Chittorgarh News: पशुपालकों की आड़ में गोकशी का गौरख धंधा, गौरक्षकों ने किया काले कारोबार का खुलासा
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Chittorgarh News: पशुपालकों की आड़ में गोकशी का गौरख धंधा, गौरक्षकों ने किया काले कारोबार का खुलासा

Chittorgarh News: नागौर जिले में आयोजित पशु मेले में बड़ी संख्या में खरीदारी के बाद गौवंशों को परिवहन कर प्रदेश के दूसरे जिलों और निकटवर्ती मध्यप्रदेश में ले जाया जा रहा था. 

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Chittorgarh News: प्रदेश में पशु मेले की आड़ में गो तस्करों की ओर से गोकशी का बड़ा खेल खेला जा रहा है. गौवंश के परिवहन से लेकर खरीदारी के लिए न्यायालय ने पूरी गाइडलाइंस जारी कर रखी है. बावजूद इसके सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर गो तस्कर आसानी से बच निकलते हैं.  

नागौर जिले में आयोजित पशु मेले में बड़ी संख्या में खरीदारी के बाद गौवंशों को परिवहन कर प्रदेश के दूसरे जिलों और निकटवर्ती मध्यप्रदेश में ले जाया जा रहा था. हाल ही में गौरक्षक संगठनों की ओर से गौवंशों का परिवहन कर रहे कई ट्रकों को चित्तौड़गढ़ और निकट मध्यप्रदेश के मंदसौर में रुकवा कर गौवंशों को नजदीक की गौशालाओं में छुड़वा दिया गया. 

इसके बाद नागौर में तथाकथित पशुपालकों की ओर से गौरक्षकों की दादागिरी बता विरोध प्रदर्शन किया गया. उनकी ओर से पशुपालकों को बेवजह परेशान करने का दावा किया गया तो वहीं गौरक्षक संगठनों का दावा है कि किसानी की आड़ में गौवंशो को गोकशी करने कत्लखानों में भेजा जा रहा है, जिसके बाद गौरक्षकों की पड़ताल में ऐसे सनसनीखेज खुलासे हुए जिसने सबकी आंखे खोल कर रख दी हैं.  

राजस्थान के नागौर जिले के मेड़ता में आयोजित पशु मेले से बड़ी संख्या में मध्यप्रदेश भेजे जा रहे गोवंश को रुकवाने के मामलें में राजनीतिक पार्टियों ने राज्य सरकार से कार्रवाई की मांग की. हनुमान बेनिवाल सहित अन्य नेताओं ने सोशल साइट एक्स पर सरकार पर हमला करते हुए पशुपालकों का पक्ष लिया हैं. इसके उलट गौ रक्षक और हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं की ओर से कुछ मामलों की पड़ताल के बाद दावा किया गया हैं कि किसानी और पशुपालन की आड़ में गौतस्करों की ओर से गोकशी का भयानक खेल खेला जा रहा है. क्षेत्र में पिछले दिनों हुए गोवंश परिवहन के कुछ मामलों की पड़ताल में जो तथ्य सामने आए वो हैरान कर देने वाले हैं.

केस नंबर:1
गत 21 अप्रैल को 28 ट्रकों में 300 से ज्यादा गौवंशों को चित्तौड़गढ़ के निम्बाहेड़ा होकर मध्यप्रदेश ले जाया जा रहा था. इस दौरान जानकारी में आया कि दस्तावेजों में कमी पाए जाने के कारण मध्यप्रदेश पुलिस ने इन ट्रकों को प्रदेश की सीमा में प्रवेश से पहले रोक लिया. इसकी सूचना मिलते ही निम्बाहेडा से गौरक्षक सेल और हिंदू संगठन के कार्यकर्ता एक्टिव हो गए.  
उन्होंने निम्बाहेड़ा में सभी ट्रकों को पकड़ लिया गया और मौके पर पुलिस बुलाई गई. ट्रक चालकों की ओर से नागौर के मेड़ता में आयोजित पशु मेले से इन गौवंशों को लाना बताया गया. ट्रकों में बेरहमी से खचाखच भरे गौवंशों को देख गौरक्षकों ने नाराजगी जाहिर की और ट्रकों को आगे जाने से रोक दिया. 

गौरक्षकों और ट्रक चालकों के बीच तनावपूर्ण स्थिति की सूचना मिलते ही जिले के चार थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई.  पुलिस का दावा था कि ट्रक चालकों के पास नागौर जिला कलेक्टर की परमिशन उपलब्ध है, जबकि मध्यप्रदेश पुलिस की कार्रवाई के अनुरूप गौरक्षक जिले की पुलिस से कार्रवाई की मांग करते रहे. इस दौरान एक बारगी तो गौरक्षकों और पुलिस के बीच तनातनी का माहौल हो गया. इस बीच निम्बाहेड़ा विधायक श्रीचन्द कृपलानी भी मौके पर पहुंचे और उन्होंने पुलिस को नियमानुसार कार्रवाई करने के निर्देश दिए, जिसके बाद पुलिस ने सभी गौवंशो को भदेसर, निम्बाहेड़ा और शम्भूपूरा स्थित गौशालाओं में छुड़वाया गया. 

केस नंबर: 2
इसी तरह गत 27 अप्रैल को चित्तौड़गढ़ से महज 70 किलोमीटर दूर राजस्थान की सीमा से सटे मध्यप्रदेश की सीमा में पिपलियामंडी में गौरक्षकों की ओर से दूसरी बड़ी कार्रवाई की गई. गौरक्षकों को यहां भारी तादात में गौ तस्करी की सूचना मिली थी, जिसके बाद गौरक्षक दल के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे. यहां गौरक्षकों में पुलिस की सहायता से 47 ट्रकों में बेरहमी के साथ खचाखच भरे 596 गौवंशों को आजाद करवा आसपास की गौशालाओं में छुड़वाकर आसपास की गौशाला में पहुंचाया. दावा किया गया कि सभी गौवंशों को गोकशी के लिए कत्लखाने भेजा जा रहा था. 

केस नंबर:3
इस बीच 28 अप्रैल को गौवंश परिवहन का एक और मामला सामने आया. इस बार गौरक्षकों ने मामला पुलिस के भरोसे छोड़ने के बजाय अपने स्तर पर मामलें की गहनता से पड़ताल की. पड़ताल के बाद जो सच्चाई निकल कर सामने आई, उसने सबके होश उड़ा दिए. 

क्या है मामला?
चित्तौड़गढ़-निम्बाहेड़ा रुट से होकर मध्यप्रदेश जाने वाले रास्ते पर लगातार गौतस्करी के मामले सामने आने के बाद गौरक्षकों की टीम पूरी तरह एक्टिव हो चुकी थी. एक दिन पहले हुई कार्रवाई के अगले दिन ही 28 अप्रैल को गोरक्षकों की एक टीम पिपलियामंडी से चित्तौड़गढ़ की तरफ जा रही थी. इस दौरान टीम में शामिल गौरव सोमानी की नज़र एक होटल के पास संदिग्ध रूप से खड़े दो ट्रकों पर गई. गौ रक्षकों ने ट्रकों की तलाशी ली, जिसमें दोनों ट्रकों में 14-14 गौवंश ठूस-ठूस भरे पाए गए. 

इस बार गौरक्षकों की टीम ने पुलिस को सूचना देने से पहले ट्रक चालकों को विश्वास में लेकर उनसे पूछताछ की. पूछताछ में ट्रक चालकों ने बताया कि वे नागौर के मेड़ता में आयोजित पशु मेले से गौवंशों की खरीदारी कर, उन्हें कत्लखाने ले लेकर जा रहे हैं. ट्रक चालकों में आमीन पटेल नाम के एक व्यक्ति ने बताया कि वो गौवंशों को कत्लखाने पहुंचा रहा है.

नागौर के कल्याणसर निवासी दूसरे ट्रक चालक रामस्वरूप ने खुद गौवंशो को कत्लखाने भिजवाने की शंका जाहिर की. उसने बताया कि जिस तरह से गौवंश परिवहन करने वाले लोगों की चेन से चेन जुड़ी है, ये एक गिरोह के रूप में काम कर रहे है और निश्चित तौर पर इन गौवंशों को कत्लखाने भिजवाया जा रहा है. रामस्वरूप ने कहा कि मैं हिंदू भाइयों से अपील करता हूं कि वो अपने वाहनों में गौवंशो को न भरे. 

गौवंश तस्करी और गौकशी पर पाबंदी लगाने के लिए न्यायालय ने पशु मेलो से गौवंशों की खरीदारी से लेकर उनके परिवहन करने तक की गाइडलाइंस तय कर रखी हैं, जिसमें स्थानीय खरीदारी के अलावा प्रदेश और दूसरे राज्यों में गौवंशों के परिवहन करने के नियम कायदे पहले से मुकर्रर हैं. अगर नियमानुसार सही से गाइडलाइंस की पालना की जाए तो गौतस्करी के मामलों पर अच्छे से लगाम लगाई जा सकती हैं जबकि वास्तविकता में गौवंशों के परिवहन के दौरान ना तो स्थानीय प्रशासन इस गाइडलाइंस की ओर ध्यान देता है और ना ही संबंधित दस्तावेजों की सही से जांच होती हैं. 

क्या कहता है नियम? 
अक्सर देखने में आता है कि गौवंशों की तस्करी के मामलों में कार्रवाई करने से बचने के पीछे एक बड़ा कारण ये भी माना जाता है कि पकड़े गए गौवंशो के आश्रय और उनके खाने पीने की व्यवस्था कौन करेगा? इसीलिए स्थानीय प्रशासन की गौवंश तस्करी के मामलों में कार्रवाई करने से बचने का प्रयास करता हैं. 

वहीं, गौरक्षकों और हिंदू संगठनों के दबाव में ना चाहते हुए भी प्रशासन या पुलिस को मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ती है. गौरक्षक संस्था से जुड़े गौरव सोमानी बताते है कि हाई कोर्ट जयपुर की रीट संख्या 2009/15 के आदेश अनुसार मुख्य बिंदुओं की बात करें तो किसानी या गौपालन के लिए गौवंश का परिवहन करने वालों को एक वाहन में 6 से ज्यादा गौवंशों को भरने की अनुमति नहीं रहती. गौवंशों को वाहन में इस तरह भरना जरूरी होता है कि वे एक दूसरे से टच ना हो. आराम से खड़े रहे, या बैठ सके, जबकि गौकशी से जुड़े गौ तस्कर एक वाहन में 15 से 20 गौवंशों को ठूस-ठूस कर भर देते है. 

हाई कोर्ट की रीट के अनुसार, गौवंशों को राज्य से बाहर ले जाते समय एक विशेष वाहन साथ होना चाहिए जिसमें हरा चारा, भूसा और पीने के पानी की समुचित व्यवस्था हो. जबकि गौवंश परिवहन के मामलों में गौवंशों को भूखे प्यासे वाहनों में भरकर ले जाया जाता है. इस वजह से गौवंशों की मौत तक हो जाती है. 

इसी तरह एक और मुख्य बिंदु की बात करें तो किसी भी पशु मेले में खरीदारी करने जा रहे किसान को राजस्व रिकॉर्ड में सिंचाई युक्त भूमि दिखाने के साथ खुद को किसान साबित करने वाले दस्तावेज प्रस्तुत करने होते है. इसके अलावा खरीदारी करने वाले व्यक्ति को अपने जिले के जिला कलेक्टर से गौवंश की संख्या बता कर खरीदारी करने की अनुमति लेनी होती है.

इसके अलावा हाई कोर्ट की रीट के अनुसार, गौवंश खरीदार करने वाले व्यक्ति को शपतपत्र देकर यह बताना होगा कि खरीदे गए गौवंशो को वो कत्लखाने नहीं भेजेगा. साथ ही उसे पशु मेले से खरीदे गोवंश की पहचान के लिए गौवंश की फोटो, गौवंश का कोई पहचान चिन्ह सहित अन्य रिकॉर्ड संधारित करने होते है ताकि जरूरत पड़ने पर संबंधित विभाग से जुड़ा कोई भी अधिकारी खरीदे-बेचान किए गौवंशों का सर्वे कर ये शुनिश्चित करे कि उन गौवंशो को कत्लखाने नही भिजवाया गया है. 

जबकि सही मायनों में देखा जाए तो तमाम नियम कायदों और हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद गौवंशो परिवहन के दौरान अधिकांश गौतस्कर किसानों का चोला पहन कर केवल वाहन परिमिट और पशुमेले के दस्तावेज दिखा कर गौ तस्कर के काले कारनामे को अंजाम देकर पुलिस की पकड़ से आसानी से बच निकलते हैं.

वहीं, इनके खरीदने बेचने के बाद गौवंशों का किसी तरह का रिकॉर्ड संधारित नही किया जाता है, न विक्रेता या प्रशासन खरीदारों के यहां जाकर सर्वे करने की जहमत उठाते है कि बेचे गए गौवंश किसानी के काम में लिए जा रहे है या उन्हें किसानी की आड़ में कत्लखानों में कटने के लिए झोंक दिया गया है. जहां एक ओर गौवंशो के नाम पर बहु संख्यक हिंदू समुदाय का वोट बटौर कर सरकार बनाने वाले नेताओं के पास सत्ता हासिल करने के बाद इन्हीं गौवंशो की सुध लेने की फुरसत नहीं रहती. वहीं, सिस्टम की लचर व्यवस्था और गौवंशो के परिवहन से जुड़े कानूनों की पालना में लचर व्यवस्था अपनाने के चलते गौ तस्कर पशुमेले और किसानी की आड़ में इन बेजुबान जीवों को कत्लखाने की भट्टी में दर्दनाक मौत देने झोंक देते हैं.  

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