चंबल नदी का कैचमेंट मछली माफियाओं का अड्डा बना हुआ है, जहां अवैध तरीके से बडे पैमाने पर मछलियों का शिकार किया जा रहा है और क्विंटलों से मछलियां मार कर कोटा की मछली मंडी में सप्लाई की जा रही है. जिससे राजकोष में आय होने के बजाय रोजाना का लाखों का नुकसान हो रहा है.
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Begun News: चित्तौड़गढ जिले के रावतभाटा में राणा प्रतापसागर बांध का केचमेंट मछली सरगनाओं का अड्डा बना हुआ है. यहां हर दिन बडे़ स्तर पर मछलियों का अवैध शिकार हो रहा है और गाड़ियों में भर कर कई क्विंटल मछलियां बाहर भेजी जा रही है.चोरी भी हजारों की नहीं, बल्कि लाखों रूपए की मछलियों की, जो कि प्रताप सागर बान्ध के लम्बे चोडे़ कैचमेंट से चोरी होकर कोटा मछ्ली मंडी में बिक रही है, और सरकार को भारी राजस्व का चूना लग रहा है. बावजूद इसके चोरी के इस खेल पर अंकुश लगता नजर नहीं आ रहा है.
चंबल नदी के प्रवाह के बीच तन कर खड़े राणा प्रताप सागर बांध के केचमेंट में लबालब पानी भरा है. ये पानी जहा एक ओर लाखों लोगों की प्यास बुझाता है, वहीं विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में संचालित बहु औद्योगिक इकाइयों को पानी देने के साथ अपने भराव क्षेत्र में हर साल मछली पकड़ने के ठेके से सरकार को करोड़ों रूपयों का राजस्व दिलवाता है.
इन दिनों चंबल नदी का कैचमेंट मछली माफियाओं का अड्डा बना हुआ है, जहां अवैध तरीके से बडे पैमाने पर मछलियों का शिकार किया जा रहा है और क्विंटलों से मछलियां मार कर कोटा की मछली मंडी में सप्लाई की जा रही है. जिससे राजकोष में आय होने के बजाय रोजाना का लाखों का नुकसान हो रहा है. इधर इस पूरे मामलें से वाकिफ मत्स्य विभाग इस मामलें में प्रभावी कार्रवाई की बजाय अपनी आंखे मून्दे बैठा है.
चित्तौडगढ जिले के रावतभाटा राणा प्रताप सागर बांध के केचमेंट में पांच साल में एक बार मछ्ली पकडने पकड़ने का 3 से 4 करोड रूपए का ठेका होता है. एक बार ठेका होने के बाद ठेकेदार को अनुबंध के अनुसार हर साल ठेके की रकम में 12 प्रतिशत रकम बढा कर जमा करवानी होती है. पिछ्ले चार साल से मछली पकड़ने का ठेका संचालित कर रहे ठेकेदार ने मछली चोरी से हो रहे नुकसान की वजह से इस बार राशि बढ़ा कर जमा करवाने की बजाय ठेका छोड़ दिया. जिससे मछली चोरों की मौज हो गई.
बताया जाता है कि मोटी कमाई के लालच की वजह से ठेकेदार के कुछ लोग स्थानीय मछली तस्करों के साथ मिलकर खुद का धंधा पनपा रहे थे. इसका खुलासा कुछ यूं हुआ कि मत्स्य विभाग और ठेकेदार के बीच 31 मार्च को ठेकेदार के बीच मछली पकड़ने के अनुबंध का करार समाप्त होते ही उसने मछ्लियों का शिकार बंद कर दिया. नियमानुसार 1 अप्रैल से ये ठेका दोबारा होना था, जो कि अभी तक हुआ नहीं. पूर्व ठेकेदार की ओर से काम बंद करते ही ठेकेदार के अधीनस्त काम करने वाले कुछ लोगों ने मछली का शिकार करना बंद नहीं किया, और मछली तस्करों के साथ मिलकर अवैध शिकार करने लगे. ठेकेदार की ओर से मत्सय विभाग को सिक्योरिटी राशि साढे 3 करोड रूपए जमा करवाई गई थी, जो वापस मिलनी थी.
वहीं अवैध मछली शिकार की सूचना मिलते ही ठेकेदार ने शिकारियों को रोकना चाहा तो उन्होंने ठेकेदार को बीच में आने पर जान से मारने की धमकी दी और उसके कर्मचारियों से मारपीट कर दी. जिस पर ठेकेदार ने पुलिस को इन लोगों के खिलाफ नामजद शिकायत दी है.
राणा प्रताप सागर बांध का विशाल केचमेंट कई किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के गांधी सागर बांध तक फैला हुआ है. सड़क मार्ग से कैचमेंट का चक्कर लगाया जाए तो विभाग दूसरे छोर पर स्थित मत्स्य विभाग के केम्प तक जाने में 90 से 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. जिसमें काफी समय लगता है. वहीं दूसरी तरफ सालों से अवैध मत्स्य आखैट करने वाले मछली तस्करो का सूचना तंत्र इतना एक्टिव है कि रावतभाटा से उड़नदस्ते धरपकड़ के लिए निकलता है तो उन्हें पहले ही इसकी सूचना मिल जाती है और वो मौके से फरार हो जाते है.
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बताया जाता है कि राणा प्रताप सागर बांध सालो से मछली माफियाओं का गढ बना हुआ है. बांध का लंबा चोडा कैचमेंट होने की वजह से यहां नदी से 20 से 30 फीसदी मछली चोरी होना आम बात माना जाता है. पिछ्ले कई सालों से मत्य्स विभाग और अलग-अलग ठेकेदारों के बीच अनुबंधन के बावजूद यहां मछली तस्करों की घुसपैठ बनी रहती है. गत चार सालों से अबुबन्धन के अंतर्गत यहां मछली पकड़ रहे ठेकेदार ने भी मछली चोरी से परेशान होकर कई दफा रावतभाटा और जावदा पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी.
इस काली कमाई के खेल में मछली तसकरों के मुह इस कदर खून लग चुका है कि ये कई दफा ऐसे भी मामलें सामने आए जिसमें इन्हें पकड़ने गए मछली विभाग के गश्तिदल और ठेकेदार पर हमला करने से भी नहीं चुकते. इसी तरह के एक मामलें में मछली तस्करों का पीछा कर रहे ठेकेदार की पत्थरों से हमला कर हत्या कर दी गई थी. मामला निकटवर्ती मध्य प्रदेश की सीमा में होने के चलते हत्या का केस मध्यप्रदेश के संबंधित थाने में दर्ज किया गया था. वहीं मत्स्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार कुछ महिने पहले ही मछली तस्करी की सूचना मिलने पर धरपकड़ के लिए गए गश्तिदल के मछली तस्करों के इलाके में घुसते ही अधिकारियों और कर्मचारियों पर पथराव कर दिया था. जिस पर वे जान बचा कर उल्टे पांव भागे थे.
विभागीय अधिकारी व कर्मचारी भी इस बात से इंकार नहीं करते कि मछली तस्करों की पुलिस के साथ भी अच्छी सांठ गांठ रहती है. इसी के चलते कई जगहों पर नाकाबन्दी के बावजूद लोडिंग वाहनों में लगभग रोजाना कई क्विंटल मछ्लियां आसानी से सड़क मार्ग से होकर कोटा मछली मंडी तक पहुंच जाती है.
वहीं इस मामलें में मत्स्य विभाग की रावतभाटा परियोजना अधिकारी ऋतु जिंदल का कहना है कि उनके गश्ती दल में एक जीप और दो नावें है, जो कि पिछले कई महीनों खराब पड़ी है. अवैध मत्स्याखेट की सूचना मिलने पर जैसे तैसे निजी संसाधनों से दुरस्त इलाकों में दबिश देने जाते है, तो इसकी सूचना मछली तस्करों को पहले से मिल जाती है इस वजह से वो वहां से भाग खड़े होते है. ऐसे में मछली तस्करी के इस खेल में कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत होने की भी आशंका से भी इंकार नही किया जा सकता है.