के अनुसार बूंदी जिले के देई, बड़ोदिया, ठीकरदा, नैनवा  कस्बे में सामाजिक एकता का प्रतीक घास भैरू महोत्सव मनाया गया. 

घास भैरू की सवारी .

Bundi: घास भैरू की सवारी दीपावली के बाद निकाली जाती है. इस पुरानी परंपरा के अनुसार बूंदी जिले के देई, बड़ोदिया, ठीकरदा, नैनवा  कस्बे में सामाजिक एकता का प्रतीक घास भैरू महोत्सव मनाया गया. इस मौके पर अलग-अलग गांवों में अलग-अलग तरीके से आयोजन किए गए. साथ ही कई स्टंट और अजीबोगरीब नजारे भी लोगों को देखने को मिले. इसके साथ ही जिले के कस्बे में अलग-अलग तरह के करतब कलाकारों ने दिखाए. 

घास भैरू की सवारी भाई दूज के दिन निकाली जाती 
घास भैरू की सवारी भाई दूज के दिन निकाली जाती है, जिसमें घास भैरू बैल की सवारी कर नगर भ्रमण करवाया जाता है. इसमें कांच के गिलास में पर कार को खड़ा किया गया. गगरे पर साइकिल के पहियों को खड़ा किया. लोहे के पाइप के सहारे जमीन से कई फीट ऊंचाई पर लहराया गया, जिसे बिना स्टैंड के सीधा खड़ा किया. उस पर भी कांच और लकड़ी के एक मॉडल भगवान जैसा बनाया गया.

इसके अलावा पानी में तैरती पट्टी, कच्चे धागे पर लटके भारी भरकम  चक्की के पाटे, लोहे के पाइप पर बिना पकड़े हुए बाइक का खड़ा रहना, खेल पर बंद बाइक का पहिया घूमते हुए, कांच के टुकड़े पर नृत्य करता युवक, घूमती महादेव की झांकी से पानी का निकलना, कांच पर कार का टिकाना शामिल है. फांसी पर लटकना व कांटों पर सोना के करतब भी दिखे.

विशेष तौर पर होती है बैलों की पूजा
 घास भैरू चौक से घास भैरू को मदिरापान चढ़ाने के बाद पूजा अर्चना की परंपरा है. बैलों की पूजा इस दिन विशेष तौर पर की गई. इसके बाद दर्जनों बैल की जोड़ियों से उनकी सवारी देई कस्बे में निकाली गई. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में सभी समाज के लोग मौजूद रहे. दर्जनों बैलों की जोड़ियां घास भैरू को खींचती हुई शहर के विभिन्न इलाकों से घास भैरु चौक पहुंची. जहां विधिवत पूजा-अर्चना आने वाले साल की खुशहाली की कामना की गई.

बूंदी में घास भैरू की सवारी
दूसरी तरफ घास भैरू की सवारी में शामिल बैलों को डराने के लिए उन पर पटाखे और बम भी फेंके गए, लेकिन वे डरे नहीं. वहीं, ग्रामीणों ने आकर्षक झांकियां बनाई व हैरतअंगेज जादूगरी के नजारे पेश किए. अजीब तरह के स्वांग रचाकर लोगों का मनोरंजन किया गया. इन्हें देखने के लिए सैकड़ों गांवों के लोग पहुंचे थे जो कि गांव की छतों और सड़क के आसपास खड़े हुए थे.

क्या है मान्यता
मान्यता के अनुसार गांव घास भैरू की सवारी गांव में निकालने से पूरे साल सुख संपत्ति रहती है और किसी भी प्रकार की बीमारियां गांव में नहीं होती है. इसके अलावा नवजात से 1 साल तक के बच्चे-बच्चियों को भी बैलों की जोड़ियों के नीचे से निकालते हैं. इससे किसी को बीमारी नहीं होती. घास भेरू सवारी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण बात यह रहती है कि ये रस्सी के सहारे बैलों को जोता नहीं जाता. आदमी स्वयं ही हाथों से बैलों की जोड़ी को जुपता है और उसे खींचता है.

ये भी पढ़ें- Rajasthan Weather Today: राजस्थान के कई इलाकों में रात और सुबह के समय हल्की ठंड, धीरे-धीरे गिरेगा पारा, फिर बढ़ेगी सर्दी

सबसे पहले बैल की जोड़ी मीणा समाज की लगाई जाती है. दूसरे नम्बर पर गुर्जर समाज उसके बाद एक-एक करके सभी समाज के लोग बैलों की जोड़िया लगाकर घास भैरू का गांव में भ्रमण करवाते है. इस दौरान जगह-जगह लोग उन्हें मदिरा चढ़ा कर आने वाले साल की खुशहाली की कामना करते है.

 

Trending news